ग्वाले ने दी जान, बना देवता: जानिए इस अद्भुत मंदिर की सच्ची कहानी

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बीकानेर. बीकानेर में स्थित करणी माता का मंदिर विश्व प्रसिद्ध है. यह मंदिर अपनी अनोखी मान्यताओं और सामाजिक समरसता के लिए जाना जाता है. यहां किसी भी प्रकार की छुआछूत या ऊंच-नीच का भेदभाव नहीं होता. सभी वर्गों के लोग इस मंदिर में समान भाव से दर्शन करने आते हैं और माता में आस्था रखते हैं.

जबकि आज भी कई स्थानों पर भेदभाव और छुआछूत देखा जाता है. करणी माता ने सैकड़ों वर्ष पहले ही सामाजिक समरसता का संदेश देते हुए इन भेदभावों को नकार दिया था. मंदिर परिसर में उनके ही चरवाहे यानी ग्वाला दशरथ मेघवाल का भी स्थान बना हुआ है. यहां सुबह और शाम को करणी माता की आरती के बाद दशरथ मेघवाल की भी आरती की जाती है. यह परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है. जिसे आज भी पूरी श्रद्धा के साथ निभाया जाता है.

माता की आरती के बाद होती है दशरथ मेघवाल की आरती
मंदिर और ट्रस्ट से जुड़े गजेंद्र सिंह ने बताया कि करणी माता की पूजा के बाद उसी ज्योत से दशरथ मेघवाल की आरती होती है. दशरथ मेघवाल करणी माता की गायों की सेवा करता था. एक बार जब वह गायों को चराने दूर गया था, तब दो डाकुओं ने उसकी हत्या कर दी और गायों को चुरा लिया. जब करणी माता को यह बात पता चली, तो उन्होंने दशरथ को वरदान दिया कि मेरी आरती के बाद तेरी भी आरती होगी.

गायों के लिए बलिदान देने वाले को मिला दिव्य स्थान
श्रीकरणीजी ने कभी भेदभाव नहीं किया और सबको एक समान माना. उनका यह कार्य सामाजिक सद्भाव का प्रतीक है. जानकारी के अनुसार दशरथ मेघवाल, जो मेघवाल जाति से था, गायों की सेवा करता था. श्रीकरणीजी हमेशा उसकी सेवा से प्रसन्न रहती थीं. जब भी वह देशनोक से बाहर जाती थीं, तब भी उन्हें गायों की चिंता नहीं रहती थी क्योंकि दशरथ पूरी निष्ठा से उनकी सेवा करता था.

डाकुओं से संघर्ष करते हुए दी जान, मिला सम्मान
एक बार जब श्रीकरणीजी पूगल गई थीं, तब पीछे से सूजा मोहिल और कालू पेथड़ ने उनकी गायों को घेरकर ले जाने की कोशिश की. इन लुटेरों से संघर्ष करते हुए दशरथ मारा गया. श्रीकरणीजी को जब यह पता चला तो उन्हें अत्यंत दुख हुआ. उन्होंने अपने पुत्रों को बुलाकर आदेश दिया कि उनके स्वर्गवास के बाद जहां उनका स्थान बने, ठीक उसके सामने दशरथ मेघवाल का भी स्थान बनाया जाए और उसकी दोनों समय आरती की जाए.

करणी माता ने दिलाया सामाजिक सम्मान
करणी माता ने कहा कि दशरथ ने गायों की रक्षा करते हुए बलिदान दिया है, इसलिए वह देवयोनि को प्राप्त हुआ है. उनके आदेशानुसार देशनोक स्थित मंदिर में सिंह द्वार के भीतर, दाहिनी ओर दशरथ का स्थान बनाया गया. वह मंदिर का कोतवाल कहलाता है. आज से लगभग 600 वर्ष पहले मेघवाल जाति के व्यक्ति को मिला यह सम्मान, श्री करणी माता की अद्वितीय सोच का परिचायक है. उन्होंने समाज को यह संदेश दिया कि सेवा, श्रद्धा और बलिदान के आगे जाति का कोई स्थान नहीं होता.