सागर: शहर की खूबसूरत लाखा बंजारा झील के सामने स्थापित 270 साल पुराने भव्य मराठा कालीन वृंदावन बाग मंदिर मठ का नया स्वरूप बुंदेलखंड में मथुरा वृंदावन की अनुभूति कराएगा. करीब 150 करोड़ की राशि से मंदिर का सौंदर्यीकरण किया जा रहा है. शहर के बीचोबीच 12 एकड़ परिसर में डेढ़ एकड़ में बने मंदिर का विस्तार 8 एकड़ में किया जाएगा.
मंदिर को भव्य और दिव्य स्वरूप प्रदान करने कई निर्माण कार्य किए जा रहे हैं. यहां विशाल कारीडोर बनाकर तीन तरह के परिक्रमा मार्ग, संत निवास ध्यान मंडपम जैसे कार्य प्रस्तावित हैं. वृंंदावन की तरह परिक्रमा पथ, रजपथ और गजपथ का निर्माण हो रहा है. परिक्रमा मार्ग से निर्माण कार्य की शुरूआत हो गयी है. कुछ ही सालों में मंदिर का अलौकिक स्वरूप आकर्षण का केंद्र होगा.
ढाई सौ साल पुराना है वृंंदावन बाग मंदिर मठ
करीब 270 साल पहले जब सागर में मराठा शासन करते थे, तब वृंदावन से आए वृंदावनदास जी महाराज ने मंदिर की आधारशिला रखी थी. वृंदावन बाग मठ मध्य भारत का अकेला ऐसा मठ है, जहां पर देश के अलग-अलग कोने से साधु संत आकर विभिन्न त्योहार और आयोजन की शोभा बढ़ाते हैं. पांचवी गादी के महंत श्याम बिहारी जी महाराज के द्वारा इसका निर्माण कराया गया था. वर्तमान में दसवीं गादी के महंत नरहरी दास ने मंदिर का सौंदर्यीकरण का कार्य शुरू किया है.
मंदिर में होने वाले निर्माण कार्य
विशाल कारीडोर – मंदिर के चारों ओर डेढ़ किलोमीटर लंबा कॉरीडोर बनाया जाएगा.
परिक्रमा मार्ग – 780 मीटर लंबे परिक्रमा मार्ग में तीन तरह के पथ तैयार किए जा रहे हैं.
परिक्रमा पथ – भक्तों और श्रद्धालुओं के लिए परिक्रमा पथ का निर्माण मथुरा और वृंंदावन की तरह.
रजपथ – वृंदावन की अनुभूति कराने रजपथ के लिए वृंदावन से रज आएगी, जिस पर साधु-संत परिक्रमा करेंगे.
गज पथ – हथिनी लक्ष्मी की परिक्रमा के लिए हैदराबाद से बुच स्टोन, और रेलिंग के पाइप और जंजीरें इंदौर से आएंगी.
– संत निवास, ध्यान मंडपम जैसे निर्माण कार्य प्रस्तावित हैं.
– सुबह और शाम को होने वाली आरती का सीधा प्रसारण होगा.
– निधिवन में एक हजार से ज्यादा श्रद्धालुओं बैठने की व्यवस्था होगी.
क्या कहते हैं मंदिर के महंत
महंत नरहरी दास बताते हैं कि, "वृंंदावन बाग मठ उत्तर मध्य भारत का प्रतिष्ठित मठ है. लाखा बंजारा झील के सामने होने से इसका सौंदर्य और भी बढ़ जाता है. यहां आने वाले भक्तों और श्रद्धालुओं को मथुरा-वृंदावन सी अनुभूति के लिए मंदिर की जमा पूंजी और मंदिर की निजी संपत्ति से होने वाली आय और श्रृद्धालुओं के दान की राशि से सौंदर्यीकरण किया जा रहा है.''