पृथ्वी पर अंतरिक्ष से हुए वार ने हिलाकर रख दिया वैज्ञानिक को

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वॉशिंगटन । साल 2024 में पृथ्वी पर अंतरिक्ष से ऐसा वार हुआ जिसने वैज्ञानिक समुदाय को हिलाकर रख दिया। 10–11 मई 2024 की रात सुपरस्टॉर्म गान्नोन जिसे ‘मदर्स डे सुपरस्टॉर्म’ की ऊर्जा इतनी भयंकर थी कि पृथ्वी का प्लाज्मास्फीयर अपने सामान्य आकार के सिर्फ एक-पांचवें हिस्से जितना रह गया। सुपरस्टॉर्म गान्नोन पिछले दो दशकों का सबसे ताकतवर भूचुंबकीय तूफान साबित हुआ। जापान की जाक्सा एजेंसी का अरासे सैटेलाइट सही समय पर तूफान की सीधी लाइन में मौजूद था और इसने पहली बार सुपरस्टॉर्म के पूरे प्रभाव को विस्तार से मापा। डेटा दिखाता है कि प्लाज्मास्फीयर 44,000 किलोमीटर से सिकुड़कर मात्र 9,600 किलोमीटर तक सिमट गया—इतनी तेज गिरावट पहले कभी रिकॉर्ड नहीं हुई थी। वैज्ञानिकों के अनुसार यह सुपरस्टॉर्म सूरज से निकले उस विशाल विस्फोट का नतीजा था, जिसमें अरबों टन आवेशित कण पृथ्वी की ओर फेंके गए। इन कणों ने पृथ्वी के मैग्नेटोस्फीयर पर सीधा वार किया और इसे जोरदार तरीके से झकझोर दिया। मात्र नौ घंटों में प्लाज्मास्फीयर 80 प्रतिशत तक दब गया, जिससे पृथ्वी की स्पेस-शील्ड लगभग निचोड़ दी गई।
अरासे सैटेलाइट, जिसे 2016 में लॉन्च किया गया था, तूफान के मार्ग में ठीक उसी जगह मौजूद था जहां सबसे शक्तिशाली प्रभाव दर्ज हुआ। इसके लगातार रिकॉर्ड किए गए डेटा से स्पष्ट हुआ कि सुपरस्टॉर्म ने न सिर्फ प्लाज्मास्फीयर को नीचे धकेला बल्कि आयनमंडल से आने वाले कणों के प्रवाह में भी भारी व्यवधान पैदा कर दिया, जिससे रिकवरी महज कुछ घंटों के बजाय पूरे चार दिन तक खिंच गई। तूफान की ताकत इतनी अधिक थी कि सामान्यतः केवल ध्रुवी क्षेत्रों में दिखने वाली ऑरोरा रोशनी पृथ्वी के मध्य अक्षांशों तक फैल गई। जापान, मेक्सिको और यूरोप के दक्षिणी हिस्सों में पहली बार लोगों ने आसमान में रंग-बिरंगी रोशनी की चादरें देखीं जो इस तूफान की खतरनाक तीव्रता का संकेत थीं।
 वैज्ञानिकों का कहना है कि ऑरोरा जितनी नीचे तक दिखाई दे, समझ लेना चाहिए कि तूफान उतना ही शक्तिशाली है, और गान्नोन ने इस सीमा को ऐतिहासिक रूप से तोड़ दिया। प्लाज्मास्फीयर की धीमी रिकवरी ने वैज्ञानिकों को और चौंकाया। आमतौर पर सुपरस्टॉर्म के शांत होते ही आयनमंडल से कण ऊपर उठकर प्लाज्मास्फीयर को तेजी से भर देते हैं। लेकिन इस बार ‘नेगेटिव स्टॉर्म’ नाम की घटना हुई जिसमें आयनमंडल अचानक कण खो देता है, ऑक्सीजन आयन तेजी से कम हो जाते हैं और प्लाज्मास्फीयर के लिए जरूरी ‘ईंधन’ लगभग कट जाता है। इसी वजह से इसे पूरी तरह सामान्य होने में चार दिन लग गए, और अरासे के सात वर्षों के अवलोकन में ऐसा धीमा रिकवरी पैटर्न पहली बार देखा गया। इस सुपरस्टॉर्म का असर धरती पर मौजूद तकनीकी ढांचों पर भी साफ दिखा। कई सैटेलाइट्स ने पावर समस्याएं दर्ज कीं, कुछ समय तक डेटा भेजना बंद कर दिया। जीपीएस की सटीकता बिगड़ गई और हाई-फ्रीक्वेंसी रेडियो सिस्टम बुरी तरह प्रभावित हुए।
वैज्ञानिक चेतावनी देते हैं कि अगर ऐसा तूफान और अधिक शक्तिशाली हो, तो आधुनिक दुनिया फ्लाइट्स, नेवीगेशन, इंटरनेट, सैन्य संचार कुछ ही घंटों में ठप हो सकती है। यह अध्ययन स्पेस वेदर फोरकास्टिंग के लिए एक बड़ा गेमचेंजर माना जा रहा है। पहली बार वैज्ञानिकों के पास इतना सटीक डेटा है कि वे प्लाज्मास्फीयर के व्यवहार को समझकर बेहतर मॉडल तैयार कर सकें। इससे आने वाले वर्षों में स्पेस-स्टॉर्म चेतावनियों की सटीकता बढ़ेगी और सैटेलाइट व संचार प्रणालियों को ज्यादा मजबूत बनाया जा सकेगा।