शॉर्ट टर्म में टैरिफ का बड़ा खतरा नहीं, लेकिन लॉन्ग टर्म में चुनौतियां गहरा सकती हैं – मंत्रालय

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व्यापार: भारतीय सामानों पर हाल ही में अमेरिका की ओर से लगाए गए टैरिफ का सीधा असर अभी तो सीमित नजर आ रहा है, लेकिन इसका लंबे समय में अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर हो सकता है। वित्त मंत्रालय के तहत आर्थिक मामलों के विभाग की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है।   

रिपोर्ट के मुताबिक, शुरुआत में निर्यात पर असर सीमित है, लेकिन आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चेन), महंगाई और वैश्विक बाजारों में भारतीयों उत्पादों की प्रतिस्पर्धा पर इसका बड़ा असर पड़ सकता है। रिपोर्ट में कहा गया, हालांकि अमेरिका के टैरिफ का तात्कालिक असर सीमित है, लेकिन इसके दूसरे और तीसरे स्तर के प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चुनौतियां ला सकते हैं। 

देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाएगी टास्क फोर्स
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस वैश्विक व्यापारिक माहौल की जटिलताओं से निपटने के लिए कुछ नई नीतियों का एलान किया है, जिनका मकसद देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना और विकास को बढ़ावा देना है। इसमें एक अहम कदम अगली पीढ़ी के सुधार (नेक्स्ट-जेनरेशन रिफॉर्म) के लिए टास्क फोर्स का गठन है। यह टास्क फोर्स नियमों को आसान बनाने, अनुपालन की लागत घटाने और स्टार्टअप्स, छोटे व मझोले उद्यमियों (एमएसएमई) और उद्यमियों के लिए अनुकूल माहौल बनाने पर काम करेगी। 

जीएसटी सुधार लागू करने की तैयारी में सरकार
इसके अलावा, सरकार आने वाले महीनों में नेक्स्ट-जेनरेशन जीएसटी सुधार लागू करने की तैयारी में है। इन सुधारों का मकसद जरूरी चीजों पर कर का बोझ कम करना है, जिससे आम लोगों को सीधा फायदा मिलेगा और बाजार में मांग बढ़ेगी। 

व्यापार नीति को विविध बना रहा भारत
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि हाल ही में भारत की साख में सुधार से कर्ज लेना सस्ता होगा, विदेशी निवेश बढ़ेगा, वैश्विक पूंजी बाजारों तक बेहतर पहुंच बनेगी और महंगाई पर दबाव भी कुछ हद तक कम होगा। इससे कंपनियों के लिए लागत घटेगी और देश के कुल आर्थिक विकास को समर्थन मिलेगा। वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भारत अपनी व्यापार नीति को विविध बनाकर मजबूत व्यापार प्रदर्शन बनाए रखने की दिशा में भी सक्रिय रूप से काम कर रहा है।

एफटीए के लिए कई देशों के साथ वार्ता जारी 
हाल ही में भारत ने ब्रिटेन और यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (ईएफटीए) के साथ मुक्त व्यापार समझौते किए हैं। अमेरिका, यूरोपीय संघ, न्यूजीलैंड, चिली और पेरू जैसे बड़े देशों के साथ भी बातचीत जारी है। हालांकि, रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि इन पहलों का असर दिखने में समय लगेगा और अगर अमेरिका की ओर मौजूदा टैरिफ जारी रहते हैं, तो ये उपाय भारत के निर्यात में होने वाली संभावित कमी को पूरी तरह से पूरा नहीं कर पाएंगे।  

हालांकि, रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वैश्विक विकास की धीमी रफ्तार के चलते अंतरराष्ट्रीय वस्तुओं की कीमतें काबू में रह सकती हैं। इससे ऊंचे टैरिफ के प्रभाव को भी कुछ हद तक संतुलित किया जा सकता है। सरकार ने कहा है कि वह इन चुनौतियों से निपटने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही है। देश में उत्पादन क्षमता बढ़ा रही है। निर्यात बढ़ा रही है। आपूर्ति श्रृंखला को विविध बना रही है और वैकल्पिक आयात के स्रोतों को सुरक्षित कर रही है।  

विशेषज्ञों की राय
'गणेश चतुर्थी के मौके पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका-भारत के व्यापारिक संबंधों में एक नए युग की शुरुआत की है। अब भारत से 60.2 अरब डॉलर के निर्यात पर 50 फीसदी टैरिफ लगेगा, और 3.6 फीसदी माल पर 25 फीसदी टैरिफ लगेगा। हालांकि, करीब 30 अरब डॉलर का सामान इस टैरिफ से छूट में रहेगा। कपड़ा उद्योग, रत्न और आभूषण और समुद्री खाद्य उत्पाद (सीफूड) सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे, क्योंकि ये श्रम-प्रधान क्षेत्र हैं। इसके अलावा, चमड़ा और जूते-चप्पल उद्योग पर भी थोड़ा असर पड़ेगा। यह भारतीय निर्यातकों के लिए एक गंभीर झटका है। हालांकि, यह पूरी तरह से तबाही नहीं है'। 
– महेश सचदेव, पूर्व राजनयिक
                                                                                                                 
