ॐ एक बहुत ही विशेष मंत्र है, जिसे ब्रह्मांड की पहली ध्वनि माना जाता है. इसे तीन भागों (अ, उ और म) में बांटा गया है. ‘अ’ सृजन और व्यापकता का प्रतीक है, ‘उ’ बुद्धि और संचालन का और ‘म’ अनंतता और स्थिरता का. इन तीनों का मतलब मिलाकर यही होता है कि ‘ॐ’ में परम सत्ता का पूरा स्वरूप समाया हुआ है. यही कारण है कि इसे सभी मंत्रों का बीज मंत्र कहा जाता है. ॐ शब्द हिंदू, बौद्ध और जैन धर्मों में गहरा महत्व है. ॐ त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश), तीन गुणों (सत्व, रज, तम) और सत-चित-आनंद का भी प्रतिनिधित्व करता है. आइए जानते हैं ॐ का महत्व…
सृष्टि के आरंभ की पहली ध्वनि
पुराणों में भी बताया गया है कि सृष्टि के आरंभ में जब पहली ध्वनि गूंजी, वह ॐ थी. यह ध्वनि किसी टकराव से नहीं, बल्कि ब्रह्मांड की अपनी ऊर्जा से उत्पन्न हुई थी. ध्यान की गहन अवस्था में साधक आज भी इसे सुनते हैं और इसे परम शांति का स्रोत मानते हैं.
ॐ मंत्र का महत्व
ॐ का जप मन और शरीर दोनों को शांत करता है. इससे साधक को आत्मा और परमात्मा के करीब जाने का अनुभव होता है. साधना में स्थिरता आती है, मौन और अंतरात्मा की जागृति बढ़ती है. यही कारण है कि हर मंत्र की शुरुआत ॐ से होती है, जैसे ‘ॐ नमः शिवाय’ या ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय.’
वैज्ञानिक दृष्टि से ॐ का महत्व
वैज्ञानिक दृष्टि से भी ॐ का उच्चारण शरीर में कंपन पैदा करता है. जीभ, तालू, कंठ, फेफड़े और नाभि में यह कंपन ग्रंथियों और चक्रों को सक्रिय करते हैं. इसके नियमित जप से तनाव और घबराहट दूर होती है, पाचन और रक्त संचार सुधरता है, शरीर में ऊर्जा लौटती है और नींद भी अच्छी आती है. कुछ प्राणायाम के साथ करने पर फेफड़ों की क्षमता बढ़ती है और थकान कम होती है.
वास्तु के हिसाब से ॐ का महत्व
वास्तु के हिसाब से भी ॐ का जप घर में सकारात्मक ऊर्जा लाता है. वातावरण शांत होता है और मानसिक तनाव कम होता है. सकारात्मक शब्दों से हार्मोन बनते हैं और नकारात्मक शब्दों से विषैले रसायन. इसलिए ॐ की लय मन और हृदय पर अमृत की तरह असर करती है.
स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए ॐ का जप
अधिकतर लोग 108 बार ॐ का जप करते हैं. ऐसा करने से शरीर तनावमुक्त होता है, ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है, मनोबल मजबूत होता है और व्यवहार में धैर्य आता है. बच्चों की पढ़ाई और स्मरण शक्ति पर भी इसका अच्छा असर होता है. जप की सही विधि यह है कि प्रातः स्नान के बाद शांत जगह पर पद्मासन, अर्धपद्मासन, सुखासन या वज्रासन में बैठें. ‘ओ’ को लंबा खींचें और अंत में ‘म्’ हल्की गूंज की तरह करें. जप माला का उपयोग भी किया जा सकता है.









