Friday, January 3, 2025
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वास्तु शास्त्र में जल व्यवस्था दे सकती है भयंकर परिणाम : देवेन्द्र साबले

शासकीय संस्कृत महाविद्यालय इंदौर एवं एवं तत्व वेलफेयर सोसायटी द्वारा गाँधी हाल इंदौर में राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी आयोजित की गयी जिसका उद्देश्य आधुनिक संदर्भ में ज्योतिष एवं वास्तु की उपयोगिता था | जिसमे भारत भर से अध्यात्म, ज्योतिष एवं वास्तु के विद्वानो ने सहभागिता की | इस संगोष्ठी में भोपाल के वास्तुविद एवं ज्योतिषाचार्य श्री देवेन्द्र साबले ने भी अपना शोध पत्र वाचन किया एवं जिसमे उन्होंने बताया की वास्तु हमारे देश की बहुत ही अमूल्य एवं प्राचीन सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक धरोवर है जिसका उद्देश्य प्रकृति के संतुलन से जीवन में समन्यव बनाना है | हड़प्पा एवं मोहन जोदड़ो वाली खुदाई में मिले अवशेष यह बताते है की हजारो वर्ष जो नगर परियोजना थी उसके कारण हमारा देश आर्थिक रूप से कितना समृद्ध था | सिर्फ आर्थिक रूप से ही नही बल्कि इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में भी हमारा देश बहुत अधिक शक्तिशाली था |

ज्यादा दूर ना जाकर अगर आप भोपाल के भोजपुर में ही देखे तो विशालकाय शिवलिंग के समीप ही जो चट्टानें बनी है उस पर आज भी कई रहस्य उल्लेखित है किन्तु उनका संरक्षण ना होने से आज वह भी विलुप्त होने की कगार पर है | समय के साथ साथ नए नए सिविल इंजिनियर आये ओर उन्होंने नए एवं आकर्षक भवन निर्माण के लिए वास्तु के नियमो को उठाकर एक तरफ रख दिया जिसके भयंकर परिणाम आप देख सकते है समाज में संबंध सिर्फ मतलब के लिए ही बनाये जा रहे है | जिसके कारण अपनत्व की भावना ख़त्म होकर मनुष्य प्रतिस्पर्था की ओर अग्रसर होता जा रहा है | इसी प्रतिस्पर्धा के कारण डिप्रेशन, ब्लडप्रेशर चिंता, परेशानी एवं अन्य गंभीर परिणाम देखे जा रहे है |

वास्तु शास्त्र में जल व्यवस्था का बहुत ही विस्तार से विवरण में मिलता है | जिसके शुभ एवं अशुभ दोनों परिणाम मनुष्य की प्राप्त होते है | इस जल व्यवस्था को लेकर महाभारत में एक प्रसंग भी मिलता है | जब भगवान् श्री कृष्ण ने हस्तिनापुर में पांड्वो के लिए महल निर्माण करवाया था तब श्री कृष्ण जानते थे की कौरव संख्या बल में ज्यादा होने के कारण इस महल को हथिया लेंगे ऐसे में उन्होंने मय जब इस महल का निर्माण कर रहे थे तब इसमें महल के केंद्र स्थान में जल की व्यवस्था करवा दी थी | जो की एक भयंकर वास्तु दोष की श्रेणी में आता है | किसी भी भवन का केंद्र स्थान कुर्माकर होना चाहिए | कुर्माकर अर्थात कछुए की पीठ की भांति उचा होना चाहिए | यदि यह कुर्माकर के ठीक उलटा हो तो सम्पूर्ण कुल का नाश हो जाता है | सर्व विदित है की इसी भाग में दुर्योधन का पैर आया था जिसके बाद द्रोपती के मुख से कुछ शब्द निकले थे ओर वह ही महभारत का कारण बना था | साथ ही उस घटना के बाद कौरव उस महल में रहने आये ओर सम्पूर्ण कुल का नाश हो गया था |

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