जबलपुर में मां शब्द पर तैयार हो रहा जंगल, नर्मदा किनारे बने नमो उपवन में अब तक लगाए 6900 पौधे

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जबलपुर: संस्कारधानी में एक जंगल मां शब्द के नाम से बनाया गया है. यह जंगल एक गांव में 26000 वर्ग फीट में मियांबाकी पद्धति से लगाया जा रहा है. इसे काफी ऊंचाई से देखने पर मां शब्द नजर आता है. इस जंगल को नमो उपवन का नाम दिया गया है और इसे जनपद पंचायत बरगी ने तैयार किया है. यह जंगल नर्मदा नदी के किनारे है, इसलिए यहां पर नर्मदा परिक्रमा करने वाले परिक्रमा वासियों के लिए भी आश्रय स्थल बनाया जा रहा है.

बरगी के पास बन रहा जंगल

जबलपुर शहर से लगभग 25 किलोमीटर दूर बरगी के पास नर्मदा नदी के किनारे सगड़ा झपनी नाम का एक गांव है. इस गांव में नर्मदा नदी के किनारे ढालदार जमीन है. जिस पर छोटी-मोटी झाड़ियां लगी हुई थीं. यहीं पर जनपद पंचायत बरगी ने एक जंगल तैयार करने की योजना पर काम करना शुरू किया है.

नमो उपवन में मां के आकार का खींचा नक्शा

जनपद पंचायत बरगी ने इस जंगल का नाम नमो उपवन दिया है. यह जंगल लगभग 26000 वर्ग फीट जगह में तैयार किया जा रहा है. पहले इस पूरी पहाड़ी को झाड़ियों से मुक्त करवाया गया. इसके बाद इसमें मां के आकार का नक्शा खींचा गया है. मां शब्द को लिखने के लिए पहाड़ी के ही पेड़ों का इस्तेमाल किया गया है. उन्हें सफेद रंग से रंग कर मां शब्द लिखा गया. इसी के बीच में मियांबाकी पद्धति से 6900 पेड़ लगाए गए हैं.

नर्मदा परिक्रमा करने वालों के लिए आश्रय स्थल

बरगी विधानसभा के विधायक नीरज सिंह ने बताया कि "यह स्थान नर्मदा नदी के किनारे है और नर्मदा नदी की परिक्रमा करने वाले परिक्रमावासियों को रुकने के लिए यहां पर एक आश्रय स्थल भी बनाया जा रहा है. भविष्य में इस स्थान पर आजीविका मिशन से होम स्टे, गौशाला भी विकसित किए जाएंगे. इस स्थान को पर्यटक केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा."

 

 

    नमो उपवन में 6 हजार 990 पौधे रोपित

    नमो उपवन में नीम, जामुन, आम, अर्जुन, गुलमोहर, इमली, कदम, गुलर, शीशम प्रजाति के 2 हजार 330 पौधे लगाए गए हैं. वहीं कचनार, झारूल, करंजी, आवंला, मौलश्री, अमलतास, कनेर (पीला), टीकोमा, बाटलब्रश और बेल प्रजाति के 2 हजार 330 पौधे रोपित किए गए हैं. इसके अलावा चांदनी, चमेली, मधुकामनी, कनेर (लाल), मोगरा, मेंहदी, गंधराज, मधुमालती, कलिंद्रा, देसीरोज प्रजाति के भी 2 हजार 330 पौधे और कुल 6 हजार 990 पौधे रोपित किए जा चुके हैं.

    इस जंगल को बनाने में लगाए गए ज्यादातर पेड़ फलदार पौधे हैं. हालांकि सामान्य तौर पर पौधों को दूर-दूर लगाया जाता है लेकिन मां शब्द लिखने की वजह से पौधों को बहुत करीब करीब लगाया गया है. ऐसी स्थिति में यह पौधे कितना पनपेंगे इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता. हालांकि जिला पंचायत के अधिकारियों का कहना है कि 3 साल में यह उपवन पूरी तरह तैयार हो जाएगा.