Saturday, August 2, 2025
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नरसिंहपुर देश का ऐसा एकमात्र जिला, जिससे चार शंकराचार्यों का है नाता

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नरसिंहपुर  ।   मध्यप्रदेश का नरसिंहपुर देशभर में एकमात्र ऐसा जिला है, जिससे चार शंकराचार्यों का नाता है। भगवान आदिशंकराचार्य ने नर्मदा के सांकल घाट हीरापुर में साधना की थी। यह स्थान गुरुगुफा के रूप में प्रसिद्ध है। इसी स्थान पर ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने आदिशंकराचार्य का मंदिर बनवाया है। ब्रह्मलीन स्वरूपानंदजी की तप स्थली परमहंसी नरसिंहपुर जिले में है। जिनके उत्तराधिकारी शिष्य शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती और सदानंदजी ने भी गुरु तपस्थली में उनके साथ रहते हुए तप, साधना, धर्मशिक्षा ली है। आदि शंकराचार्य ने नरसिंहपुर जिले में नर्मदा के सांकल-ढानाघाट के बीच धूमगढ़ स्थित एक गुफा में कठिन तपस्या की थी। यहीं पर अपने गुरु गोविंदपादाचार्य से दंड संन्यास की दीक्षा ली थी। बताया जाता है कि नर्मदा परिक्रमा दौरान ब्रह्मलीन शंकराचार्य ने इस गुफा की खोज वर्ष 1949 के करीब की थी। जिसके बाद यहां भगवान आदि शंकराचार्य और उनके गुरु की प्रतिमा स्थापित कर भव्य मंदिर का निर्माण कराया है। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी नमामि देवी नर्मदे यात्रा दौरान गुरुगुफा में पूजन किया था। जबकि वर्ष 1989 में गोविंदवन में शंकराचार्य के सानिध्य में तात्कालीन उपराष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा, तात्कालीन मुख्यमंत्री मोतीलाल बोरा ने पौधारोपण किया था। करीब पांच वर्ष पहले यहां मंदिर निर्माण कराया था।

ढाई हजार वर्ष से अधिक पुरानी गुफाः

बताया जाता है कि यह गुफा ढाई हजार वर्ष से अधिक प्राचीन हैं। जो ढाई सौ फीट लंबी व करीब 50 फीट गहरी है। गुफा के अंदर जाने का रास्ता करीब डेढ़ फीट चौड़ा संकीर्ण रास्ता है। दोनों शंकराचार्यों को दी वेद-वेदांत की शिक्षाः ब्रह्मचारी अचलानंद बताते हैं कि ब्रह्मलीन शंकराचार्यजी परमहंसी में वर्ष 1950 के करीब से स्थायी रूप से तप करते रहे और फिर यहीं पर आश्रम का निर्माण हुआ। नर्मदा परिक्रमा के दौरान गुरुगुफा की खोज उन्होंने ही की थी। जब भी गुरुजी का परमहंसी में चातुर्मास रहा और लंबे समय तक यहां रहे तो उस दौरान वर्तमान शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद व सदानंदजी को भी वह वेद-वेदांत, न्याय मीमांसा की शिक्षा देते रहे। इस तरह परमहंसी को दोनों शंकराचार्यों की शिक्षा स्थली भी कहा जा सकता है।

नर्मदा घाट की ढलान पर खड़ी कार नदी में समाई, तर्पण करने गया था परिवार, बच्चों की जान बची

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जबलपुर ।  बेलखेड़ा थाना अंतर्गत छरउआ घाट किनारे खड़ी कार एकाएक नदी के अंदर चली गई। कार में दो बच्चे सवार थे। कार पानी में जाते ही चीख पुकार मच गई। आसपास खड़े लोगों ने तत्परता दिखाते हुए कार से दोनों बच्चों को बाहर निकाल लिया। सूचना पर पहुंची पुलिस ने बड़ी मुश्किल से कार को पानी के बाहर निकाला। प्राप्त जानकारी के मुताबिक सागर निवासी आशुतोष दुबे एवं कमलेश दुबे पूर्वजों की तर्पण पूजा के लिए बेलखेड़ा थाना क्षेत्र के छरउआ घाट सुबह-सुबह अपनी कार से पहुंचे थे। आशुतोष और कमलेश कार को घाट के उपर ढलान क्षेत्र में खड़ी कर नदी में तर्पण करने चले गए। पूजन के दौरान वह कार में अपने दो बच्चों को बैठा गए थे। जब नदी किनारे खड़ी कार अचानक चल दी और कार नदी के अंदर चली गई। बताया जा रहा है कि बच्चों ने कार में खेलते हुए गाड़ी का हैंडब्रैक खोल दिया और कार चलते हुए नदी में समा गई। गनीमत रही कि क्षेत्रीय लोगों की तत्परता की वजह से हादसा नहीं हुआ नहीं तो बच्चों की जान के साथ घाट के नीचे बैठे अन्य लोगों की जान जा सकती थी।

