देश और मध्यप्रदेश की राजनीति में बड़े कद रखने वाले कद्दावर नेता कमलनाथ के भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने की खबर इन दिनों मीडिया में काफी सुर्खियां बटेर रही हैं। खुद कमलनाथ भी ऐसी खबरों को लेकर कोई खंडन नहीं कर रहे हैं जिससे लगता है कि उनका भाजपा में जाने का मन बन चुका है और संभवत: वह अपने बेटे समेत भाजपा को ज्वाइन कर सकते हैं। कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ ने भी सोशल मीडिया पर एक्स पर भी अपनी पहचान से कांग्र्रेस को हटा दिया है। भारत के साथ मध्यप्रदेश और कमलनाथ के गृह जिले छिंदवाड़ा में सबसे मजबूत पकड़ रखने वाले इस राजनीतिक परिवार के पाला बदलने की खबरों को राजनीति में एक भूचाल के रूप में छायी हुई है। इसे राजनीतिक हलकों में बड़ी राजनीतिक घटना के रूप में लिया जा रहा है।
कमलनाथ को अपना तीसरा बेटा मानती थी इंदिरा गांधी
1979 में मोरारजी देसाई की अगुआई वाली सरकार से मुकाबले के दौरान जिस तरह कमलनाथ ने भूमिका निभाई उससे इंदिरा गांधी बेहद खुश थीं। 1946 में कानपुर के एक कारोबारी परिवार में जन्मे कमलनाथ देहरादून के प्रसिद्ध दून स्कूल में पढ़े थे। संजय गांधी कमलनाथ के सहपाठी थे। दून स्कूल में हुई यह दोस्ती की वजह से कमलनाथ गांधी परिवार के बेहद करीब आ गए। संजय के साथ ही वह राजीव गांधी के भी बेहद करीबी रहे। संजय और राजीव गांधी के बाद सोनिया गांधी के भी वे उतने ही भरोसेमंद बने रहे। 1980 में कमलनाथ को पहली बार छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ाया गया था। खुद इंदिरा गांधी कमलनाथ के नामांकन के वक्त छिंदवाड़ा पहुंची थीं और उन्होंने तब कमलनाथ को अपना तीसरा बेटा कहकर संबोधित किया था। बताया जाता है कि इसके बाद भी कई मौकों पर इंदिरा गांधी ने कमलनाथ का परिचय अपने तीसरे बेटे के रूप में कराया।
खुद कमलनाथ ने एक बार कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए जब उस दौर को याद किया तो कहा, 1977 से 1980 तक यह माना जाता था कि इंदिरा गांधी कभी सत्ता में नहीं लौटेंगी। हम तब जेल जाते थे। जब इंदिरा गांधी जेल गईं, कमलनाथ भी जेल गया। जब संजय गांधी जेल गए, मैं भी गया। सातवीं लोकसभा में तब कमलनाथ समेत कुछ अन्य युवा सांसदों की संजय के छोड़े कहकर आलोचना की जाती थी। उस दौर में प्रचलित रहे एक नारे से भी कमलनाथ और गांधी परिवार के रिश्ते का पता चलता है। यह नारा था- इंदिरा गांधी के दो हाथ, संजय गांधी-कमलनाथ। आपातकाल और 1984 के सिख विरोधी दंगों में कथित भूमिका को लेकर कमलनाथ विवादों में रहे।
सोशल मीडिया पर लगातार बदल रही है प्रोफाइल
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और सांसद नकुलनाथ ने सोशल मीडिया पर अपनी प्रोफाइल बदल दी है. इसके बाद कमलनाथ और नकुलनाथ के समर्थक भी लगातार अपनी प्रोफाइल बदल रहे हैं. प्रदेश के पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने भी सोशल मीडिया पर अपनी प्रोफाइल बदल दी है. वे भी देश की राजधानी दिल्ली पहुंच गए हैं. इसी बीच अटकलों का बाजार और भी गर्म हो गया है.
कांग्रेस के ये नेता भी पाला बदलने को तैयार!
