हम सभी जानते हैं कि पूजा-पाठ में आरती का खास महत्व होता है. मंदिर हो या घर, पूजा के अंत में आरती जरूर की जाती है. आरती सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि भगवान से जुड़ने का सुंदर तरीका है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आरती के समय आंखें बंद करनी चाहिए या खुली रखनी चाहिए? कई लोग श्रद्धा के भाव में आंखें बंद कर लेते हैं, लेकिन शास्त्रों और परंपरा के अनुसार यह तरीका सही नहीं माना जाता. वजह यह है कि आरती के दौरान भगवान को देखना और उनकी ज्योति का अनुभव करना ही पूजा का असली सार है, अगर हम आंखें बंद कर लें, तो यह मानो भगवान के सामने होते हुए भी उन्हें अनदेखा करना जैसा है. आइए जानते हैं ज्योतिषाचार्य रवि पराशर से आखिर क्यों आरती के समय आंखें खुली रखना जरूरी है और इसके पीछे क्या गहरा अर्थ छिपा है.
आरती के समय आंखें बंद क्यों न करें
आरती को भगवान का साक्षात स्वागत माना जाता है. मान्यता है कि जब हम आरती करते हैं, तो देवता वहां उपस्थित होते हैं. ऐसे में आंखें बंद करना ऐसा है जैसे हम उनसे मिलने का मौका गंवा दें. आरती करते समय आंखें खुली रखकर भगवान की मूर्ति, तस्वीर या ज्योति को एकटक निहारने से भक्ति भाव गहरा होता है और मन पूरी तरह भगवान पर केंद्रित रहता है.
इसके अलावा, जब हम भगवान की छवि देखते हैं, तो कई बार हमें दिव्य अनुभूति भी होती है. यह अनुभव केवल तभी संभव है जब हम आंखें खुली रखें. जहां मंत्र-जाप या ध्यान के समय आंखें बंद रखना अच्छा माना जाता है, वहीं आरती में आंखें खुली रखना जरूरी है, ताकि हम भगवान की ऊर्जा और आशीर्वाद को महसूस कर सकें.
आरती करने के सही नियम
1. खड़े होकर आरती करें – खड़े होकर आरती करना सम्मान और आदर का प्रतीक है. यह दर्शाता है कि हम पूरे मन से भगवान का स्वागत कर रहे हैं.
2. आरती की थाली में आवश्यक सामग्री रखें – दीपक के साथ फूल, कपूर और अक्षत रखना शुभ होता है. दीपक में पर्याप्त घी या तेल डालें ताकि वह बीच में न बुझे.
3. आरती घुमाने का सही तरीका – पहले भगवान के चरणों की ओर चार बार, नाभि की ओर दो बार और मुख की ओर एक बार दीपक घुमाएं. इसके बाद पूरे विग्रह के सामने आरती करें.
4. शंख बजाना और जल छिड़कना – आरती के बाद शंख बजाना बहुत शुभ माना जाता है. इससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है. फिर शंख में जल भरकर चारों दिशाओं में छिड़कें, जिससे घर में शांति और समृद्धि बनी रहती है.
आंखें खुली रखने का आध्यात्मिक महत्व
जब हम आरती में भगवान को देखते हैं, तो यह केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं रहती, बल्कि आत्मा और ईश्वर का मिलन बन जाती है. दीपक की लौ को देखना हमें यह याद दिलाता है कि अंधकार चाहे कितना भी हो, एक छोटी सी ज्योति उसे मिटा सकती है. इसी तरह, भगवान की ओर ध्यान केंद्रित करना जीवन के संकटों को हल्का कर देता है.