भोपाल । मप्र के स्कूलों में मध्यान्ह भोजन (मिड-डे मील) से पहले भोजन मंत्र की गूंज अब सुनाई नहीं देती है। गौरतलब है कि पूर्व शिक्षा मंत्री अर्चना चिटनीस की पहल पर उच्च शिक्षा विभाग प्रदेश के सभी स्कूलों में मध्यान्ह भोजन से पहले भोजन मंत्र की शुरूआत की थी। लेकिन तकरीबन पंद्रह साल से स्कूलों में मध्यान्ह भोजन से पहले भोजन मंत्र करना बंद हो गया है। विडंबना यह है कि अधिकारी स्कूलों में निरीक्षण का दावा करते हैं, लेकिन उनका भी इस दिशा में ध्यान नहीं पहुंच रहा है। वर्ष 2009 के दौरान स्कूल शिक्षा विभाग ने यह आदेश जारी किया था। वेदों का उदाहरण देते हुए इस पत्र में तर्क दिया गया था कि भोजन में ब्रह्म यानि ईश्वर का अंश होता है। शासकीय शालाओं में जिन बच्चों को संस्कारों से जोडऩे जो सरकारी मंशाएं थीं विभाग के अधिकारी उन पर पानी फेरने पर तुले हुए हैं। अनदेखी का अंदाजा इसी बात से लगाएं कि शालाओं में मध्यान्ह भोजन से पूर्व बच्चों को जो मंत्र कराया जाता था। वह पिछले पंद्रह सालों से नहीं हुआ है। अधिकारी स्कूलों में निरीक्षण का दावा करते हैं, लेकिन उनका भी इस दिशा में ध्यान नहीं पहुंच रहा है। वर्ष 2009 के दौरान स्कूल शिक्षा विभाग ने यह आदेश जारी किया था। वेदों का उदाहरण देते हुए इस पत्र में तर्क दिया गया था कि भोजन में ब्रह्म यानि ईश्वर का अंश होता है। इस कारण पहले प्रभु को भोजन समर्पित करना चाहिए। भोजन के पूर्व बच्चों को व्यवस्थित बैठाया जाए। फिर थाली में भोजन परोसा जाये। इसके बाद हाथ जोडकऱ भोजन मंत्र कराया जाये। जब शाला से बच्चे यह संस्कार सीखेंगे तो हर घर और समाज भी इससे जुड़ेगा। आदेश जारी होने के बाद कुछ समय तक यह प्रक्रिया चली। उसके बाद इसे स्कूलों में पूरी तरह से भुला दिया गया था। डीपीसी भोपाल ओमप्रकाश शर्मा का कहना है कि यह सही है कि हर स्कूल में भोजन से पूर्व मंत्र उच्चारण होना चाहिए। हम शीघ्र ही इसके लिए सभी बीआरसीसी को आदेश जारी करेंगे, कि भोजन पूर्व मंत्र करवाया जाये। निरीक्षण में भी इस प्रक्रिया पर नजर रखी जाएगी।
नहीं हो रही स्कूलों की निगरानी
मध्यान्ह भोजन का यह मंत्र कराने की जवाबदारी भी उस शिक्षक की थी जी शाला का प्रभारी है। इसके लिए बाकायदा जनशिक्षकों और प्राचार्य को प्रतिदिन हर शाला की निगरानी करना थी। लेकिन एक भी स्कूल में भोजन मंत्र नहीं कराया जा रहा है। प्रदेश के सवा लाख स्कूलों में प्रतिदिन भोजन परोसा जाता है। इनमें 90 हजार तो मिडिल और प्राथमिक शालाएं हैं। जिनमें प्रतिदिन इंटरवल के समय मध्यान भोजन बच्चों को दिया जाता है। जबकि 35 हजार हायर सेकेंडरी और हाईस्कूल है, जहां बच्चों को विभाग भोजन कराता है। शहरों में नगर निगम तो ग्रामीण इलाकों में जिला पंचायत के माध्यम से यह भोजन दिया जाता है। लेकिन कहीं भी थाली में इसे परोसने के बाद मंत्र नहीं कराया जा रहा है। सबसे बड़ी अध्यवस्था तो यह है कि स्कूल शिक्षा विभाग की दोनों इकाइयों राज्य शिक्षा केंद्र और लोक शिक्षण सचात्यालय ने भी इस दिशा में कभी कोई ध्यान नहीं दिया। जबकि मैदानी स्तर पर जिला शिक्षा अधिकारियों और डीपीसी को यह व्यवस्था बनाने की जवाबदारी थी। विद्यालयों में शिक्षक ही बताते हैं कि शालाओं में अधिकारी निरीक्षण करने आते हैं। वह दस्तावेजों का संधारण अवलोकन है। शौचालय व्यवस्था देखते हैं कक्षाओं में पहुंचकर दिशा निर्देश देते हैं। लेकिन भोजन मंत्र की तरफ किसी का भी ध्यान नहीं गया है। जबकि बच्चों को संस्कारों से जोडऩे के लिए यह काम होना अति आवश्यक था। शिक्षक बताते हैं कि आज यदि बच्चे संस्कारों से दूर हो रहे हैं। नैतिक शिक्षा की कमी आ रही है तो उसके पीछे सबसे बड़ा दोष अधिकारियों का है। डीपीआई के पूर्व योग विभागाध्यक्ष एवं रिटायर्ड सहायक संचालक देवीदयाल भारती का कहना है कि निश्चित तौर पर भोजन से पूर्व मंत्र जरूरी है। यह ऋग्वेद की ऋचा है। क्योंकि भोजन में ब्रहा का अंश होता है। जब मैं बीएसी था तब प्रतिदिन स्कूलों में भोजन से पूर्व मंत्र करवाता था। यह संस्कारित प्रक्रिया अनवरत चलना चाहिए। प्रदेश में अगर प्रारंभिक शिक्षा सुधार की बात करें तो इस पर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं। सर्वशिक्षा अभियान के अंतर्गत राज्य शिक्षा केन्द्र बरातल का सब देखने के लिए टीचर को जनशिक्षक के रूप में प्रतिनियुक्ति पर बुला रहा है। इसके बाद ब्लॉक समन्वयक और जिला शिक्षा केन्द्रों में उच्च श्रेणी शिक्षक से लेकर लेकरार और प्राचार्य बीएसी, बीआरसीसी, एपीसी और डीपीसी बन रहे हैं। स्कूलों से मूल काम छुड़वाकर इन्हें इन पदों पर बैठाया जा रहा है, इसके बाद भी शासन के दिशा निर्देशों का पालन ईमानदारी से नहीं हो पा रहा है।