उज्जैन. हिंदू धर्म में अनेक देवी-देवताओं के अवतारों की कथाएं बताई गई हैं। भगवान दत्तात्रेय भी इनमें से एक है। हर साल अगहन मास की पूर्णिमा को दत्त जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये तिथि 7 दिसंबर, बुधवार को है। भगवान दत्तात्रेय (Dattatreya Jayanti 2022) की पूजा महाराष्ट्र में विशेष रूप से की जाती है। देश में इनके कई प्रसिद्ध मंदिर भी हैं। भगवान दत्तात्रेय के बारे में कहा जाता है कि जब भी कोई भक्त इन्हें सच्चे मन से याद करता है ये तुरंत उसकी सहायता के लिए वहां अदृश्य रूप में आ जाते हैं। इनके जन्म की कथा भी बड़ी रोचक है। आगे जानिए भगवान दत्तात्रेय के जन्म की कथा.
ऐसे हुआ भगवान दत्तात्रेय का जन्म (Story of the birth of Lord Dattatreya)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार माता लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती को अपने पातिव्रत्य पर गर्व हो गया। जब ये बात त्रिदेवों को पता चली तो उन्होंने देवियों का अंहकार नष्ट करने के लिए एक लीला रची। उसके अनुसार, एक दिन नारदजी घूमते हुए देवलोक गए और तीनों देवियों के सामने अत्रि मुनि की पत्नी अनुसूईया के पातिव्रत्य की प्रशंसा करने लगे।
तीनों देवियों ने यह बात अपने-अपने पति ब्रह्मा, विष्णु और महेश को बताई और कहा कि वे जाकर देवी अनुसूइया के पातिव्रत्य की परीक्षा लें। पत्नियों के कहने पर त्रिदेव साधु रूप में अत्रि मुनि के आश्रम आ गए। महर्षि अत्रि उस समय आश्रम में नहीं थे। त्रिदेवों ने साधु वेष में देवी अनुसूइया से भिक्षा मांगी, लेकिन शर्त ये रखी कि आपको निर्वस्त्र होकर हमें भिक्षा देनी होगी।
देवी अनुसूइया ये बात सुनकर चौंक गई, लेकिन उन्हें लगा कि कहीं साधु नाराज न हो जाएं। ये सोचकर उन्होंने अपने पति का स्मरण किया और बोला कि "यदि मेरा पातिव्रत्य धर्म सत्य है तो ये तीनों साधु छ:-छ: मास के शिशु हो जाएं।" तुरंत तीनों देव शिशु होकर रोने लगे। तब अनुसूइया ने माता बनकर उन्हें गोद में लेकर दूध पिलाया और पालने में झूलाने लगीं।
जब ये बात तीनों देवियों को पता चली तो उन्होंने आकर देवी अनुसूइया से क्षमा मांगी। तब देवी अनुसूइया ने त्रिदेव को अपने पूर्व रूप में कर दिया। प्रसन्न होकर त्रिदेवों ने उन्हें वरदान दिया कि हम तीनों अपने अंश से तुम्हारे गर्भ से पुत्ररूप में जन्म लेंगे। वरदान स्वरूप ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा, शंकर के अंश से दुर्वासा और विष्णु के अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ।









