Sunday, February 23, 2025
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रक्षाबंधन की तिथि को लेकर दुविधा की स्थिति, जानें किस दिन मनाया जाएगा राखी का त्योहार?

Bhadra on Raksha Bandhan 2023: इस साल रक्षाबंधन को लेकर लोगों के बीच दुविधा की स्थिति बनी हुई है। इसका कारण है कि 30 अगस्‍त को पूर्णिमा तिथि शुरू होने के साथ ही भद्रा लग जाएगी और रात तक रहेगी। ऐसे में ये त्‍योहार कब मनाया जाएगा।
अगस्‍त का महीना चल रहा है। इस महीने का खास त्‍योहार है रक्षा बंधन। रक्षा बंधन का त्योहार हर साल श्रावण पूर्णिमा को मनाया जाता है। लेकिन इस साल रक्षा बंधन को लेकर लोगों के बीच दुविधा की स्थिति बनी हुई है। इसका कारण है कि 30 अगस्‍त को पूर्णिमा तिथि शुरू होने के साथ ही भद्रा लग जाएगी और रात तक रहेगी। भद्राकाल में राखी बांधना वर्जित माना गया है। ऐसे में लोग ये समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर भाई को रा‍खी किस समय बांधी जाएगी? आइए ज्‍योतिषाचार्य से जानते हैं इसके बारे में

रक्षाबंधन का त्योहार सर्वमान्य है

रक्षाबंधन त्योहार सावन पूर्णिमा को मनाया जाएगा। इस साल 30 अगस्त को पूर्णिमा तिथि का प्रवेश हो रहा है, लेकिन इस दिन भद्रा रहने से रक्षाबंधन 31 अगस्त को मनाया जाएगा। आचार्य पंडित ने बताया कि 31 अगस्त को रक्षाबंधन का त्योहार सर्वमान्य है। 30 अगस्त को चतुर्दशी दोपहर 12:10 बजे और भद्रा रात 9:00 बजे तक है। इसलिए उदया पूर्णिमा गुरुवार सुबह 7:45 बजे तक ही है। इस दिन सूर्योदय सुबह 5:43 बजे होगा। ऐसे में पूर्णिमा का मान दिन-रात का होगा। इस तरह 31 अगस्त को पूरा दिन रक्षाबंधन मनाया जाएगा। उन्होंने बताया कि भद्रा बुधवार की रात 30 अगस्त को समाप्त हो रहा है। लेकिन रात के दौरान रक्षासूत्र नहीं बांधना चाहिए। रक्षाबन्धन का पर्व भाई और बहन के स्‍नेह का पर्व है। ये त्‍योहार उनके रिश्‍ते की डोर को मजबूत करता है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है और बदले में भाई बहन को गिफ्ट देकर ये वचन देता है कि वो उसकी रक्षा करेगा और उसके सुख-दुख में हमेशा उसके साथ रहेगा।

रावण की बहन ने भद्राकाल में ही राखी बांधी थी

भद्राकाल में किसी भी शुभ काम को करने की मनाही है। कहा जाता है कि रावण को उसकी बहन ने भद्राकाल में ही राखी बांधी थी और वो उसका आखिरी रक्षाबंधन था। भद्रा को लेकर एक कथा कही जाती है। कथा के अनुसार भद्रा सूर्यदेव व उनकी पत्नी छाया की पुत्री हैं और शनिदेव की सगी बहन हैं। भद्रा का स्वभाव भी कड़क है और वे काफी कुरूप हैं। मान्यता है कि भद्रा जन्‍म से ही बेहद काले रंग की थीं। जन्म लेने के बाद वे ऋषि मुनियों के यज्ञ आदि में विघ्न डालने लगीं, तब सूर्य देव को उसकी चिंता होने लगी और उन्होंने ब्रह्मा जी से परामर्श मांगा।

भद्रा शनिदेव की बहन और भगवान सूर्य माता छाया की संतान हैं

भद्रा में नहीं करते शुभ कार्य पौराणिक कथाओं के अनुसार भद्रा शनिदेव की बहन और भगवान सूर्य माता छाया की संतान हैं। जब इस सृस्टि में दैत्यों का उत्पात बढ़ गया था तो इन शक्तियों के विनाश के लिए भद्रा का जन्म हुआ। लेकिन कहा जाता है जन्म लेते ही भद्रा पूरी सृस्टि का ही भक्षण करने लगी। सृष्टि का संतुलन गड़बड़ाने लगा। तब देवताओं ने इसे संतुलित किया। कहा जाता है कि भद्रा काल में कोई भी शुभ कार्यसफल नहीं होते। कार्यशुरू होते ही इस में तरह-तरह के विघ्न आने लगते हैं। 30 अगस्त को भद्रा का वास पृथ्वी पर है।

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