शहडोल: बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री को शहडोल अदालत ने बड़ी राहत दी है. उनके खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करने से शहडोल कोर्ट ने इनकार कर दिया. साथ ही याचिका को खारिज कर दिया है. कथा वाचक धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री पर धार्मिक भावनाएं भड़काने और आपत्तिजनक टिप्पणी करने को लेकर याचिका दायर हुई थी.
पंडित धीरेन्द्र शास्त्री को कोर्ट से राहत
शहडोल कोर्ट में यह याचिका एडवोकेट संदीप तिवारी ने दायर की थी. जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि प्रयागराज महाकुंभ के दौरान पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने धार्मिक भावनाएं भड़काने वाला बयान दिया था. धीरेंद्र शास्त्री ने कहा था कि "जो महाकुंभ में नहीं आएगा वो पछताएंगे और देशद्रोही कहलाएगा.'' इस बयान पर परिवादी संदीप तिवारी ने इसे असंवैधानिक आपत्तिजनक और भड़काऊ बताया और कार्रवाई की मांग की थी. इस मामले को शहडोल कोर्ट ने बाबा बागेश्वर धीरेंद्र को राहत दे दी है.
यहां हुई मामले की सुनवाई
मामले की सुनवाई शहडोल न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी सीताशरण यादव की अदालत में हुई, जहां पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की ओर से अधिवक्ता समीर अग्रवाल ने पैरवी की और उन्हें कहा कि सभी कथन धार्मिक और आध्यात्मिक प्रवचन की मर्यादा में थे. ना तो किसी वर्ग या व्यक्ति का अपमान हुआ ना किसी को उकसाया गया था. अदालत ने सभी पक्षों की दलीलें सुनी, उसके बाद पाया कि परिवाद में कोई ठोस प्रमाण नहीं है और धीरेंद्र शास्त्री के विरुद्ध संज्ञान लेने से इनकार करते हुए परिवाद निरस्त कर दिया.
पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री को क्लीन चिट
पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री की ओर से पैरवी करने वाले अधिवक्ता समीर अग्रवाल ने कहा, "पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के विरुद्ध शहडोल कोर्ट में एक परिवाद दायर हुआ था. जिसमें मुख्य बिंदु ये था कि जब धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री, प्रयागराज महाकुंभ में स्नान करने के लिए गए थे. वहां उनके द्वारा कहा गया था कि जो व्यक्ति महाकुंभ नहीं आएगा वो पछताएगा और देशद्रोही कहलाएगा. इस संबंध में परिवादी ने अपने आप को व्यथित मानते हुए एक परिवाद पत्र शहडोल न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया था."
याचिका पर संज्ञान लेने से किया इनकार
समीर अग्रवाल ने कहा, "उस मामले में न्यायालय द्वारा शनिवार को आदेश पारित करते हुए परिवादी की याचिका को खारिज कर दिया है. विशेष रूप से उन्होंने यह पाया है कि धीरेंद्र शास्त्री के द्वारा व्यक्त किए गए, जो शब्द थे. उससे ना कोई व्यक्ति आहत हुआ, ना ही धार्मिक भावनाओं का अपमान होता है. इस आधार पर परिवाद पत्र को निरस्त कर दिया और संज्ञान लेने से इनकार कर दिया."