चाणक्य नीति: ये 3 दुख घर की सुंदरता को छीन लेते हैं

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कहा जाता है कि खुशियां और गम मानव जीवन का अहम हिस्सा है। इनमें से कोई भी चीज़ स्थायी नहीं है। समझगार व्यक्ति वही होता जो इन दोनों में एक समान रह सके।

कहने का अर्थ है जो व्यक्ति सुख में अधिक उत्तेजित न हो और दुख में हिम्मत न हारें। परंतु आचार्य चाणक्य के नीति सूत्र में किन्हीं ऐसे दुखों के बारे में बताया गया है जो जिस किसी के जीवन में अगर आ जाते हैं तो न केवल उस इंसान के जीवन की खुशियां चली जाती है बल्कि घर की रौनक भी हमेशा के लिए चली जाती है। इतना ही नहीं बल्कि कहते हैं ये तीन दुख इंसान को अंदर से पूरे तरह खोखला कर देते हैं। चाणक्य के अनुसार तीन घटनाएं दुर्भाग्य की निशानी है। तो आइए जानते हैं मनुष्य जीवन के सबसे बड़ा दुख क्या कहलाते हैं।

शक्की जीवनसाथी
कहा जाता है शक का कोई इलाज नही होता। जिस किसी व्यक्ति में अपने जीवनसाथी को लेकर शक पैदा हो जाता है, उसका जीवन बर्बाद होने से वह स्वयं भी नहीं रोक पाता। ये शादीशुदा जिंदगी में जहर घोलने का काम करता। कहा जाता शादीशुदा जिंदगी की गाड़ी के दो पहियों की तरह होती है, एक में भी खराबी आ जाए तो आगे चलना मुश्किल हो जाता है। उसी तरह जीवनसाथी फिर चाहे स्त्री हो या पुरुष एक दूसरे के प्रति अगर शक की भावना उत्पन्न हो जाए तो कई जीवन नर्क बन जाता है. कई बार तो तलाक की नौबत आ जाती है।

विधवा बेटी
हर माता पिता की ये कामना होती है कि उनकी बेटी को शादी के बाद एक अच्छा वर व घर मिले। इसके लिए माता-पिता अपनी ताउम्र इसके लिए कड़ी मेहनत करके एक-एक पाई जोड़कर धूम धाम से बेटी की शादी करते हैं। कहते हैं मां बाप के लिए अपनी बेटी को ब्याह देने के खुशी दुनिया की सबसे बड़ी खुशी होती है हालांकि उसकी विदाई में उनकी तकलीफ का अंदाज़ा लगा पाना किसी के लिए भी आसाना नहीं होता। परंतु एक पिता के लिए सबसे बड़ा दुख होता है अपने जीते जी अपनी बेटी को विधवा देखना। चाणक्य नीति में वर्णन है कि ये ऐसा दुख है जो न सिर्फ बेटी की खुशियां छीनता है बल्कि ससुराल और मायके दोनों घर की रौनक छीन लेता है।

मतकमाऊ बेटा
प्रत्येक माता पिता चाहते हैं कि उनका बेटा आदर्शवादी बने और अपने जीवन में खूब तरक्की करें। कहा जाता है प्रत्येक माता-पिता के लिए उनकी औलाद ही बुढ़ापे का सहारा होता है। लेकिकन जब पुत्र निकम्मा निकल जाए तो माता-पिता के लिए इससे बड़ा दुख कोई नहीं होता। चाणक्य के अनुसार संतान भले ही एक हो लेकिन अगर योग्य और बुद्धिमान होगी तो माता पिता को कभी किसी अन्य का सहारा नहीं लेना पड़ता।

नदी-तालाब में तर्पण कर लोग पितरों को कर रहे याद, इस संकेत से समझे पितर आपसे नाराज है या खुश

