सफेद बाघ का ठिकाना बना विवाद का मुद्दा, मुकुंदपुर की जनता ने जताई आपत्ति

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मैहर: विंध्य की सियासत इन दिनों एक सफेद बाघ के इर्द-गिर्द घूम रही है। मामला विश्व प्रसिद्ध मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी और उससे सटी पांच अन्य पंचायतों को मैहर जिले से निकालकर रीवा में शामिल करने का है। इस प्रस्ताव ने जहां सतना से लेकर मैहर और रीवा तक के सियासी गलियारों में भूचाल ला दिया है, वहीं गांव की चौपालों पर एक अलग ही बहस छिड़ी है। नेता जिसे 'पहचान छीनने की साजिश' बता रहे हैं, जनता उसे 'सुविधा और विकास का रास्ता' मान रही है। आखिर इस सियासी खींचतान पर क्या कहती है मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी की पब्लिक? यही जानने नवभारत टाइम्स.कॉम की टीम मुकुंदपुर के ग्राउंड जीरो पर पहुंची।

70-80 किमी दूर मैहर क्यों जाएं, 15 किमी में रीवा

गांव में हमारी पहली मुलाकात अमितेश शुक्ला से हुई। सियासत की गर्मी से दूर उनकी बातों में व्यावहारिकता की ठंडक थी। उन्होंने बेबाकी से नवभारत टाइम्स.कॉम को बताया कि यह एक अच्छा निर्णय है। मैहर जिला हमारे लिए बहुत दूर है। कोई भी सरकारी काम हो तो 70-80 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है, पूरा दिन बर्बाद हो जाता है। जबकि रीवा यहां से मुश्किल से 15-20 किलोमीटर है।

यहां के नेताओं ने क्या किया

वहीं, जब हमने सफारी की धरोहर का सवाल किया तो उनका दर्द छलका, कहा कि धरोहर तो है, लेकिन यहां के नेताओं ने 70 साल में क्या विकास किया? देखरेख भी उस हिसाब से नहीं हो रही। रीवा में जुड़ जाएगा तो कम से कम विकास तो होगा।
रीवा जाना चाहती है जनता… मुकुंदपुर टाइगर रिजर्व की शिफ्टिंग पर मैहर के नेताओं को झटका?

पास में है रीवा

यही आवाज रजनीश कुमार और निखिल कुमार जैसे युवाओं की भी है। रजनीश ने बताया कि हम लोग तो 2023 से ही यह प्रयास कर रहे थे कि हमें रीवा में शामिल किया जाए। अभी जब पत्र वायरल हुआ तो हम सब खुश हैं और इसका पूरा समर्थन कर रहे हैं।

निखिल ने बुजुर्गों और महिलाओं की परेशानी का जिक्र करते हुए कहा कि हम युवा तो जैसे-तैसे चले भी जाएं, लेकिन घर की महिलाओं और बुजुर्गों को इतनी दूर आने-जाने में बहुत समस्या होती है। रीवा पास होने से सबकी जिंदगी आसान हो जाएगी।

साजिश बनाम विकास

ग्राउंड पर जनता का मूड जहां सुविधा और सुगमता की ओर है, वहीं नेताओं के लिए यह नाक का सवाल बन गया है। सत्ताधारी भाजपा से लेकर विपक्षी कांग्रेस तक के नेता इस मुद्दे पर एक साथ खड़े हैं और इसे रीवा की विस्तारवादी राजनीति का हिस्सा बता रहे हैं।

वहीं, सतना सांसद गणेश सिंह ने इसे सीधे तौर पर एक साजिश करार दिया है और मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर पुरजोर विरोध जताया है। अमरपाटन से कांग्रेस विधायक डॉ. राजेंद्र सिंह ने इसे कुत्सित प्रयास बताया है और सफल न होने देने की बात कही है।

सीएम तक पहुंची बात 

मैहर के बीजेपी विधायक श्रीकांत चतुर्वेदी भी विरोध में हैं और जल्द ही सीएम से मिलकर सफारी को मैहर की शान बताते हुए इसे अलग न करने का आग्रह करेंगे। पूर्व विधायक नारायण त्रिपाठी ने तो सीधे तौर पर उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला पर 'छीनने का प्रयास' करने का आरोप लगाते हुए कोर्ट जाने और जनांदोलन की चेतावनी दी है।

आखिरकार किसका होगा सफेद बाघ?

अब साफ है कि जनता की प्राथमिकता और नेताओं की राजनीति में जमीन-आसमान का अंतर है। ग्रामीण अपने रोजमर्रा के जीवन की सुगमता चाहते हैं, जबकि राजनेताओं के लिए यह टाइगर सफारी पर वर्चस्व और अपने-अपने जिलों की सीमाओं का खेल है। फिलहाल, गेंद मध्यप्रदेश प्रशासनिक इकाई पुनर्गठन आयोग के पाले में है। अब देखना यह होगा कि फैसला जनता की सहूलियत के आधार पर होता है या राजनीतिक दबाव के आगे झुकता है। लेकिन एक बात तय है, मुकुंदपुर का सफेद बाघ फिलहाल विंध्य की सियासत का सबसे बड़ा शिकार बना हुआ है।अब देखना यह होगा कि आखिरकार सफेद बाघ किसका होगा।