MP News: 3.5 लाख करोड़ रुपये के कर्ज में फंसी एमपी सरकार ने इस वित्तीय वर्ष में कम से कम 370 योजनाएं रोक दी हैं, जिनमें स्कूल, आईटी उद्योग, कृषि ऋण, मेट्रो रेल और यहां तक कि प्रधानमंत्री सड़क योजना भी शामिल है। आधिकारिक तौर पर तो यही कहा जा रहा है कि कोई भी परियोजना बंद नहीं हुई है, लेकिन सच्चाई यह है कि सरकार के पास अब पैसा नहीं है। 8 दिसंबर को, विधानसभा चुनाव के नतीजे आए थे। इसमें बीजेपी को भारी जीत मिली। इसके ठीक पांच दिन बाद एमपी की कई योजनाएं रोक दी गईं। इनमें तीर्थ यात्रा, खेलो इंडिया एमपी, एक जिला एक उत्पाद योजना प्रबंधन, कृषि ऋण निपटान योजना, मेट्रो रेल, मॉडल स्कूलों की स्थापना, मेधावी छात्रों के लिए लैपटॉप, टंट्या भील मंदिर, राजा संग्राम सिंह पुरस्कार योजना, कॉलेज पुस्तकालयों का विकास, प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत आईटी पार्क, नौकरी मेले और कैरियर परामर्श, हवाई पट्टियों का विकास और सड़कों का नवीनीकरण और स्थापना शामिल हैं।
मध्य प्रदेश में योजनाएं चलाने के लिए फंड नहीं
नई भाजपा सरकार को फाइनेंसियल मैनेजमेंट में मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। उसे विरासत में 3.5 लाख करोड़ रुपए का कर्ज मिला है और एक महीने से भी कम समय में उसने 2,000 करोड़ रुपये का नया कर्ज लिया है। सूत्रों का कहना है कि जल्द ही दूसरे लोन के लिए कागजी कार्रवाई चल रही है। राज्य पर राजकोषीय दबाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब विधानसभा चुनाव के लिए आदर्श आचार संहिता लागू थी, तब खर्चों को पूरा करने के लिए राज्य ने 5,000 करोड़ रुपये का कर्ज लिया था। सूत्रों का कहना है कि चुनाव से पहले सरकार की चुनाव पूर्व घोषणाओं और योजनाओं से खर्च में कम से कम 10% की वृद्धि होने का अनुमान लगाया गया था। इसका असर साफ दिख रहा था। पिछले साल जुलाई में विधानसभा में 26,816.6 करोड़ रुपए का बजट पारित हुआ था। इसमें नए बाजार ऋण के ब्याज का भुगतान करने के लिए 762 करोड़ रुपये अलग रखे गए थे। अब अगले महीने लेखानुदान से पहले विधानसभा में दूसरा अनुपूरक बजट पारित किया जायेगा।
क्या कहते हैं अधिकारी
वित्त विभाग के अधिकारी यह बताने में विफल रहे कि सभी विभागों को 370 योजनाओं के लिए धन निकालने से पहले इसकी मंजूरी या सक्षम प्राधिकारी की मंजूरी लेने के लिए क्यों कहा गया है। एक अधिकारी ने कहा, ‘धन का उपयोग संसाधनों की उपलब्धता और सरकार की प्राथमिकता के अनुसार किया जाता है।’ एक और अधिकारी से बात की तो उन्होंने कहा कि ‘धन निकासी से पहले वित्त की अनुमति लेने का मतलब यह नहीं है कि योजना बंद हो गई है।
लाडली बहना योजना पर मंडरा रहा खतरा
सरकार की बड़ी वित्तीय जिम्मेदारियों में लाडली बहना योजना भी शामिल है, जिसके लिए हर महीने करीब 1,600 करोड़ रुपये की जरूरत होती है। यह योजना पिछले साल विधानसभा चुनाव से पहले शुरू की गई थी और इसे भाजपा के लिए गेम चेंजर बताया गया था। इसी वजह से लाडली बहना योजना को अब तक बंद नहीं किया जा सका। इस योजना के लिए अभी तक धन की कोई बाधा नहीं है। लेकिन हर महीने 160 करोड रुपए की जिम्मेदारी भाजपा सरकार आखिर कब तक उठाएगी यह भी देखने लायक होगा।