महाराष्ट्र : संजय राउत अपने बड़बोलेपन के लिए विख्यात हैं. वे कब क्या बोल दें, क्या कर दें, कुछ पता नहीं. अक्सर वे उसी डाल को काटने लगते हैं, जिस पर वे बैठे हैं. अब वे दो गज जमीन के नीचे की एक कहानी लेकर आए हैं. संजय पहले पत्रकार भी रहे हैं, इसलिए उनकी कल्पनाशीलता गजब की है. उनको यदि बॉलीवुड में कहानी लिखने का काम मिल जाए तो वे राम गोपाल वर्मा की हॉरर फिल्मों में चार चांद लगा देंगे. यूं तो रामसे ब्रदर्स तो हिंदी में हॉरर फिल्मों के जनक रहे हैं, पर उनकी नई पीढ़ी फिल्मों में सक्रिय नहीं है. साल 1970 में हॉरर फिल्मों का एक नया दौर शुरू हुआ था. उन सब में दो गज जमीन के नीचे की कहानियां होतीं. संजय राउत का ताजा बयान यह है कि महाराष्ट्र में मुंबई स्थित मुख्यमंत्री के बंगले वर्षा पर टोटका किया गया है. उनके अनुसार ये टोटका पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने किया है. इसीलिए मौजूदा मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस वर्षा में नहीं रह रहे हैं.
कामख्या में भैंसों की बलि
इक्कीसवीं सदी में कोई राजनेता इस तरह के बयान दे तो उसकी बुद्धि पर तरस ही आएगा. ऊपर से वे यह भी कह रहे हैं कि महाराष्ट्र में अंध विश्वास और टोने-टोटके माने जाने की परंपरा नहीं रही है. उन्होंने कहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे जब इस बंगले में रहते थे तब वे गुवाहाटी के कामख्या देवी मंदिर गए थे. वहां उन्होंने भैंसों की बलि दी थी. बाद में उन भैंसों के सींग इसी बंगले के अंदर जमीन में गाड़ दिए थे. अगर बंगले की खुदाई कराई जाए तो ये सींगें मिल जाएंगी. पता नहीं राउत ने यह बयान अपने नेता उद्धव ठाकरे से पूछ कर दिया है या यह उनके मन की उड़ान है. लेकिन इस बयान से संजय राउत की हंसी भी उड़ी है और महाराष्ट्र की राजनीति भी गरमा गई है. उनके इस आरोप पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पानी उड़ेल दिया है. मुख्यमंत्री ने बताया है, कि उनकी बेटी की दसवीं की परीक्षा है, इसलिए वे परिवार को डिस्टर्ब नहीं करना चाहते. उसकी परीक्षा होते ही वे वर्षा में शिफ्ट हो जाएंगे.
रात को ड्रैकुला न पढ़ने की हिदायत
मगर संजय ने इस तरह का बयान दे कर राजनीति और राजनेताओं के गड़े मुर्दे खूब उखाड़े हैं. खुल्लमखुल्ला भले कोई कुछ न कहे किंतु अंदरखाने इस तरह के अंध विश्वास दुनिया भर की पॉलिटिक्स में फैले हैं. हॉरर उपन्यास लिखने में ब्राम स्टोकर को महारत हासिल रही है. इस अंग्रेज उपन्यासकार ने 1897 में काउंट ड्रैकुला लिखकर तहलका मचा दिया था. यह इतना डरावना उपन्यास था कि उपन्यास के ऊपर ही लिखा रहता था, कृपया इसे रात को न पढ़ें. स्टोकर ने इसे पूर्वी योरोप के पास स्थित ट्रांसिल्वेनिया के सामंत के जीवन से प्रेरणा ली थी. स्टोकर का कहना था कि यह काउंट (सामंत) नर पिशाच था और मनुष्यों का खून पीता था. रोमानिया की पहाड़ियों के पूर्वी तरफ स्थित ट्रांसिल्वेनिया के इस काउंट के दुर्ग को अभी तक मनहूस और भुतहा बताया जाता है और लोग वहां जाने से परहेज करते हैं. व्लाद थर्ड नाम के इस शासक का जन्म 1431 में हुआ था. अपने पिता व्लाद सेकंड के ऑर्डर ऑफ द ड्रैगन में शामिल होने के कारण उसका कुल नाम ड्रैकुला पड़ा था.
ड्रैकुला मनुष्यों का खून पीता था!
ट्रांसिल्वेनिया के एक तरफ ईसाई बहुल पूर्वी योरोप था और दूसरी तरफ मुस्लिम ओटोमन साम्राज्य. ईसाई और मुसलमान फौजें आपस में खूब लड़ती थीं. एक तरह से यह धार्मिक उन्मादियों की लड़ाई थी. व्लाद थर्ड के पिता व्लाद सेकंड को 1442 में सुल्तान मुराद सेकंड ने संधि वार्ता के लिए बुलाया. वह अपने बेटों व्लाद थर्ड को और राडू को लेकर गया, पर संधि वार्ता के बहाने उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. बाद में व्लाद सेकंड को तो छोड़ दिया गया किंतु जमानत के तौर पर उसके बेटे व्लाद थर्ड को सुल्तान मुराद ने अपने पास रखा. सुल्तान की कैद में व्लाद थर्ड की परवरिश हुई. किंतु ट्रांसिल्वेनिया में उसके पिता की हत्या कर दी गई और बड़े भाई की भी. इसके बाद सुल्तान ने व्लाद थर्ड को रिहा कर दिया. ट्रांसिल्वेनिया में व्लाद थर्ड ने इतने अत्याचार देखे कि वह खुद ही नर पिशाच बन गया.
