केंद्र सरकार की ओर से गन्ना किसानों को आज 28 जून यानी बुधवार को बड़ी राहत दी है. केंद्र सरकार ने गन्ने का समर्थन मूल्य (FRP) बढ़ाने की घोषणा की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में गन्ने पर एफआरपी 10 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ा दी गई है. कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) पहले ही सरकार को इसकी सिफारिश कर चुका था. अब कैबिनेट की बैठक के बाद सरकार ने इस पर मंजूरी भी दे दी है.
अनुराग ठाकुर ने कहा, “कैबिनेट ने चीनी सीजन 2023-24 के लिए गन्ना किसानों के लिए 315 रुपये प्रति क्विंटल के अब तक के उच्चतम उचित और लाभकारी मूल्य को मंजूरी दे दी है. इस फैसले से 5 करोड़ गन्ना किसानों और उनके आश्रितों के साथ-साथ चीनी मिलों में कार्यरत पांच लाख श्रमिकों को भी इसका लाभ मिलेगा। उन्होंने कहा कि गन्ना सत्र अक्टूबर से शुरू होता है। गन्ने का न्यूनतम मूल्य 2014-15 में 210 रुपये प्रति क्विंटल था।
चीनी मिलों पर पड़ेगा असर
गन्ने के लिए एफआरपी आम तौर पर गन्ना उत्पादकों को गारंटीकृत मूल्य सुनिश्चित करने के लिए तय की जाती है और इस प्रकार यह ध्यान में नहीं रखा जाता है कि चीनी मिलें लाभ कमाएंगी या घाटे में रहेंगी. विश्लेषकों का मानना है कि उच्च एफआरपी आमतौर पर चीनी मिलों के मार्जिन को नुकसान पहुंचाती है.
एसएपी और एफआरपी में क्या अंतर?
FRP सरकार की ओर से तय किया गया मूल्य है, जिस पर मिलें किसानों से खरीदे गए गन्ने का भुगतान कानूनी रूप से करने के लिए बाध्य हैं। हमेशा एफआरपी (Fair And Remunerative Price) में बढ़ोतरी से देश के सभी किसानों को फायदा नहीं हो पाता। दरअसल, कुछ राज्यों में एफआरपी के अलावे गन्ने की पैदावार के लिए राज्य समर्थित मूल्य यानी एसएपी (State Advisory Price) भी तय किया जाता है। जिन राज्यों में गन्ने का उत्पादन अधिक होता है, वह अपनी फसल की कीमत खुद तय करते है। इस कीमत को एसएपी कहा जाता है।
किसानों को कैसे होगा फायदा?
उत्तर प्रदेश,पंजाब और हरियाणा राज्य के किसान अपनी फसल के लिए एसएपी तय करते हैं। साधारण तौर पर एसएपी का मूल्य केंद्र सरकार के एफआरपी मूल्य से अधिक होता है। ऐसे में केंद्र की ओर से एफआरपी बढ़ाने के बाद अगर राज्य सरकार ने एसएपी नहीं बढ़ाया तो इससे किसानों को कोई फायदा नहीं हो पाता।