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पितृपक्ष में पूर्वजों के निमित्त पिंडदान व तर्पण के लिये आश्विन माह खास माना गया है.,पितृपक्ष भादो माह की पूर्णिमा तिथि को अगस्त्य मुनि के जल अर्पण से शुरू होकर आश्विन माह के कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि को तर्पण का समापन होगा. पूर्वजों को जल अर्पण करने को लेकर जिलेभर के छोटे-बड़े तालाब घाटों व नदियों में श्रद्धालुओं की भीड़ दिख रही है. पितृपक्ष पितरों को याद करने व तर्पण करने का महापर्व माना जाता है. दस सितंबर से शुरू हुए पितृपक्ष का समापन 25 सितंबर को होगा.

इन 16 दिनों तक श्रद्धालु अपने पितरों का तर्पण कर जल अर्पण करेंगे. धार्मिक मान्यता है कि पितरों के निमित्त पिंडदान या तर्पण करने से उनकी आत्मा को मोक्ष मिलता है. जिस तरह देवी देवताओं की पूजा की जाती है, उसी तरह पितृपक्ष में पितरों की पूजा होती है. जिससे पितर प्रसन्न होकर अपने परिवार के लोगों को सुख समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं. इन्हीं कामना से श्रद्धालु तालाब घाट पर पुरोहितों से विधि विधान पूर्वक पूजन कराकर पूर्वजों को याद कर तिल कुश आदि से जल अर्पण किया.

पितरों से मिलता है आशीर्वाद

बतादें कि भादव महीने की पूर्णिमा से शुरु हुई पितृपक्ष आश्विन मास के कृष्ण पत्रा की अमावस्या तिथि को समाप्त होगी. इन पक्ष में विधि विधान से पितरों से संबंधित कार्य करने से पितरों का आशीर्वाद भी मिलता है. माना जाता है कि इससे पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. पितृपक्ष को श्राद्ध पक्ष के नाम से भी जाना जाता है.

दक्षिण दिशा में पितरों को दिया जाता है जल

पितृपक्ष में पितरों का आगमन दक्षिण दिशा से होती है. शास्त्रों के अनुसार दक्षिण दिशा में चंद्रमा के उपरी कक्षा में पितृलोक स्थित है. इस दिशा को यम की दिशा भी माना गया है. इसलिये दक्षिण दिशा में पितरों का अनुष्ठान किया जाता है. रामायण में उल्लेख है कि जब दशरथ जी की मृत्यु हुई थी तो भगवान राम ने स्वप्न में उन्हें दक्षिण दिशा की ओर जाते हुये देखा था. रावण की मृत्यु से पहले त्रिजटा ने सवप्न में रावण को गधे पर बैठकर दक्षिण दिशा की ओर जाते देखा था. इन्हीं कारणों से पितरों को दक्षिण दिशा की ओर जल अर्पण करने का विधान है.

मृत्यु तिथि पर पितरों को भोजन कराने का है विधान

पुराण के अनुसार व्यक्ति की मृत्यु जिस तिथि को हुई होती है. उसी तिथि अमें उनका श्राद्ध करना चाहिए. यदि जिनकी मृत्यु के दिन का सही पता न हो. उनका श्राद्ध अमावस्या तिथि को कराना चाहिए. श्राद्ध मृत्यु वाली तिथि को किया जाता है. मृतयु तिथि के दिन पितरों को अपने परिवार द्वारा दिये अन्न जल को ग्रहण करने की आज्ञा है. इसलिये उस दिन पितर कहीं भी किसी लोक में जिस रुप में होते हें. उसी अनुरुप आहार ग्रहण कर लेते हैं. विदित हो कि श्राद्ध पक्ष में तिल व कुश का विशेष महत्व है. गरुड़ पुराण के अनुसार तीनों देवता ब्रह्मा, विष्णु व महेश कुश के क्रमश: जड़, मध्य और अग्र भाग में रहते हैं. कुश का अग्र भाग देवताओं का, मध्य भाग मनुष्य का और जड़ भाग पितरों का माना गया है. वहीं तिल पितरों का प्रिय है और दुरात्माओं को दूर भगाने वाला माना गया है.
 