'टैरिफ सिर्फ ताकत दिखाने का तरीका,  अमेरिका खुद कमजोर होगा' 
'ट्रंप के टैरिफ इस वक्त ताकत का प्रदर्शन लगते हैं, लेकिन बहुत कम समय में इससे अमेरिका खुद कमजोर होगा। ये नीति जरूरत से ज्यादा सख्ती दिखाती है और यह भी दर्शाती है कि राष्ट्रपति ट्रंप अपने दोस्तों पर भरोसा नहीं करते, बल्कि उन्हें अपने ऊपर निर्भर बनाना चाहते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के आर्थिक साम्राज्यवाद को सीधी चुनौती दी है। राष्ट्रपति ट्रंप शायद ये नहीं समझते कि किसी कार्रवाई के नतीजे होते हैं और बोलचाल की भाषा भी चोट पहुंचा सकती है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में जो भाषा इस्तेमाल की है, वह दुनिया के लिए अस्वीकार्य है। प्रधानमंत्री मोदी ने साफ कर दिया है कि वे वॉशिंगटन जाकर चापलूसी टैक्स नहीं देने वाले। अगर यह वजह है, तो फिर जर्मनी पर टैरिफ क्यों नहीं लगाए गए? वह युद्ध के दौरान भी रूस से तेल खरीदता रहा है। चीन रूस से भारत से ज्यादा गैस और ऊर्जा खरीदता है। तो ट्रंप चीन को लेकर इतने अनिश्चित और असुरक्षित क्यों हैं? टैरिफ विवाद के चलते भारत और चीन के बीच रिश्ते फिर से बेहतर होने लगे हैं और इसका भू-राजनीतिक स्तर पर बड़ा असर हुआ है। टैरिफ का व्यापार के कुछ क्षेत्रों में असर पड़ेगा, लेकिन इसका अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर बहुत बड़ा प्रभाव नहीं होगा। ये नुकसान जितना कुछ लोग बताने की कोशिश कर रहे हैं, उतना बड़ा नहीं है। भारत के कुल अंतरराष्ट्रीय व्यापार की तुलना में यह आंकड़ा बहुत छोटा है। असल में, अमेरिकी तर्क की बुनियाद तथ्यों और सच्चाई के सामने ढह गई है। अब दुनिया की नजरें अमेरिका पर नहीं, बल्कि एससीओ (शंघाई सहयोग संगठन) की बैठक पर हैं, जहां प्रधानमंत्री मोदी, राष्ट्रपति शी जिनपिंग और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन एक साथ मिलेंगे। मुझे लगता है कि अमेरिका जल्द ही 1914 के बाद से अपनी सबसे कमजोर स्थिति में पहुंच जाएगा, क्योंकि उसने यूरोप में अपने सहयोगियों का विश्वास खो दिया है और बाकी दुनिया का भरोसा भी, जिसमें भारत भी शामिल है'। 
– एमजे अकबर, पूर्व विदेश राज्यमंत्री

'असर ज्यादा अमेरिका पर पड़ेगा, भारत को नहीं'  
'अमेरिकी उपभोक्ताओं को इन अतिरिक्त टैरिफ का खामियाजा भुगतना पड़ेगा, जबकि भारतीय निर्यातक ज्यादातर सुरक्षित रहेंगे। अमेरिका भारत के लिए चावल का एक बड़ा बाजार है, जहां हर साल भारत से करीब 2.5 लाख मीट्रिक टन चावल निर्यात होता है, जिसकी कीमत लगभग ₹3,100 करोड़ होती है। हमने देखा है कि उपभोक्ता आमतौर पर अपने खाद्य आदतों को नहीं बदलते और वे अधिक दाम चुकाने को तैयार रहते हैं। जब बाजार में लोग इन ऊंचे दामों को स्वीकार कर लेते हैं, तो लंबी अवधि में इसका फायदा निर्यातकों को मिलता है। जब ये टैरिफ हटा दिए जाते हैं या स्थानीय सरकार इन्हें वापस लेने पर मजबूर होती है, तब भी कीमतें ऊंची बनी रहती हैं और तब निर्यातक उच्च कीमतों पर बेचते रहते हैं। चूंकि 25% अतिरिक्त टैरिफ 27 अगस्त से लागू होने थे, इसलिए बीते डेढ़ महीने में निर्यातकों ने ज्यादा से ज्यादा माल भेजने की कोशिश की। पिछले एक-दो महीने में भारत से अमेरिका को चावल की शिपमेंट में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। आने वाली तिमाही में, यानी नवंबर-दिसंबर तक, हमें निर्यात में किसी बड़ी गिरावट की उम्मीद नहीं है। यह समय भारतीय निर्यातकों के लिए नए अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कदम रखने का भी अच्छा मौका है। हमें नहीं लगता कि निर्यात में कोई बड़ा नुकसान होगा। वास्तव में, इस साल निर्यात में वृद्धि की उम्मीद है'।  
-देव गर्ग, श्री लाल महल ग्रुप के निदेशक और इंडियन राइस एक्सपोर्टर्स फेडरेशन (आईआरईएफ) के उपाध्यक्ष