13 और 3 का फेर
बदले की आग में झुलसते हुए व्लाद थर्ड शत्रुओं का रक्त पीने लगा. इसलिए उसकी हवेली को भुतही कहा गया. स्टोकर ने इसी व्लाद थर्ड से प्रेरणा ली. इसके बाद से योरोप में और भी हॉरर उपन्यास लिखे गए. भारत में भी रक्त पीने वाले भूत-प्रेत की कहानियां अंग्रेज ही ले कर आए. उनके पहले जो यहां भूत प्रेतों की कहानियां प्रचलित थीं उनमें भूत मनुष्यों की मदद करने वाले थे. 13 की संख्या को अपशकुन मानने की कल्पना भी योरोप की है. भारतीय कथाओं में तीन की संख्या को अशुभ बताया गया है परंतु यह सिर्फ मनुष्यों की संख्या के लिए है. जैसे तीन लोग एक साथ प्रस्थान न करें. बाकी तीन मंजिला मकान या तीन की अनदेखी करना कभी नहीं रहा. बल्कि भारतीय परंपरा में तो 1, 3, 5, 7, 9 आदि विषम संख्याओं को शुभ माना गया है.
चंडीगढ़ और नोएडा के अपशकुन
ला कार्बूजिये नाम के फ्रेंच आर्कीटेक्ट ने जब चंडीगढ़ शहर का नक्शा बनाया तब उसने 60 सेक्टर में शहर को बांटा था. मगर उसने संख्या 59 रखी क्योंकि इन 60 में से 13 सेक्टर तो कहीं था ही नहीं. इस अंध विश्वास की देखादेखी नोएडा में भी सेक्टर 13 नहीं बनाया गया. नोएडा के बारे में तो ऐसा अपशकुन फैलाया गया कि कोई भी मुख्यमंत्री नोएडा आने से कतराता था. यहां के बारे में भ्रम था कि जो भी मुख्यमंत्री नोएडा आया वह दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बन पाएगा. वीर बहादुर सिंह 1988 में बतौर मुख्यमंत्री नोएडा गए और फिर वे मुख्यमंत्री नहीं बन पाए. इसके बाद नारायण दत्त तिवारी, मुलायम सिंह, कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह नोएडा नहीं गए. 2011 में मायावती नोएडा गईं और 2012 में नहीं लौट सकीं. 2012 से 2017 तक अखिलेश यादव प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे लेकिन वे एक बार भी नोएडा नहीं गए.
योगी ने तोड़ा भरम
अलबत्ता मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कई बार नोएडा गए. पहली बार वे 2018 में नोएडा गए थे और 2022 में उनकी वापसी भी हुई. अब शायद भविष्य में कोई भी मुख्यमंत्री इस अपशकुन पर विचार नहीं करेगा. उत्तर प्रदेश के झांसी जिले की सीमा पर स्थित मध्यप्रदेश के दतिया कस्बे में स्थित पीतांबरा पीठ पर जा कर मत्था टेकने वालों में कांग्रेस, भाजपा आदि सभी दलों के नेताओं की लाइन लगी रहती है. कुछ नेता वहां प्रतिद्वंदी को ध्वस्त करने के लिए विशेष पूजा भी करवाते हैं. कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार पर आरोप है कि उन्होंने केरल के राजराजेश्वर मंदिर में अघोरियों से विशेष पूजा करवाई. वे काला जादू कर मुख्यमंत्री सिद्धरामैया को हटवाना चाहते हैं. वैसे शिवकुमार काफी पूजा पाठ करते हैं. वे उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर भी गए और झारखंड के दिउड़ी मंदिर भी.
कौआ का अपशकुन
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारामैया भी कोई कम अंधविश्वासी नहीं हैं. उनकी कार के बोनट पर एक कौआ बैठ गया तो उन्होंने फौरन कार बदलवाने का हुक्म दिया था क्योंकि कार पर कौए का बैठना शुभ नहीं माना जाता. कोई भी और किसी भी पार्टी का राजनेता किसी भी अंध विश्वास को तोड़ने का प्रयास नहीं करता. इसके दो कारण हैं. एक तो नेताओं द्वारा ऐसे टोटके किए जाने से पब्लिक को लगता है कि यह नेता तो बिल्कुल अपना है. दूसरे उनके अंदर का भी अंधविश्वास तो होता है. लोकतंत्र में राजनेता की कुर्सी सर्वाधिक डांवाडोल रहती है इसलिए दुश्मनों को सामने से हटाना उसकी मजबूरी है. इसके लिए कुछ भी करना होगा, वह करेगा. किंतु संजय राउत खुद भी इन सब अंध विश्वासों को मानते हैं लेकिन विरोधी पर हमले का मौका भला वे क्यों चूकें!