रक्षाबंधन 2025: राखी बांधने का शुभ मुहूर्त कब है? जानिए सही समय और परंपरा

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पटना : बिहार के औरंगाबाद जिले के हसपुरा प्रखंड स्थित कोईलवां गांव निवासी आचार्य पंडित लालमोहन शास्त्री ने बताया कि 9 अगस्त को श्रावणी पूजा, उपाकर्म (जनेऊ संस्कार) और रक्षाबंधन का अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक एवं सांस्कृतिक दिवस है। उन्होंने बताया कि शुक्रवार 8 अगस्त को सत्यनारायण व्रत कथा का समय संध्याकाल में रहेगा। इसी रात 1:50 बजे से पूर्णिमा का आरंभ होगा, जो शनिवार 9 अगस्त को दोपहर 1:23 बजे तक रहेगा।

इसके बाद भद्रा नक्षत्र इसी दिन रात 1:40 बजे तक पाताल लोक में रहेगा। चूंकि भद्रा काल में रक्षाबंधन और अग्निकर्म वर्जित होता है, इसलिए शनिवार 9 अगस्त को सुबह 6:32 से दोपहर 1:23 बजे तक रक्षाबंधन का सर्वोत्तम मुहूर्त माना गया है। इस अवधि में श्रवण (विजय) नक्षत्र, आयुष्मान व सौभाग्य योग, साथ ही भव करण और औदायिका का स्थिर योग बन रहा है। इसके अलावा शनि देव की राशि कुंभ का संयोग भी बन रहा है, जो भाई-बहन के स्नेह और रक्षा के लिए अत्यंत शुभ है। इसी समय बहनों के लिए भाइयों को और ब्राह्मणों के लिए अपने यजमानों को रक्षा सूत्र बांधना अत्यंत श्रेयस्कर है। इस दिन श्रावणी उपाकर्म (जनेऊ संस्कार) के साथ ही रक्षा सूत्र पूजन कर सभी पुरोहित ब्राह्मणों को शुभ मुहूर्त में अपने यजमानों को जनेऊ देकर रक्षा सूत्र बांधना चाहिए।

आचार्य शास्त्री ने बताया कि इस दिन बहनें अपने भाई की दाईं कलाई पर राखी बांधें और भाई उन्हें स्नेह व सम्मान स्वरूप उपहार देकर परस्पर प्रेम भाव को व्यक्त करें। यही परंपरा है और यही विधान भी। साथ ही विप्रजन भी अपने यजमानों को रक्षा सूत्र अवश्य बांधें और यजमानों को भी यह कर्तव्य निभाना चाहिए कि वे ब्राह्मणों को यथासंभव दक्षिणा प्रदान करें। पंडित शास्त्री ने बताया कि देवासुर संग्राम के समय देवराज इंद्र की रक्षा के लिए उनकी पत्नी इंद्राणी शची ने उन्हें विजय तिलक लगाकर रक्षा सूत्र बांधा था। साथ ही सिंधु-सुता लक्ष्मी ने अपने पति भगवान विष्णु को राजा बली के बंधन से छुड़ाने के लिए दैत्यराज बली को रक्षा सूत्र बांधा था।

18वीं शताब्दी में कीकट प्रदेश (वर्तमान मगध क्षेत्र) में स्थित दाउदनगर से गया मार्ग में बने शिव मंदिर, कुआं, धर्मशाला और गयाजी धाम में विष्णुपद मंदिर का जीर्णोद्धार कराने वाली इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने नेपाल नरेश को राखी व भगवान पशुपतिनाथ की पूजा सामग्री अपने पुरोहित के माध्यम से भेजी थी। इससे प्रसन्न होकर नेपाल नरेश ने महारानी से स्नेहपूर्ण उपहार मांगने की इच्छा जताई। इस पर महारानी ने कहा कि यदि आप उपहार देना चाहें, तो पशुपतिनाथ मंदिर में प्रतिदिन प्रथम पूजा मेरी ओर से होनी चाहिए। नेपाल नरेश ने इसे सहर्ष स्वीकार किया और आज भी भारतीय द्वादश ज्योतिर्लिंग के साथ-साथ पशुपतिनाथ की प्रथम पूजा महारानी द्वारा नियुक्त ब्राह्मण पंडा द्वारा ही की जाती है।