Saturday, July 27, 2024
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खतरनाक सांपों से जहर निकालने में माहिर ये जनजाति ?, जानें इनका इतिहास

Know About Irula Tribe: जनजात‍ि के लोगों ने इरुला स्नेक कैचर्स इंडस्ट्रियल को-ऑपरेटिव सोसाइटी बनाई है। यह सांपों के जहर इकट्ठा करने वाली दुनिया की सबसे बड़ी सोसाइटी में से एक है।1978 में स्थापित इस सोसायटी में सैकड़ों सदस्य हैं। ये लोग जो जहर न‍िकालते हैं, उन्‍हें फार्मा कंपनियों को महंगी कीमत पर बेचा जाता है। यह काम सरकार की अनुमति से किया जाता है ताकि इस जहर से एंटी वेनम इंजेक्‍शन बनाया जा सके। सांप सामने देखकर कोई भी कांप जाए। लेकिन दक्ष‍िण भारत की इरुला जनजात‍ि (Irula Tribe) के लोगों के लिए यह बच्‍चों का खेल है। किंग कोबरा और करैत जैसे सांपों को वे ऐसे उठा लेते हैं, जैसे किसी बच्‍चे को गोद में उठा रहे हों। उनकी गर्दन दबाकर पल भर में ही जहर निकाल लेते हैं। यह परंपरा आज की नहीं बल्‍क‍ि सद‍ियों पुरानी है। आप जानकर हैरान होंगे कि सांप डंसने पर जो एंटी वेनम इंजेक्‍शन लगाया जाता है, उसके लिए जहर यही लोग उपलब्‍ध कराते हैं। आइए जानते हैं इस जनजात‍ि के बारे में।

इरुला का इतिहास

इरुला का इतिहास एक शिकारी जनजाति की जड़ों से जुड़ा है। आजादी से पहले यह जनजात‍ि अंग्रेजों को सांप बेचती थी, क्‍योंकि उन्‍हें सांप की खाल पसंद थी। लेकिन 1972 में वन्‍य जीव संरक्षण कानून आने के बाद सांप के श‍िकार पर पाबंदी लगा दी गई। इसकी वजह से इनकी कमाई बंद हो गई। इरुला जनजाति (Irula Tribe) के लोग दक्षिणी भारत के तीन राज्‍यों केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में फैले हुए हैं। इनकी संख्‍या 3 लाख के करीब बताई जाती है। सांपों का पता लगाने और पल भर में उन्‍हें पकड़ने में इन्‍हें महारथ हास‍िल है। कई पीढियों से लोग यह काम कर रहे हैं। बच्‍चे, बूढ़े, जवान और यहां तक‍ क‍ि मह‍िलाएं भी सांप पकड़ने का काम बखूबी करती हैं।

हर साल इन्‍हें 13,000 सांप पकड़ने की अनुमत‍ि

1978 में साइंट‍िस्‍ट रोमुलस व्हिटेकर ने इरुलर के साथ गहरी दोस्ती बनाई और एक सम‍ित‍ि की स्‍थापना की। जनजात‍ि के लोगों को सांपों को पकड़ने की जिम्मेदारी सौंपी गई। इसके बाद से वे वे सांप के शिकारियों से जीवनरक्षक बन गए। सम‍िति के लोगों को सरकारी लाइसेंस मिला हुआ है। हर साल इन्‍हें 13,000 सांप पकड़ने की अनुमत‍ि है। इससे 25 करोड़ रुपये तक की कमाई हो जाती है। इलाके में अत्यधिक गर्मी होती है, इसकी वजह से सांपों को चौड़े किनारों वाले मिट्टी के बर्तनों में रखा जाता है।बर्तन को सूती कपड़े से ढका जाता है और एक धागे से बांध दिया जाता है। सम‍ित‍ि के लोग एक सांप को केवल 21 दिन तक ही रख सकते हैं। इस दौरान उनका जहर 4 बार निकाला जाता है।

इरुला जनजाति के लोगों के लिए सांपों का जहर न‍िकालना बच्‍चों का खेल

भारत में सांप का जहर निकालने के लिए‍ 4 सांपों को पकड़ने की अनुमत‍ि है। इनमें किंग कोबरा, रसेल वाइपर, करैत और इंड‍ियन सॉ स्‍क्रेल्‍ड वाइपर जैसे जहरीले सांप हैं। ये इतने खतरनाक हैं कि इनके जहर की एक बूंद भी किसी को भी मौत की नींद सुला सकती है। लेकिन इरुला जनजाति के लोगों के लिए इनका जहर न‍िकालना बच्‍चों का खेल है। जहां भी इन्‍हें जहरीले सांप नजर आते हैं, ये तुरंत पहुंच जाते हैं और पलभर में उन्‍हें दबोच लेते हैं। इनके पास ये कला है कि सीधे सांप को गले से पकड़कर उसका जहर उलगवा लेते हैं। दरअसल, सांप को उसके सिर से पकड़ा जाता है और एक जार के मुहाने पर उसके दांत लगाए जाते हैं ताकि वह तेजी से दांत गड़ाए। इसके नुकीले दांतों से जहर टपकता है और जार में इकट्ठा हो जाता है।

यह काम सरकार की अनुमति से किया जाता

जनजात‍ि के लोगों ने इरुला स्नेक कैचर्स इंडस्ट्रियल को-ऑपरेटिव सोसाइटी बनाई है। यह सांप के जहर इकट्ठा करने वाली दुनिया की सबसे बड़ी सोसाइटी में से एक है। 1978 में स्थापित इस सोसायटी में सैकड़ों सदस्य हैं. ये लोग जो जहर न‍िकालते हैं, उन्‍हें फार्मा कंपनियों को महंगी कीमत पर बेचा जाता है। यह काम सरकार की अनुमति से किया जाता है ताकि इस जहर से एंटी वेनम इंजेक्‍शन बनाया जा सके। इरुलर का इतिहास एक शिकारी जनजाति की जड़ों से जुड़ा है।आजादी से पहले यह जनजात‍ि अंग्रेजों को सांप बेचती थी, क्‍योंकि उन्‍हें सांप की खाल पसंद थी। लेकिन 1972 में वन्‍य जीव संरक्षण कानून आने के बाद सांप के श‍िकार पर पाबंदी लगा दी गई। इसकी वजह से इनकी कमाई बंद हो गई। 1978 में साइंट‍िस्‍ट रोमुलस व्हिटेकर ने इरुलर के साथ गहरी दोस्ती बनाई और एक सम‍ित‍ि की स्‍थापना की. जनजात‍ि के लोगों को सांपों को पकड़ने की जिम्मेदारी सौंपी गई। इसके बाद से वे वे सांप के शिकारियों से जीवनरक्षक बन गए। सम‍िति के लोगों को सरकारी लाइसेंस मिला हुआ है। हर साल इन्‍हें 13,000 सांप पकड़ने की अनुमत‍ि है। इससे 25 करोड़ रुपये तक की कमाई हो जाती है।

इलाके में अत्यधिक गर्मी होती है, इसकी वजह से सांपों को चौड़े किनारों वाले मिट्टी के बर्तनों में रखा जाता है। बर्तन को सूती कपड़े से ढका जाता है और एक धागे से बांध दिया जाता है। सम‍ित‍ि के लोग एक सांप को केवल 21 दिन तक ही रख सकते हैं। इस दौरान उनका जहर 4 बार निकाला जाता है।

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