व्यापार: भारतीय पूंजी बाजार में एक बड़ा बदलाव आया है। सेबी ने रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट्स (रीट्स) को इक्विटी के रूप में वर्गीकृत कर दिया है। यह कदम निवेशकों, म्यूचुअल फंड उद्योग और रियल एस्टेट सेक्टर, सभी के लिए महत्वपूर्ण है। अब तक रीट्स और इन्फ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट ट्रस्ट्स (इनविट्स) को हाइब्रिड इंस्ट्रूमेंट की श्रेणी में रखा गया था, जिसमें संस्थागत निवेशकों के लिए सब-लिमिट लागू थी। सेबी के नए फैसले ने पूंजी बाजार में रीट्स की संभावनाओं के लिए नए दरवाजे खोल दिए हैं।
दरअसल, रीट्स ऐसे ट्रस्ट्स हैं, जो आय अर्जित करने वाली वाणिज्यिक संपत्तियों में निवेश करते हैं। इनमें निवेशक अपनी हिस्सेदारी यूनिट के रूप में खरीदते हैं और बदले में किराये से होने वाली आय और पूंजीगत लाभ का हिस्सा पाते हैं। साल 2019 में भारत का पहला रीट ‘एंबेसी ऑफिस पार्क’ सूचीबद्ध हुआ था। आज देश में कुल पांच रीट्स सूचीबद्ध हैं। निवेशकों के लिए इनविट्स की तुलना में रीट्स अपेक्षाकृत आसान प्रोडक्ट हैं, क्योंकि इनकी आय नियमित और अनुमानित होती है। वहीं, इनविट्स को अब भी हाइब्रिड श्रेणी में रखा गया है, क्योंकि इनमें इन्फ्रास्ट्रक्चर एसेट्स की जटिलता शामिल है।
कुछ सावधानी रखना भी जरूरी
भारतीय रीट्स बाजार अभी आकार में छोटा है और इसमें पर्याप्त लिक्विडिटी नहीं है। ऐसे में अगर संस्थागत निवेशकों ने बड़े पैमाने पर पूंजी प्रवाह किया तो अस्थिरता और मूल्य में उतार-चढ़ाव की स्थिति पैदा हो सकती है। खुदरा निवेशकों को टैक्स ढांचे और यील्ड के हिसाब से मूल्यांकन करना होगा।
- रीट्स को इक्विटी का दर्जा मिलने से निवेशक सीधे प्रॉपर्टी खरीदने के बजाय म्यूचुअल फंड के जरिये निवेश कर सकेंगे।छोटे निवेशक भी रियल एस्टेट की तेजी का ज्यादा फायदा उठा पाएंगे।
बाजार का आकार और संभावनाएं
भारतीय रीट्स की कुल प्रबंधित संपत्तियां (एयूएम) 2.25 लाख करोड़ हैं। अब तक 36,000 करोड़ इक्विटी के रूप में जुटाए गए हैं। यह भले ही म्यूचुअल फंड उद्योग के 75 लाख करोड़ के एयूएम से छोटा हो, लेकिन इतने कम समय में यह उपलब्धि उल्लेखनीय है। आने वाले वर्षों में रीट्स का आकार तेजी से बढ़ेगा।
सेबी ने इसलिए दिया इक्विटी का दर्जा
सेबी ने शुरू में सतर्कता बरतते हुए इन्हें हाइब्रिड श्रेणी में रखा था। अब जब निवेशक आधार बढ़ चुका है और रीट्स ने स्थिर प्रदर्शन दिखाया है, तब इक्विटी में शामिल किया गया है। इस बदलाव से इनका समावेश शेयर बाजार के सूचकांकों में संभव हो गया है। अब पैसिव फंड और ईटीएफ भी इनकी यूनिट्स में निवेश करेंगे।
सेबी के फैसले का असर, बढ़ी दिलचस्पी
सेबी की घोषणा के साथ ही पांचों सूचीबद्ध रीट्स की कीमतों में वृद्धि देखी गई। बाजार की धारणा मजबूत हुई और निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ी। पहले चुनिंदा म्यूचुअल फंड्स ही रीट्स में निवेश कर रहे थे। उदाहरण के लिए, अगस्त, 2025 में पराग परिख कंजरवेटिव हाइब्रिड फंड ने अपने कुल एयूएम का 9.2 फीसदी रीट्स में लगाया था, जो 10 फीसदी की सीमा के भीतर था। लेकिन, अब यह सीमा हटने से फंड हाउस अधिक स्वतंत्रता के साथ रीट्स में निवेश कर सकेंगे।
रीट्स का प्रदर्शन…15 फीसदी से रिटर्न
निवेशकों को रीट्स से तीन से फायदा होता है। नियमित भुगतान, पूंजी में वृद्धि और आय पर कम टैक्स। पिछले 3-5 वर्षों में भारतीय रीट्स ने 15 फीसदी से अधिक सालाना चक्रवृद्धि आधार पर रिटर्न दिया है। हालांकि, रीट्स में ब्याज जैसी निश्चित आय नहीं होती लेकिन ये संपत्तियां पहले से किराये पर दी गई होती हैं, इसलिए आय का अनुमान अपेक्षाकृत स्थिर रहता है।
निवेश की ऐसी हो रणनीति
निवेशक रीट्स में सीधे यूनिट्स खरीद कर या म्यूचुअल फंड्स के जरिये निवेश कर सकते हैं। हालांकि, एक अहम फर्क है। सामान्य इक्विटी में एसआईपी रणनीति समय के साथ औसत खरीद मूल्य घटाती है। लेकिन रीट्स में बड़े हिस्से का रिटर्न नियमित भुगतान से आता है। इसलिए बहुत ऊंचे दाम पर यूनिट खरीदने से यील्ड घट सकती है। इसलिए इसमें एंट्री प्राइस का ध्यान रखना जरूरी है। ध्यान रखें, रीट्स मूल रूप से रियल एस्टेट में निवेश का विकल्प है।