रीवा का रहस्यमयी शिवधाम, यहां श्मशान में बसते हैं भोलेनाथ, बढ़ता है शिवलिंग का आकार

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रीवा: देशभर में शिव के अनेकों धाम स्थापित है. प्रत्येक शिवधामों की अलग-अलग कथाए हैं. जिस प्रकार से सभी शिव धाम एक दूसरे से भिन्न है, ठीक उसी प्रकार से इन शिवधामों की चमात्कारिक घटनाएं भी एक दूसरे से एकदम अलग हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महादेव को श्मशान काफी प्रिय है. भारत कि भूमि में कई ऐसे शिवधाम हैं, जो श्मशान में स्थापित हैं, फिर वह चाहे काशी विश्वनाथ धाम हो या फिर बरेली के मरघट का महादेव मंदिर हो, उज्जैन का चक्रतीर्थ श्मशान घाट में बना शिवधाम ही क्यों न हो इन शिव धामों के चमत्कारिक किस्से इन्हें और भी अलौकिक बनाते हैं.

विंध्य की धरती ऋषि मुनियों की तपोभूमि

अब बात करते हैं ऐतिहासिक विंध्य के धरती की. इस क्षेत्र को ऋषि मुनियों की तपोभूमि भी कहा जाता है. विंध्य की पर्वतमालाएं, नदियां और वनक्षेत्र आज भी उन दिव्य अनुभवों के साक्षी हैं. यहां हर दिशा में कोई न कोई चमत्कारी धाम या रहस्यमयी कथा जीवंत है. इन स्थलों से जुड़ी लोकगाथाएं और चमत्कार आज भी श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बनी हुई हैं. ईटीवी भारत आपको ऐसे ही एक दिव्य और चमत्कारिक शिवधाम के बारे में बताने जा रहा है. जिसे सुनकर आप दंग रह जाएंगे.

अनोखा छतुरिया नाथ शिवधाम

हम बात कर रहे हैं शिव के उस अलौकिक छतुरिया नाथ शिव धाम की जो रीवा शहर से केवल 10 किलोमीटर दूर रांची झारखण्ड नेशनल हाइवे में स्थित है. यह गुढ़ विधानसभा क्षेत्र के उमरी गांव में मौजूद है. इस अनोखे छतुरिया नाथ शिव धाम का सीधा कनेक्शन उस रौरियानाथ महादेवालय प्राचीन शिवधाम से जुड़ा है. बीते कुछ माह पूर्व ही रौरियानाथ शिवधाम की अद्भुत कहानी उसकी दिव्यता, भव्यता और मंदिर की चमात्कारिक घटनाओं के साथ ही अनसुलझे रहस्य की कहानी ईटीवी भारत ने आप से साझा की थी.

महंत के पूर्वजों ने कराया था छतुरियानाथ शिवधाम का निर्माण

इस धाम के महंत रामाचार्य पाठक के अनुसार "उनके पूर्वजों ने ही रौरियानाथ महादेवालय का निर्माण 9वीं शताब्दी के आस पास कराया था. रौरियानाथ धाम मंदिर कर्चुली कालीन का है और पंचायतन पद्धति का यह मंदिर नाथ संप्रदाय से जुड़ा है. मंदिर के महंत के अनुसार पूर्वजों ने इसका जन सहयोग से सृजन किया था. अब अगर बात करें रौरियानाथ शिव मंदिर से ठीक 1 किलोमीटर की दूरी पर उमरी गांव में स्थित छतुरिया नाथ शिव धाम की, तो यहां स्थापित शिव मंदिर का निर्माण भी महंत रामाचार्य पाठक के पूर्वजो ने ही करवाया था.

शिव ने महंत के बाबा को दिया था स्वप्न

इस शिवधाम का कोई उल्लेख न तो किसी ग्रंथ में है और न ही इसका लिखित कोई प्रमाण है, लेकिन महंत रामाचार्य पाठक के अनुसार "छतुरियानाथ शिव धाम का निर्माण अब से लगभग 150 से 200 वर्ष पूर्व हुआ था. इस मंदिर का निर्माण उनके बाबा छत्ते पाठक ने करावाया था. महंत रामाचार्य के पूर्वज कई पीढ़ियों से शिव के उपासक हैं. स्वयं शिव ने बाबा छत्ते पाठक को स्वप्न दिया और खेत में स्थित श्मशान घाट के पास तालाब में शिवलिंग के होने की जानकारी देते हुए शिवलिंग को बाहर निकालकर उसे मंदिर में स्थापित करने के लिए कहा था. महंत के पूर्वजों ने जब तालाब में जाकर खोजबीन शुरू की तो, उन्हें एक छोटे आकार की दिव्य शिवलिंग प्राप्त हुई. जिसका वजन लगभग 1 से 2 किलो के आसपास था."

