वैश्विक अर्थव्यवस्था में धीमापन के कारण भारतीय स्टार्टअप कंपनियों को मदद नहीं मिल रही है। इस साल की तीसरी तिमाही में इन कंपनियों ने 205 सौदों से केवल 2.7 अरब डॉलर जुटाई है जो दो साल का निचला स्तर है। पीडब्ल्यूसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, जुलाई से सितंबर के दौरान केवल दो ही स्टार्टअप यूनिकॉर्न बन पाए हैं। यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि कितने लंबे समय तक यह मंदी का दौर चलेगा। लेकिन यह सीधे दिख रहा है कि निवेशक और संस्थापक दोनों सावधानी बरत रहे हैं। हर सौदे की औसत फंडिंग 4.5 करोड़ डॉलर रही है।वैश्विक स्तर पर जुलाई-सितंबर तिमाही में 20 यूनिकॉर्न बने हैं। इसमें से 45 फीसदी सास सेगमेंट के हैं। जबकि कोई भी कंपनी डेकाकॉर्न नहीं बन पाई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि निवेश के सभी चरणों में गिरावट देखी गई है जिसमें शुरुआती, विकास और देर से सभी शामिल हैं। सामान्य तौर पर शुरुआती चरण के स्टार्टअप अधिक आसानी से पूंजी जुटाने में सक्षम होंगे क्योंकि वे आम तौर पर सार्वजनिक बाजारों में उतार-चढ़ाव से देर से होने वाले सौदों से प्रभावित नहीं होते हैं।
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