बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्ष्ामता बड़ों की अपेक्षा कम होती है। इसीलिए बच्चों के खान-पान में अधिक ध्यान देने की जरूरत होती है। बच्चे नाजुक होते हैं और उनकी सेहत जल्द खराब हो सकती है। जरा सी लापरवाही बच्चों के लिए भारी पड़ सकती है। इसीलिए हमें बच्चों के खान-पान को लेकर काफी सतर्क रहने की जरूरत है। अब हम जो खबर आपको बताने जा रहे हैं, वह बच्चों की सेहत से जुड़ी है। आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि आहार के रूप में बच्चों की सेहत का ख्याल रखने वाला बेबी प्रोडक्ट सेरेलैक वासतव में बच्चों के स्वास्थ्य के लिए घातक है। सेरेलैक निर्माता कंपनी नेस्ले इन दिनों चर्चा में है। यह वही नेस्ले कंपनी है जो मैगी को लेकर पहले भी विवादों में रही है। इस बार विवाद की वजह बेबी प्रोडक्ट सेरेलैक है। पब्लिक आई की जांच में सामने आया है कि भारत में नेस्ले के दो सबसे ज्यादा बिकने वाले बेबी-फूड ब्रांडों में काफी मात्रा में चीनी मिलाई जा रही है। जिससे बच्चों में मोटापा और आगे चलकर शक्कर से बनी चीजें खाने की आदत पडने का खतरा है। जो कि भविष्य में डायबिटीज, मोटापा जैसी बिमारियों का कारण बन सकता है।
भारतीय बच्चों के साथ खिलवाड़ कर रही कंपनी
जांच में पाया गया कि कंपनी विकसित और विकासशील देशों में भेदभाव कर रही है। भारत में जहां सेरेलैक में अधिक चीनी मिलाकर बेचा जा रहा है वहीं ब्रिटेन, जर्मनी स्विट्जरलैंड और अन्य विकसित देशों में वही प्रोडक्ट चीनी मुक्त हैं। मतलब साफ है कि नेस्ले विकसित और विकासशील देशों के साथ भेदभाव कर रहा है, बल्कि बच्चों के जीवन के साथ भी खिलवाड़ कर रहा है। नतीजों से पता चला कि भारत में सभी 15 सेरेलैक शिशु प्रोडक्ट में लगभग 3 ग्राम चीनी होती है। अध्ययन में कहा गया है कि यही उत्पाद जर्मनी और ब्रिटेन में बिना अतिरिक्त चीनी के बेचा जा रहा है, जबकि इथियोपिया और थाईलैंड में इसमें लगभग 6 ग्राम चीनी होती है।भारत में नेस्ले कंपनी के प्रोडक्ट की सेल काफी अधिक है। बच्चों के लिए प्रोडक्ट बनाने में नेस्ले दुनियाभर में सबसे बड़ी कंपनी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कंपनी कई देशों में शिशु दूध और अनाज उत्पादों में चीनी और शहद मिलाती है। यह मोटापे और पुरानी बीमारियों को रोकने के उद्देश्य से इंटरनेशनल गाइडलाइन का उल्लंघन है। यह उल्लंघन केवल एशियाई, अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों में पाए गए। नेस्ले इंडिया के प्रवक्ता ने दावा किया वे सभी स्थानीय नियमों और अंतरराष्ट्रीय मानकों का अनुपालन करते हैं। पिछले पांच वर्षों में अपने शिशु अनाज रेंज में अतिरिक्त शर्करा को 30% तक कम कर चुके हैं। प्रवक्ता ने बताया कि पिछले पांच वर्षों में नेस्ले इंडिया ने हमारे शिशु अनाज पोर्टफोलियो (दूध अनाज आधारित पूरक भोजन) में अतिरिक्त शर्करा को 30% तक कम कर दिया है।
डब्ल्यूएचओ की चेतावनी बेअसर
2022 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बच्चों के लिए फूड प्रोडक्ट में अतिरिक्त चीनी और मिठास पर प्रतिबंध लगाने को कहा था। कंपनी पर डब्ल्यूएचओ की चेतावनी का कोई असर नहीं हुआ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी दी है कि छोटे बच्चे यदि चीनी के संपर्क में आते हैं तो उनमें जीवन भर चीनी प्रोडक्ट को प्राथमिकता देने की लत लग जाती है। इससे मोटापा और अन्य कई बीमारियों होने का खतरा बढ़ जाता है।
पैकेजिंग में चीनी की मात्रा का खुलासा नहीं
इस प्रकार के उत्पादों की पैकेजिंग पर उपलब्ध पोषण संबंधी जानकारी में अक्सर अतिरिक्त चीनी की मात्रा का खुलासा भी नहीं किया जाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि नेस्ले अपने उत्पादों में मिलने वाले विटामिन, खनिज और अन्य पोषक तत्वों को प्रमुखता से उजागर करती है, लेकिन जब अतिरिक्त चीनी की बात आती है तो यह पारदर्शी नहीं है। नेस्ले ने 2022 में भारत में 20,000 करोड़ रुपए से अधिक के सेरेलैक उत्पाद बेचे।
विशेषज्ञ बोले, चीनी मिलाना खतरनाक
विशेषज्ञों का कहना है कि शिशु उत्पादों में अत्यधिक नशीली चीनी मिलाना खतरनाक है। ब्राजील में संघीय विश्वविद्यालय पैराइबा के पोषण विभाग में महामारी विज्ञानी और प्रोफेसर रोड्रिगो वियाना ने कहा कि यह एक बड़ी चिंता का विषय है। शिशुओं और छोटे बच्चों को दिए जाने वाले खाद्य पदार्थों में चीनी नहीं मिलानी चाहिए क्योंकि यह अनावश्यक और अत्यधिक नशे की लत है। उन्होंने कहा कि बच्चे मीठे स्वाद के आदी हो जाते हैं और अधिक मीठे खाद्य पदार्थों की तलाश करने लगते हैं। जिससे एक निगेटिव साइकिल शुरू हो जाती है। जब बच्चे बड़े होते हैं तो उनमें पोषण-आधारित विकारों का खतरा बढ़ जाता है। इनमें मोटापा और अन्य पुरानी गैर-संचारी बीमारियां, जैसे मधुमेह या उच्च रक्त दबाव शामिल हैं।