इंदिरा एकादशी पर बस एक बार ये उपाय आजमाएं, कर्ज और जीवन भर के कष्टों से मुक्ति पाएं

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हिन्दू पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को इंदिरा एकादशी का व्रत रखा जाता है. इस साल इंदिरा एकादशी का व्रत 21 सितंबर 2022, दिन मंगलवार को रखा जाएगा.

इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा की जाती है. पितृपक्ष के दौरान पड़ने के कारण इस एकादशी पर श्री हरी विष्णु की कृपा से पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है. माना जाता है कि जो लोग हर तरह के कष्टों से छुटकारा पाकर सुख-समृद्धि मृत्यु के बाद मोक्ष चाहते हैं, उन्हें इस व्रत को जरूर रखना चाहिए. इस दिन कुछ विशेष उपाय कर पितृ दोष से मुक्ति मिल सकती है, साथ ही भगवान विष्णु की विशेष कृपा बरसती है. ऐसे में चलिए जानते हैं इंदिरा एकादशी के उन उपायों के बारे में.

– इंदिरा एकादशी पर सूर्यास्त के समय तुलसी के समक्ष घी का दीपक जलाकर 'ॐ वासुदेवाय नमः' मंत्र का जाप करते हुए तुलसी की 11 परिक्रमा करें. मान्यता है इससे सौभाग्य में वृद्धि होती है. घर में सुख-शांति का माहौल बना रहता है.

– कर्ज में डूबे लोगों को इंदिरा एकादशी के दिन भगवान विष्णु को पीले रंग की वस्तु जैसे पीले फूल, पीला फल(केला), पीला अनाज(अरहर दाल) पूजा में अर्पित करना चाहिए. इसके बाद इन सामग्री को गरीब या जरूरतमंदों में बांट दें. ऐसा करने पर कर्ज का बोझ कम होता जाएगा.

– निर्धता दूर करने के लिए इंदिरा एकादशी के दिन पीपल के पेड़़ में सरसों के तेल का दीपक लगाने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है. साथ ही दरिद्रता का नाश होता है.

– इंदिरा एकादशी के दिन घर में विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ भजन-कीर्तन करने से नकारात्मकता दूर होती है. परिवार में क्लेश नहीं होता. हर कार्य में सिद्धि प्राप्त होती है.
 

