केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वित्त वर्ष 2026 की पहली छमाही के लिए उर्वरक पर पोषण पर आधारित सब्सिडी (एनबीएस) को मंजूरी दे दी है। इसके लिए 37,216 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। वित्त वर्ष 2025 के रबी सीजन की तुलना में फॉस्फोरस पर प्रति किलो सब्सिडी में 41 प्रतिशत की तेज बढ़ोतरी हुई है।
बहरहाल विशेषज्ञों ने कहा कि फॉस्फोरस पर प्रति किलो सब्सिडी में तेज बढ़ोतरी के बावजूद इससे डाई-अमोनिया फॉस्फेट (इसमें सबसे ज्यादा 46 प्रतिशत फॉस्फोरस होता है) का आयात करने वाली कंपनियों के पूरे घाटे की भरपाई नहीं हो पाएगी और कंपनियों को एक टन डीएपी आयात पर करीब 1,000 रुपये घाटा बना रहेगा। उद्योग के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘बहरहाल इसकी भरपाई तभी हो सकती है, जब आने वाले महीनों में वैश्विक दरों में कमी आए।’ भारत में यूरिया के बाद खपत के मामले में दूसरे स्थान पर डीएपी है।
तेज बढ़ोतरी का उर्वरक सब्सिडी पर असर पड़ेगा। सराकर ने पहले ही आज संसद में एक बयान में कहा है कि वित्त वर्ष 2025 के लिए उर्वरक सब्सिडी का संशोधित अनुमान करीब 14 प्रतिशत बढ़कर अब करीब 1,91,836.29 करोड़ रुपये हो गया है, जबकि बजट अनुमान 1,68,130.81 करोड़ रुपये का था। उर्वरक सब्सिडी में बढ़ोतरी मुख्य रूप से गैर यूरिया उर्वरक सब्सिडी की वजह से है, जो चालू वित्त वर्ष में करीब 9,310 करोड़ रुपये थी। वित्त वर्ष 2026 में पूरे साल के लिए गैर यूरिया उर्वरक सब्सिडी बढ़कर 49,000 करोड़ रुपये हो गया है, जो वित्त वर्ष 2026 में खरीफ सत्र के लिए महज 37,216 करोड़ रुपये आवंटित थी।
सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि 2010-11 और 2012-13 के दौरान कांग्रेस के नेतृत्त्व वाली तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने डीएपी की एक बोरी की कीमत बढ़ाकर करीब 800 रुपये कर दी थी, लेकिन जबसे नरेंद्र मोदी के नेतृत्त्व में सरकार बनी है, डीएपी की खुदरा कीमत में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है और केंद्र सरकार सब्सिडी का वहन कर रही है।बहरहाल गैर यूरिया कांप्लेक्स के लिए कम सब्सिडी आवंटन से निजी कंपनियां डीएपी आयात से बचेंगी और वे अब ऐसा कर सकती हैं, जिससे उनका घाटा कम रहे।