शिवलिंग का हर वर्ष बढ़ता है आकार

श्मशान घाट पर स्थित तालाब से प्राप्त हुई शिवलिंग को महंत के पूर्वजों ने काशी विश्वनाथ धाम की तरह ही उसी श्मशान में स्थापित करने की योजना बनाई. छोटे से आकार का एक मंदिर का निर्माण करवाया और विधिवत पूजा अर्चना के साथ दिव्य शिवलिंग को मंदिर में स्थापित किया. महंत रामाचार्य पाठक का दावा है की तालाब से प्राप्त हुई छोटे आकार की शिवलिंग का वजन और आकार हर वर्ष लगातार बढ़ रहा है, जो किसी चमत्कार से कम नहीं है. तालाब से प्राप्त हुई शिवलिंग का वजन उस वक्त 1 से 2 किलो वजनी था, मगर वर्तमान में इस दिव्य शिवलिंग का वजन लगभग 25 से 30 किलो है.

सैकड़ों वर्ष पूर्व पठार क्षेत्र हुआ करता था उमरी गांव का इलाका

महंत रामाचार्य पाठक का कहना है की "जिस स्थान पर यह अलौकिक शिवलिंग विराजित है. कभी यह सम्पूर्ण इलाका पठार क्षेत्र हुआ करता था. श्मशान वाले भगवान शिव के इस धाम में कई ऐसी मुर्तियां स्थापित हैं, जो प्राचीनकाल की है. इनमे से एक मूर्ती पंच गौरी की है, जो के 6वीं शताब्दी की है. जबकि एक मूर्ती में शार्दुल पक्षी की आकृति बनी हुई है. जिसकी सवारी देवताओं द्वारा की जाती थी और यह मूर्ती 11वीं शताब्दी की है. इस पक्षी का वर्णन भी धर्मिक ग्रंथों में पाया जाता है.

संकट के समय ग्रामीणों की रक्षा करते हैं श्मशान मे विराजे शिव

महंत रामाचार्य बताते हैं कि "जब गांव के लोगों को किसी प्रकार संकट या रोग घेरता है, तब वह इसी श्मशान वाले शिव के शरण आते हैं. जिसके बाद स्वयं-भू अपने भक्तों के कष्ट हर लेते है. इस दिव्य स्थल पर कई चमत्कारिक घटना भी हो चुकी है. कई वर्ष पूर्व गांव का एक व्यक्ति कालरा की बीमारी से ग्रसित था. जब उसे मरणाशन हालत में शिव की चौखट पर लाकर लेटाकर कुएं का पानी पिलाया गया, तो वह बीमार व्यक्ति एक दम से स्वस्थ हो गया."

 

 

गांव में फैली थी हुलकी नाम की बीमारी

इसी तरह से एक बार उमरी गांव में हुलकी नाम की महामारी फैल गई, जिसे डायरिया कहा जाता है. इस बीमारी का प्रकोप इतना बढ़ा की लोगों की मृत्यु तक होने लगी. जिसके चलते पूरा गांव खाली हो गया. इसके बाद डायरिया के प्रकोप से बचने के लिए लोगों ने श्मशान वाले शिव की आराधना की. जिसके बाद उमरी गांव के लोगों को गंभीर बीमारी से निजात मिला. तभी से इस दिव्य शिव धाम की मान्यता और भी बढ़ गई.

श्मशान वाले शिव की आराधना से सभी मनोकामनाऐं होती है पूरी

महंत रमाचार्य पाठक बताते हैं की इस दिव्य स्थान में आकर श्मशान वाले शिव की आराधना करने वाले हर भक्तों की सभी मनोकामनाऐं पूर्ण होती है. श्रावणमास का महीना, महशिवरात्री पर्व या नागपंचमी का अवसर हो प्रत्येक मौके पर इस श्मशान वाले शिव धाम मे विशेष पूजा अर्चना की जाती है."