राजस्थान में पंचायती राज और शहरी नगर निकाय चुनावों को लेकर सरकार बड़ा बदलाव करने की तैयारी में है. अगर यह प्रस्ताव मंजूर हो जाता है तो अब अनपढ़ व्यक्ति सरपंच, पार्षद, मेयर, सभापति, नगर पालिका अध्यक्ष, जिला प्रमुख, प्रधान, जिला परिषद सदस्य और पंचायत समिति सदस्य जैसे पदों के लिए चुनाव नहीं लड़ सकेगा. सरकार का मानना है कि स्थानीय स्वशासन में पढ़े-लिखे जनप्रतिनिधि होंगे तो कामकाज ज्यादा बेहतर और पारदर्शी होगा |
मुख्यमंत्री के पास भेजा गया प्रस्ताव
यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने पंचायती राज और शहरी नगर निकाय चुनावों में शैक्षणिक योग्यता लागू करने से जुड़ा प्रस्ताव मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को भेज दिया है. अब इस पर अंतिम फैसला मुख्यमंत्री स्तर पर लिया जाएगा. फैसला होते ही विभाग आगे की प्रक्रिया शुरू करेगा. संकेत मिल रहे हैं कि सरकार इस प्रस्ताव को जल्द मंजूरी दे सकती है |
प्रस्ताव के मुताबिक, सरपंच बनने के लिए कम से कम 10वीं पास होना अनिवार्य किया जाएगा. वहीं पार्षद पद के लिए 10वीं या 12वीं पास की शर्त रखी जा सकती है. शहरी निकायों में मेयर, सभापति और नगर पालिका अध्यक्ष जैसे पदों के लिए भी न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता तय करने की तैयारी है. इसका सीधा असर यह होगा कि आगामी पंचायत और निकाय चुनावों में अनपढ़ उम्मीदवार मैदान में नहीं उतर पाएंगे |
कानून में करना होगा संशोधन
अगर सरकार शैक्षणिक योग्यता लागू करती है तो इसके लिए पंचायती राज अधिनियम और नगर पालिका अधिनियम में संशोधन करना होगा. संशोधन से जुड़े दोनों विधेयक विधानसभा में पेश किए जाएंगे. विधानसभा से पास होने के बाद ही यह नियम कानूनी रूप से लागू हो सकेगा. इसके बाद चुनाव आयोग भी नए नियमों के अनुसार चुनाव प्रक्रिया तय करेगा |
2015 में भी लागू हो चुका है नियम
यह पहला मौका नहीं है जब प्रदेश में शैक्षणिक योग्यता की बात उठी हो. साल 2015 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कार्यकाल में भी पंचायती राज और शहरी निकाय चुनावों में यह नियम लागू किया गया था. उस समय वार्ड पंच के लिए पढ़ाई की शर्त नहीं थी, लेकिन सरपंच के लिए आठवीं पास होना जरूरी था |
आदिवासी (टीएसपी) क्षेत्रों में भी सरपंच के लिए आठवीं पास और पंचायत समिति व जिला परिषद सदस्य के लिए 10वीं पास अनिवार्य किया गया था. पार्षद और निकाय प्रमुख के लिए भी 10वीं पास की योग्यता तय की गई थी |
कांग्रेस ने हटाया था नियम
2015 में लागू किए गए इस फैसले का कांग्रेस ने जोरदार विरोध किया था. बाद में साल 2019 में जब कांग्रेस की सरकार बनी तो शैक्षणिक योग्यता की शर्त को पूरी तरह हटा दिया गया. कांग्रेस का तर्क था कि पढ़ाई की शर्त लोकतांत्रिक अधिकारों के खिलाफ है और इससे गरीब व वंचित वर्ग के लोग चुनाव से बाहर हो जाएंगे |









