सप्तपुरियों में राम नगरी अयोध्या मठ मंदिरों और सरयू के घाटों की वजह से विश्व विख्यात है. समस्त पापों से मुक्ति पाने के लिए लोग यहां सरयू में स्नान करते हैं. दूसरी तरफ, पितृपक्ष के दौरान लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पवित्र नदियों में पिंडदान तर्पण क्रिया करते हैं. क्या आप जानते हैं कि प्रभु राम ने अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध कर्म कहां किया था? आइये उसके बारे में विस्तार से जानते हैं. अयोध्या राम मंदिर से करीब 16 किलोमीटर दूर नंदीग्राम स्थित है, जहां भगवान राम के अनुज भरत की तपोभूमि भरतकुंड भी है. यही वो स्थल है जहां वनवास से लौटने के बाद भगवान राम ने अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध किया था.
तीर्थ के समान पुण्य
धार्मिक मान्यता के अनुसार पितृपक्ष के दिनों में दूर-दूर से लोग यहां आते हैं और अपने पितरों का श्राद्ध तर्पण और पिंडदान करते हैं. इसके अलावा, यह भी मान्यता है कि भगवान विष्णु के दाहिने पैर का चिन्ह भरत कुंड स्थित गया वेदी पर है और बाय पांव का गया जी बिहार में है. यही वजह है कि भरत कुंड में पिंडदान करने से गया तीर्थ के समान पुण्य की प्राप्ति भी होती है. पितृ पक्ष के दौरान भरत कुंड में प्रतिदिन हजारों की संख्या में लोग आते हैं और अपने पितरों का श्राद्ध करते हैं. भगवान राम ने भी यहीं पर राजा दशरथ का श्राद्ध किया था. शायद यही वजह है कि भरत कुंड को मिनी गया की उपाधि से भी नवाजा गया है. धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, भगवान राम जब वनवास जा रहे थे तो उनका खड़ाऊ भरत जी ने सिर पर रखकर इसी स्थल पर 14 वर्ष तक तपस्या की थी. यही वजह है कि इस स्थल को भरत की तपोस्थली के नाम से भी जाना जाता है.
आते हैं हजारों
कि पितृ पक्ष के दौरान भरत कुंड में पितरों के निमित्त लोग श्राद्ध करने आते हैं. प्रतिदिन आसपास के जिलों के हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. मान्यता है कि प्रभु राम अपने चारों भाइयों के साथ यहीं पर राजा दशरथ का श्रद्धा किया था. अयोध्या पहुंचे एक श्रद्धालु ने बताया कि यहां हम लोग अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध तर्पण और पिंडदान करने आए हैं. हम लोग गोंडा से आए हैं. यह बहुत धार्मिक जगह है.