फतेहपुर| जिलाध्यक्ष और कानपुर के क्षेत्रीय अध्यक्ष पर पद के लिए पैसे वसूलने का आरोप लगने के बाद पार्टी विद डिफरेंस का दावा करने वाली भाजपा के दामन पर गहरे दाग उभर आए हैं। इससे पहले निकाय व पंचायत चुनाव में टिकट दिलाने और लोकसभा चुनाव के पहले कुछ जिलों में अध्यक्षों की नियुक्ति में भी पैसे के लेनदेन के आरोप लगे थे। ऐसे में पार्टी के सामने दामन को दागदार होने से बचाने की बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है।फतेहपुर का मामला सार्वजनिक होने के बाद सांगठनिक चुनाव की प्रक्रिया सवालों के घेरे में आ गई है। ताजा प्रकरण में बांदा के रहने वाले भाजयुमो के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष अजित गुप्ता ने क्षेत्रीय अध्यक्ष प्रकाश पाल और फतेहपुर के जिलाध्यक्ष मुखलाल पाल पर पार्टी फंड के नाम पर उगाही के आरोप लगाए। इस पर प्रदेश नेतृत्व ने सख्ती दिखाई है। भाजपा में पैसे लेकर पद देने का ठेका लेने की शिकायत पहली बार नहीं हुई है। लोकसभा चुनाव से पहले पीलीभीत, मऊ, आजमगढ़ समेत कई जिलों में अध्यक्षों की नियुक्ति के समय कई क्षेत्रीय अध्यक्षों और विधायकों पर पैसा लेने के आरोप लगे थे। हालांकि, किसी ने सार्वजनिक आरोप नहीं लगाया था।
दिल्ली भी पहुंच रहीं शिकायतें
सूत्रों की मानें तो कानपुर ही नहीं, बल्कि अवध, गोरखपुर, काशी और पश्चिम क्षेत्र में पदाधिकारियों की नियुक्तियों में पैसे के लेनदेन की चर्चा है। अंदरखाने भदोही, मऊ, अमेठी, मुरादाबाद, बिजनौर, आजमगढ़ समेत करीब 30-35 जिलों में पैसे लेकर जिलाध्यक्ष बनाने की चर्चा है। कई शिकायतें सीधे दिल्ली पहुंचने की बात भी कही जा रही है।
तार-तार हुए निष्पक्ष चुनाव के दावे
आरोपों की सच्चाई जांच के बाद ही सामने आएगी, लेकिन तय है कि निष्पक्ष और पारदर्शी संगठनात्मक चुनाव कराने के भाजपा के दावे तार-तार हो गए हैं। राजनीतिक मामलों के जानकार जब कोई पार्टी लगातार सत्ता में बनी रहती है तो भ्रष्टाचार के मामले बढ़ने ही लगते हैं। लोगों को लगता है कि सत्ताधारी दल में पद पाने से लाभ तय है। ऐसे में वे हर कीमत अदा करने में संकोच नहीं करते। कांग्रेस पर भी 70-80 के दशक में ऐसे आरोप लगते रहे हैं।
कमजोर तो नहीं पड़ रही संघ की पकड़
लंबे समय से केंद्र और प्रदेश की सत्ता पर काबिज भाजपा के भीतर पैसे से पद बांटने के आरोप सार्वजनिक होने से कई सवाल खड़े हो रहे हैं। पहले भाजपा के काडर और राजनीतिक गतिविधियों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कड़ी नजर रहती थी। अब जिस तरह से पार्टी के आंतरिक अनुशासन में खामियां दिख रही हैं, उससे माना जाने लगा है कि ये संघ की पार्टी पर पकड़ कमजोर होने का संकेत है।