अनमोल हैं कड़वे बोल 

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किसी ने कहा है कि अंधेरे में माचिस तलाशता हुआ हाथ, अंधेरे में होते हुए भी अंधेरे में नहीं होता, इस तलाश को अपने भीतर निरंतर जीवित रखना कोई साधारण बात नहीं है, परंतु जो लोग सफर की हदों को पहचानते हैं, जिन्हें हर मंजिल के बाद किसी नए सफर पर चल पड़ने की लत है, उनके भीतर से यह खोज कभी खत्म नहीं होती। अचूक शैली में, अपने क्रांतिकारी विचारों से लोगों को अपनी ही खोज के तौर तरीके बताने वाले राष्ट्रसंत मुनि तरुणसागर जी महाराज की वाणी सहज आकर्षण का विषय बन गई है। ऐसे समय में जब अपने हक में हर खुशी बटोर लेने की अदम्य लालसा लोगों को दुनिया के दुऱख दर्द से कोसों दूर ले जा रही है। मुनि श्री दुनिया को खुशी और गम की सही परिभाषा बता रहे हैं। यह सिर्फ संयोग नहीं है कि वे जहां भी पहुंचते हैं, सबसे पहले यही कहते हैं कि मैं कथा सुनाने नहीं जीवन की व्यथा सुनाने आया हूं। यह व्यथा घर-घर की कहानी है, जिसे एक बड़े आईने की शक्ल में सामने रखकर मुनि तरूण सागर जी पुकार कर कह उठते हैं कि इसे न तो ठुकराओ, न ही झुठलाने की कोशिश करो, बेहतर यही है कि इस व्यथा के बीच से ही जीवन का रस हासिल कर लो। मुनि तरुण सागर जी के बोल, सुनने वाले को भावित-प्रभावित तो करते ही हैं, उसे झकझोर कर भी रख देते हैं। उन्हें सुनते समय या पढ़ते समय आप अनुभव करते हैं कि आपकी अपनी जिंदगी एक धारावाहिक के रूप में आपकी आंखों के सामने तैरने लगी है। उनकी वाणी अतीत की जड़ता से उबारने और वर्तमान की लापरवाही के प्रति सचेत करने का काम करती है। वह आपके जख्मों को सहलाने के बदले यदि अधिक कुरदने की मुद्रा में दिख भी रही हो तो भी यह नहीं भूलना चाहिए कि मुनि श्री आपको स्थाई रूप से तंदुरूस्त बनाने का उद्यम कर रहे हैं। सूत्र शैली में संदेश देने वाले मुनि तरूण सागर जी को अपनी वाणी को कड़वे प्रवचन कहने पर इत्मीनान यदि है तो सिर्फ इसलिए कि वे जानते हैं, इंसान की प्रवृत्ति और कभी न बदलने की उसकी जिद इतनी कठिन और जटिल है कि सीधी उंगली से घी निकालना मुमकिन नहीं है। आज साहित्य, संस्कृति और समाज के हर मंच पर महिला जागृति या नारी विमर्श का दौर ही चल पड़ा है। मुनि तरूण सागर जी साफ शब्दों में कहते हैं कि समाज पुरुष प्रधान है, परंतु याद रखना चाहिए कि महिलाओं की भूमिका पुरुषों से भी बड़ी है। वे सत्य से मुंह मोड़ने या पीछे हटने वाले समाज को न सिर्फ जगाते हैं बल्कि अपने कड़वे बोल से कोसने में भी कोई गुरेज नहीं करते। सच के पाखंडी चेहरे को पहचानने वाली उनकी गहरी दृष्टि सजग करती हैं कि वास्तव में जो सत्य है उसे किसी बनावट की जरूरत नहीं है। संघर्ष में सत्य परेशान हो सकता है किन्तु पराजित नहीं होता। 
छोटी-छोटी बातों से जीवन का बड़ा अर्थ निकाल लेने वाले मुनि तरूणसागर जी के बोल सचमुच अनमोल हैं। एक और उदाहरण देखिए वे कहते हैं कि प्रभु को सात बातें अच्छी नहीं लगती घमंड से भरी आंखें, झूठ से भरी जुबान, बुराई की तरफ बढ़ते कदम, झूठी गवाही, बुरी सोच, भाई को भाई से लड़ाना और खून से सने हाथ। जरा सोचिए इन बातों में आज के मनुष्य और समाज का कौन सा ऐसा पक्ष है जो शेष होगा। इंसान का दोहरापन और दुनिया का बहुरूपियापन हो या हिंसा और आतंक की कीमत पर सब कुछ हासिल कर लेने की अंधी कोशिश, मुनि तरूण सागर जी इन हालातों को बेपरदा कर देते हैं। इसके विपरीत वे जीने की कला की सारी सूत्र भी सहज रूप से बता देते हैं। प्रदूषण के सारे खतरों में विचारों के प्रदूषण को सबसे बड़ा कहने वाले मुनि श्री इस समस्या को विचारों की शक्ति से ही दूर करने के रास्ते भी सुझाते हैं, आवश्यकता बस इतनी है कि सुने हुए को जीवन में उतारने की शक्ति श्रोता स्वयं अपने भीतर पैदा करें।  
 

राशिफल: कैसा रहेगा आपका आज का दिन (20 सितम्बर 2022)

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  • मेष राशि – विघटनकारी तत्वों से क्षतिग्रस्त होने से बचिये, समस्यायें बनी ही रहेंगी।
  • वृष राशि – कार्य सफलता से संतोष, स्त्री-वर्ग से उल्लास तथा आपकी चिन्तायें कम अवश्य होंगी।
  • मिथुन राशि – आशानुकूल सफलता मिलेगी, व्यवसायिक क्षमता अनुकूल बनेगी, समय का ध्यान रखें।
  • कर्क राशि – अशुद्ध गोचर रहने से विशेष कार्य स्थगित रखें, अधिकारियों से तनाव बन सकता है।
  • सिंह राशि – आर्थिक योजना फलीभूत होगी, विरोधी परेशान करेंगे, कार्य की चिन्ता बनेगी।
  • कन्या राशि – स्वभाव में अशांति, मानसिक बेचैनी, कार्य तीक्रता के कुछ प्रयास अवश्य सफल होंगे।
  • तुला राशि – अर्थ व्यवस्था कुछ अनुकूल होगी, सफलता का हर्ष अवश्य ही होगा।
  • वृश्चिक राशि – इष्ट मित्र सहायक रहेंगे, बड़े-बड़े लोगों से मेल-मिलाप अवश्य ही होगा, कार्य बनेंगे।
  • धनु राशि – मान-प्रतिष्ठा बालबाल बचे, कार्यवृत्ति में सुधार होगा, रुके कार्य शीघ्र निपटा लें।
  • मकर राशि – व्यवसाय में व्यग्रता, तनाव, क्लेश से हानि, कार्य स्थगित रखें, समय का ध्यान रखें।
  • कुंभ राशि – सफलता के साधन जुटायें, धन लाभ, आशानुकूल सफलता का हर्ष होगा ध्यान रखें
  • मीन राशि – बिगड़े कार्य बनेंगे, योजना फलीभूत होगी तथा इष्ट मित्र सुखवर्धक अवश्य हेंगे।
     

