Sunday, September 8, 2024
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प्रदेश में होलिका दहन के बाद सूतक मानने की परंपरा

मध्‍य प्रदेश में आज भी होलिका दहन के बाद ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में सूतक मनाने की परंपरा है । यह परंपरा आज की नहीं बल्कि पुरातन काल से चली आई है । ग्रामीण अपने पूर्वजों से मिली इस परंपरा का आज भी पूरी मुस्‍तैदी के साथ पालन करते हैं । हालांकि यह खबर सुनकर कुछ लोगों को अचरज होगा, लेकिन यह सत्‍य है ।  उमरिया जिले के ढीमरखेड़ा तहसील के वनांचल आदिवासी ग्राम दियागढ़ में पर आज भी होलिका जलने के बाद सूतक लगने की परंपरा है। जिसका पालन डेढ़ सौ आबादी वाले घरों में उसी उल्लास से किया जाता है। जिस तरह की होली पूर्वज मनाते आ रहे हैं। गांव के बाहर होलिका दहन का कार्यक्रम निर्धारित मुहूर्त में पुरुष करते हैं। धुलेंडी की सुबह महिलाएं घर में साफ सफाई व आंगन में लिपाई करती हैं। साथ ही घरों से पुराना झाडू व मटका भी निकाल लाती हैं। झाडू और मटके को गांव के बाहर फेंकते हुए महिलाएं तालाब में स्नान करने के बाद घर जाती हैं। इसके बाद ही ग्रामीण एकदूसरे को रंग लगाते हुए होली खेलते हैं। ग्रामीण बताते हैं कि उन्‍हें यह परंपरा पूर्वजों से मिली है। रात में पुरुष होलिका के पास ही रहते हैं या फिर सार्वजनिक जगह पर नृत्य गायन कर सुबह का इंतजार करते हैं।

पहले कई जगह मानते थे सूतक

जानकार बताते हैं कि होली में यह परंपरा पहले कई जगहों पर रही। जिसके पीछे अपना धार्मिक और सामाजिक महत्व रहा। लाइफ स्टाइल बदलने से कई जगह परंपरा विलुप्त होने लगी। कई ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी होलिका दहन के बाद सूतक लगने वाली परंपरा कायम है। होलिका, प्रहलाद के साथ जीवित अवस्था में बैठी थी। यही एक कारण है कि लोग होलिका दहन के बाद सूतक मनाते आ रहे हैं।

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