लोकसभा चुनाव से पहले मध्य प्रदेश में सियासी पारा चढ़ा हुआ है. यहां कांग्रेस के कद्दावर नेता के दल बदलने की अटकलें चल रही हैं. बस घोषणा का इंतजार हो रहा है. पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के दल बदलने की चर्चाओं के बीच कांग्रेस के नेता भी निगाह जमाए हुए हैं. मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के गृह नगर उज्जैन के कांग्रेस शहर अध्यक्ष रवि भदौरिया का कहना है कि कमलनाथ जहां जाएंगे वहां वे रहेंगे. उन्होंने कहा कि कमलनाथ अगर पार्टी बदलते हैं तो वे भी उनके साथ पार्टी बदल लेंगे. भदौरिया ने कहा कि व्यक्तिगत और राजनीतिक रूप से वे हमेशा कमलनाथ के साथ है.
कमलनाथ के कांग्रेस से नाराज होने के पांच कारण
1. विधानसभा की हार का ठीकराः मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने कमलनाथ के नेतृत्व में चुनाव लड़ा। प्रदेश की 230 में से भाजपा ने 163, कांग्रेस ने 66 और भारत आदिवासी पार्टी ने एक सीट जीती थी। कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में हार का ठीकरा कमलनाथ पर फोड़ दिया। उन्हें इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया। अन्य नेताओं ने भी उन्हें अलग-थलग कर दिया।
2. अचानक अध्यक्ष पद से हटायाः विधानसभा चुनावों में हार के बाद कांग्रेस ने एकाएक अपना प्रदेश अध्यक्ष बदल दिया। राहुल गांधी के करीबी रहे जीतू पटवारी को प्रदेश कांग्रेस की बागड़ोर सौंपी गई। न तो कमलनाथ से रायशुमारी हुई और न ही उन्हें बताया गया और अचानक उन्हें बदलने का फरमान जारी हो गया। इससे भी कमलनाथ आहत हुए थे। भले ही सार्वजनिक मंच पर उन्होंने इसे छिपाया, लेकिन नाराजगी नहीं छिपा सके।
3. केंद्र की राजनीति करना चाहते थेः कमलनाथ की सक्रियता हमेशा से केंद्रीय राजनीति में रही है। 2018 के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले उन्हें मध्य प्रदेश में भेजा गया था। जब सरकार चली गई तो लगा कि उन्हें फिर से दिल्ली बुला लिया जाएगा। इसके विपरीत पार्टी ने उन्हें मध्य प्रदेश में ही उलझाए रखा। 2023 के विधानसभा चुनावों में हार के बाद कमलनाथ फिर दिल्ली जाना चाहते थे, लेकिन पार्टी ने उनकी नहीं सुनी।
4. राज्यसभा टिकट नहीं मिलाः कमलनाथ राज्यसभा का चुनाव लड़कर केंद्रीय राजनीति का हिस्सा बनना चाहते थे। उन्होंने कांग्रेस विधायकों के लिए एक डिनर भी रखा था। तब पार्टी ने मध्य प्रदेश से राज्यसभा के लिए सोनिया गांधी को चुनाव लड़ने का आग्रह किया। जब सोनिया गांधी ने राजस्थान को चुना तो दिग्विजय सिंह के समर्थक अशोक सिंह को राज्यसभा का उम्मीदवार बना दिया गया। यह पूर्व मुख्यमंत्री को अच्छा नहीं लगा।
5. चुनावों में दिग्विजय सिंह से अनबनः विधानसभा चुनावों के दौरान भाजपा से आए कुछ विधायकों और पूर्व विधायकों के टिकट को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से भी कमलनाथ की अनबन हुई थी। कमलनाथ का एक वीडियो भी वायरल हुआ था, जिसमें वह टिकट मांग रहे नेताओं को कह रहे हैं कि जाकर दिग्विजय सिंह के कपड़े फाड़ो। कमलनाथ खेमे को लगता है कि यह सब पार्टी के एक धड़े ने किया। उनके खिलाफ माहौल बनाया गया।