'55% निर्यात प्रभावित, MSMEs को राहत की जरूरत'
'यह टैरिफ भारत के कुल निर्यात के लगभग 55 फीसदी हिस्से पर लागू हो रहा है, यानी आधे से ज्यादा निर्यात इससे प्रभावित हैं। दरअसल, 50 फीसदी टैरिफ हमारे कुल निर्यात का लगभग 55 फीसदी हिस्से पर लागू होता है। फार्मास्युटिकल्स, मोबाइल फोन और पेट्रोलियम उत्पाद अब भी शून्य टैरिफ पर निर्यात हो रहे हैं। लेकिन स्टील, एल्युमीनियम और कॉपर जैसे कुछ उत्पादों पर समान रूप से 50 फीसदी टैरिफ लग रहा है। इसका मतलब है कि कुछ क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा के लिए बराबर का मैदान मिल रहा है। अच्छी बात यह है कि पिछले कुछ महीनों में निर्यात मे पहले से तेजी आई है, यानी पहले छह महीनों का निर्यात पहले ही पूरा हो चुका है। छोटे और मध्यम उद्योग (एमएसएमई) के लिए यह समय चिंता का विषय है क्योंकि उनके पास अधिक पूंजी नहीं होती। हमें सिर्फ व्यापार में नुकसान की नहीं, बल्कि निर्यातकों की तरलता (लिक्विडिटी) पर असर की भी जांच करनी होगी। इस चुनौतीपूर्ण समय में सरकार को आगे आकर मदद करनी चाहिए। हम सरकार से अनुरोध करेंगे कि वो जरूरी फंड जारी करे, ताकि इस कठिन समय को स्किल ट्रेनिंग में बदला जा सके। यह जरूरी है कि कर्मचारी कंपनी की पेरोल पर बने रहें, क्योंकि यह संकट अस्थायी है और जब कारोबार फिर से बढ़ेगा, तब यही कर्मचारी अधिक कुशल बनकर काम आएंगे। यह समस्या स्थायी नहीं है, इसलिए हमें देखना होगा कि उद्योग के लिए इस संकट को कम करने का सबसे अच्छा तरीका क्या हो सकता है'। 
– डॉ. अजय सहाय, भारतीय निर्यात संगठनों के महासंघ (एफआईईओ) के महानिदेशक और सीईओ  

ट्रंप ने 'ट्रुथ सोशल' पर पोस्ट में क्या कहा था?
याद रखिए, भारत हमारा दोस्त है, लेकिन वर्षों से हमने उनके साथ बहुत कम व्यापार किया है क्योंकि उनके टैरिफ बहुत ज्यादा हैं- दुनिया में सबसे ऊंचे और उनके पास व्यापार को लेकर कठिन और परेशान करने वाली गैर-आर्थिक बाधाएं हैं। साथ ही, भारत ने हमेशा अपनी सेना के लिए ज्यादातर सामान रूस से खरीदा है और ऊर्जा के मामले में रूस का सबसे बड़ा खरीदार भी है-चीन के साथ मिलकर- जबकि पूरी दुनिया चाहती है कि रूस यूक्रेन में हत्याओं को बंद करे। ये सब बातें अच्छी नहीं हैं। इसलिए भारत को 25 फीसदी टैरिफ देना होगा, साथ ही एक अतिरिक्त जुर्माना भी लगेगी, जो 1 अगस्त से लागू होगी। धन्यवाद! 

जितना दबाव आएगा, उतना मजबूती से आगे बढ़ेगा भारत: पीएम
वहीं दूसरी ओर, जैसे ही अमेरिका का 50 फीसदी टैरिफ लागू हुआ, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने साफ कहा था कि चाहे जितना भी दबाव आए, भारत अपने रास्ते पर मजबूती से आगे बढ़ेगा। पीएम मोदी ने सोमवार को अहमदाबाद में एक जनसभा के दौरान कहा था, जितना भी दबाव आए, हम उसे सहने की ताकत और बढ़ाते रहेंगे। आज आत्मनिर्भर भारत अभियान को गुजरात से बहुत ऊर्जा मिल रही है और इसके पीछे दो दशकों की मेहनत है।