बाढ़ राहत कार्यों में वायु सेना का महत्वपूर्ण सहयोग मिला : मुख्यमंत्री चौहान

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भोपाल : मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान से आज प्रातः निवास पर कमांडिंग इन चीफ मध्य वायु सेना, एयर मार्शल श्री अमनप्रीत सिंह ने सौजन्य भेंट की। श्री अमनप्रीत सिंह मध्य वायु कमान, भारतीय वायु सेना, प्रयागराज पदस्थ हैं। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि प्रदेश में मानसून में बाढ़ की स्थिति वाले क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन में वायु सेना का महत्वपूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने एयर मार्शल श्री अमनप्रीत सिंह को भारतीय वायु सेना के विशेष सहयोग के लिए धन्यवाद दिया। एयर मार्शल श्री अमनप्रीत सिंह के साथ विंग कमांडर श्री रविंद्र अग्रवाल और ग्रुप कैप्टन श्री रामास्वामी कन्नन ने भी मुख्यमंत्री श्री चौहान से भेंट की। एयर मार्शल श्री अमनप्रीत सिंह ने मुख्यमंत्री को वायु सेना की ओर से प्रतीक-चिन्ह भेंट किया।
 

चुनावी सभा में बोले मप्र के सीएम शिवराज- जनता का अपमान करने वाले किसी भी अधिकारी को नहीं छोडूंगा

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इंदौर ।  नगरीय निकाय चुनाव के अंतर्गत मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने दो सभाओं को संबोधित किया। इस दौरान घोषणाओं का पिटारा खोल दिया। उन्होंने झाबुआ के पेटलावद मेें कहा कि यहां आना तो बहाना था, मुझे आप लोगों से मिलना था। एसपी अरविंद तिवारी को निलंबित करने के मामले में चौहान ने कहा कि मेरे भांजों (पालीटेक्निक के छात्र) ने जब अपनी परेशानी को लेकर उन्हें फोन किया तो उन्होंने सही ढंग से बात नहीं की। इस बात को लेकर उन्हें निलंबित कर दिया गया है। जनता का अपमान करने वाले किसी भी अधिकारी को मैं नहीं छोडूंगा। उन्होंने अक्टूबर माह में जनसेवा अभियान शुरू करने की बात कही। पेटलावद के लिए बस स्टैंड की उपयुक्त जमीन देखकर नया बस स्टैंड बनवाने की बात कही।

"कांग्रेस जहांजहां भी है, वहां गड़बड़ करती है' 

रतलाम के सैलाना में मुख्यमंत्री चौहान ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी और कमल नाथ को आड़े हाथ लिया। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा कांग्रेस छोड़ो यात्रा के रूप में तब्दील हो रही है। इधर, वे भारत जोड़ो की बात कह रहे हैं और उधर कांग्रेस के बड़े नेता कांग्रेस छोड़ रहे हैं। उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि कांग्रेस की हालात ऐसे हो रहे हैं जैसे कि "एक दिल के टुकड़े हुए हजार, कोई इधर गिरा कोई उधर गिरा…"। मुख्यमंत्री ने कहा कि कांग्रेस जहांजहां भी है, वहां गड़बड़ करती है। झूठ बोलकर पिछली बार कांग्रेस सत्ता में आई थी, पर उनके साथी ही साथ छोड़ गए। मंत्री ओपीएस भदौरिया भी कमल नाथ व कांग्रेस के झूठ के कारण साथ छोड़कर हमारे साथ आ गए। सवा साल में कमल नाथ की कांग्रेस सरकार ने प्रदेश को तबाह करना शुरू कर दिया था। उन्होंने कहा कि केंद्र व राज्य की अनेक योजनाओं से प्रदेश के गरीबों को सस्ता राशन, मकान व इलाज मिल रहा है। उधर, कमल नाथ तो योजना बंद करने पर तुल गए थे। गरीबों के कफन के पांच हजार रुपये भी कमल नाथ ने छीन लिए थे। इसलिए चुनिए उन्हें जो वादा निभाते हैं, झूठ नहीं बोलते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि किसानों के कर्ज का ब्याज सरकार भरेगी।

