Nirjala Ekadashi: एकादशी महीने में दो बार आती है। इस तरह साल भर में कुल चौबीस एकादशियां होती हैं, किंतु ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी का महत्व सबसे अधिक है। इस एकादशी में सूर्योदय से द्वादशी के सूर्यास्त तक जल नहीं ग्रहण किया जाता है। इस कारण इसे निर्जला एकादशी कहते हैं। निर्जला एकादशी 31 मई को है। इस दिन लोग सच्ची श्रद्धा भाव से निर्जला व्रत करते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार एकादशी व्रत साल की सभी एकादशियों में से यह व्रत सबसे कठिन और शुभफलदायी माना जाता है। इस एकादशी के शुभ अवसर पर निर्जला उपवास रखने से भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं और आपके घर में धन वृद्धि करती हैं। इस व्रत को करने से आपकी सभी अधूरी इच्छाएं पूर्ण होती है।
निर्जला एकादशी व्रत कथा
महर्षि व्यास ने पांडवों को एकादशी के व्रत का विधान और फल बताया तो भीम बोल पड़े, इस व्रत को परिवार के अन्य लोग भले ही मान लें, किंतु मुझसे इस व्रत का पालन नहीं हो सकेगा। बिना भोजन किए मैं जीवित नहीं रह सकता है, इसलिए किसी और व्रत का विधान बताएं, जिससे चौबीस एकादशियों का फल भी मिल जाए। इस पर महर्षि ने ज्येष्ठ मास की एकादशी के व्रत का विधान बताया कि इस व्रत में स्नान और आचमन करने में दोष नहीं होता है। इस दिन अन्न न ग्रहण करते हुए सिर्फ उतना पानी पीएं, जितने में एक सोने का छोटा सिक्का डूब जाए। भीमसेन ने इस व्रत का संकल्प किया और फिर उसे पूरा भी किया, इसलिए निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं।
न करें ये काम
निर्जला एकादशी के दिन प्याज लहसुन का सेवन नहीं करना चाहिए।
निर्जला एकादशी के दिन चावल भी नहीं खाया जाता है।
निर्जला एकादशी के दिन देर तक न सोएं और सुबह सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें और पूजा पाठ करके अपनी दिनचर्या आरंभ करें।
निर्जला एकादशी के दिन भूलकर भी काले रंग के वस्त्र न पहनें। इस दिन पीले रंग के वस्त्र पहनना शुभ होता है। यहां तक कि जो लोग व्रत नहीं करते हैं उन्हें भी इस दिन काले वस्त्र नहीं पहनने चाहिए।
निर्जला एकादशी के दिन बाल कटवाना, शेविंग करवाना और नाखून काटना भी वर्जित माना गया है।