प्रयागराज में गंगा-यमुना की बाढ़ से तबाही, 10 हजार लोग राहत शिविरों में

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प्रयागराज: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में गंगा और यमुना नदियों का जलस्तर पिछले 24 घंटों में लगभग डेढ़ मीटर कम हुआ है, लेकिन दोनों नदियां अभी भी खतरे के निशान से करीब एक मीटर ऊपर बह रही हैं। जलस्तर में प्रति घंटे 3 से 4 सेंटीमीटर की कमी दर्ज की जा रही है। हालांकि, बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की परेशानियां कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। गंदगी, कीचड़ और मलबे के कारण बदबू फैल रही है, जिससे संक्रामक बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। प्रशासन ने राहत और बचाव कार्य तेज किए हैं, लेकिन बाढ़ राहत शिविरों में रह रहे लोगों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों की स्थिति

प्रयागराज शहर के करीब 50 मोहल्लों और ग्रामीण क्षेत्रों के 73 गांवों व कस्बों में बाढ़ का पानी घुस चुका है। सदर क्षेत्र के कछार मऊ-सरैया, राजापुर देह माफी, बेली कछार, बघाड़ा जहरूद्दीन, शिवकुटी, चांदपुर सलोरी, दरियाबाद, म्योराबाद, करैली, गउघाट जैसे मोहल्ले बुरी तरह प्रभावित हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सोरांव, फाफामऊ, फूलपुर, करछना, मेजा, बारा और हंडिया तहसीलों के गांवों में गंगा और यमुना का पानी तबाही मचा रहा है। विशेष रूप से फूलपुर के बदरा और सोनौटी गांव टापू बन गए हैं, जहां 5,000 लोग पिछले 30 दिनों से फंसे हुए हैं।

राहत शिविरों में चुनौतियां

प्रशासन ने 97 बाढ़ राहत शिविर स्थापित किए हैं, जिनमें से 24 सक्रिय हैं। इनमें करीब 10,000 लोग शरण लिए हुए हैं, जिनमें 2,220 परिवार शामिल हैं। सदर क्षेत्र के शिविरों में ऐनीबेसेन्ट स्कूल (968 व्यक्ति), ऋषिकुल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय (550 व्यक्ति), और रीगल गेस्ट हाउस (600 व्यक्ति) प्रमुख हैं। हालांकि, शिविरों में भोजन की गुणवत्ता और मात्रा को लेकर असंतोष है। कई शरणार्थियों ने बासी खाना मिलने और पेयजल की कमी की शिकायत की है। टैंकर के पानी से पेट संबंधी बीमारियां बढ़ रही हैं। उमस, भीड़ और अपर्याप्त पंखों की वजह से रहने की स्थिति और खराब हो रही है।

स्कूल-कॉलेज बंद, पढ़ाई ठप

बाढ़ और भारी बारिश के कारण प्रयागराज में नर्सरी से इंटरमीडिएट तक के सभी स्कूल, कॉलेज और कोचिंग संस्थान 5 से 8 अगस्त तक बंद हैं। कई स्कूलों में बाढ़ का पानी घुस गया है, जबकि कुछ को राहत शिविरों में तब्दील किया गया है। प्रभावित स्कूलों में ऑनलाइन कक्षाएं चलाने के निर्देश दिए गए हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली और इंटरनेट की कमी के कारण पढ़ाई पूरी तरह ठप है।

राहत और बचाव

कार्यजिला प्रशासन, एनडीआरएफ, और एसडीआरएफ की टीमें बाढ़ में फंसे लोगों को निकालने में जुटी हैं। 30 नावों के साथ-साथ 10 अतिरिक्त नावें तैनात की गई हैं। जिलाधिकारी मनीष कुमार वर्मा ने बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों का दौरा कर खाद्यान्न, पशुओं के चारे और पेयजल की व्यवस्था के निर्देश दिए हैं। हालांकि, बिजली की कमी और 49 ट्रांसफॉर्मरों के जलमग्न होने से 250 मोहल्लों और गांवों में बिजली आपूर्ति ठप है, जिससे पानी निकासी और अन्य राहत कार्यों में बाधा आ रही है।

संक्रामक बीमारियों का खतरा

घटते जलस्तर के बाद बाढ़ प्रभावित मोहल्लों और गांवों में कीचड़, गंदगी, और मलबे की मोटी परत जमा हो गई है। छोटा बघाड़ा, दारागंज, और राजापुर जैसे क्षेत्रों में बदबू और जहरीले जीव-जंतुओं के कारण संक्रामक बीमारियों का डर बढ़ गया है। स्थानीय लोग 1978 और 2013 की भयावह बाढ़ की यादों से सहमे हुए हैं, जब जलस्तर क्रमशः 88 मीटर और 86.8 मीटर तक पहुंच गया था। प्रशासन ने सफाई और स्वास्थ्य सेवाओं पर ध्यान देने का आश्वासन दिया है, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि राहत कार्य अपर्याप्त हैं।

प्रशासनिक प्रयास और जनता की मांग

प्रशासन ने 88 बाढ़ चौकियां स्थापित की हैं और कंट्रोल रूम के जरिए निगरानी बढ़ा दी है। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने हेलिकॉप्टर से प्रभावित क्षेत्रों का निरीक्षण किया और अधिकारियों को हाई अलर्ट पर रहने के निर्देश दिए। फिर भी, स्थानीय लोगों और पार्षदों में प्रशासन के प्रति नाराजगी है, क्योंकि कई क्षेत्रों में राहत सामग्री और चिकित्सा सहायता समय पर नहीं पहुंच रही। ग्रामीणों ने अधिक नावों, स्वच्छ पेयजल, और तत्काल सफाई की मांग की है।