मुख्यमंत्री चौहान ने विद्यार्थियों और समाज सेवियों के साथ किया पौध-रोपण

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भोपाल : मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने आज स्मार्ट सिटी पार्क, श्यामला हिल्स में मौलश्री, नीम और कचनार के पौधे लगाए। मुख्यमंत्री श्री चौहान के साथ सामाजिक संस्थाओं के सदस्य और विद्यार्थियों ने भी पौध-रोपण किया। केनियन उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की शिक्षिका और बालिकाओं ने भी पौधे लगाए। विद्यालय द्वारा पर्यावरण-संरक्षण के लिए निरंतर कार्य किया जा रहा है। श्रीमती एस.वी. नागामणी, श्री कृष्णा शर्मा, श्री पर्युल, श्री आर्यन ठाकुर, श्री हर्ष सोनी, श्री हर्षवर्धन सिसोदिया, कु. लवी सोनी, कु. कनिष्का यादव, कु. पल्लवी सिसौदिया, कु. शैलजा चतुर्वेदी, कु. माही वाजपेयी, श्री सौरभ सक्सेना पौध-रोपण में शामिल हुए। मुख्यमंत्री श्री चौहान के साथ भोपाल के गांधी नगर क्षेत्र के समाजसेवी श्री योगेश वासवानी ने भी अपने जन्म-दिवस पर पौधा लगाया। श्री महावीर सिंह, श्री शमशेर सिंह और श्री अभय तिवारी भी पौध-रोपण में शामिल हुए।

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने स्कूली बालिकाओं (भांजियों) से बातचीत भी की। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने बालिकाओं से उनकी पढ़ाई के बारे में पूछा बालिकाओं ने बताया कि वे नियमित रूप से अध्ययन कर रही हैं और आपकी तरह बनना चाहती हैं। मामा, आप बताएँ कि आपको इतना कार्य करने की प्रेरणा कहाँ से मिलती है। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि प्रेरणा अंतरात्मा से मिलती है। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने बालिकाओं को युधिष्ठिर और यक्ष के मध्य हुए संवाद की कथा सुनाई, जिसमें कहा गया है कि जितना भी जीवन है वह सार्थक हो। जीवन को उद्देश्यपूर्ण बनाया जाए। युधिष्ठिर और यक्ष की कथा में वर्णित बातचीत के प्रसंगों में पूछे गए एक प्रश्न "संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है?" का उत्तर है कि "जो भी व्यक्ति जन्म लेता है उसकी मृत्यु अवश्यंभावी है", लेकिन मनुष्य का व्यवहार ऐसा होता है कि मानो वह यहाँ सदैव रहने के लिए आया है। इसलिए मनुष्य को जितना जीवन है, सद्कार्यों में लगाना चाहिए।

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि स्वामी विवेकानंद कहते थे कि मनुष्य सिर्फ हाड़-माँस का पुतला नहीं बल्कि अनंत शक्तियों का स्वामी है। वह जो चाहे बन सकता है। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि पढ़ाई मेडिकल की हो, इंजीनियरिंग की हो या कोई अन्य, पहले रोडमेप बनाएँ फिर परिश्रम करें। दृढ़ निश्चय से सफलता की मंजिल पर पहुँचा जा सकता हैं।

पौधों का महत्व

आज लगाया गया मौलश्री एक औषधीय वृक्ष है, इसका सदियों से आयुर्वेद में उपयोग होता आ रहा है। एंटीबायोटिक तत्वों से भरपूर नीम को सर्वोच्च औषधि के रूप में जाना जाता है। कचनार सुंदर फूलों वाला वृक्ष है। प्रकृति ने कई पेड़-पौधों को औषधीय गुणों से भरपूर रखा है, इन्हीं में से कचनार एक है।
 

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