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पुनर्विवाह के योग ओर ज्योतिष शास्त्र

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【पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री 9993652408】

1 ज्योतिषशास्त्र के अनुसार पुनर्विवाह को देखने के लिए सप्तम, नवम तथा सप्तम से छठे अर्थात द्वादश भावों पर विशेष विचार करना चाहिए ज्योतिषाचार्य पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने बताया कि यदि लग्न, सप्तम स्थान और चंद्र लग्न द्विस्वभाव राशि में हों, तो जातक के दो विवाह होते हैं।
2️ इसी प्रकार लग्नेश, सप्तमेश तथा शुक्र द्विस्वभाव राशि में हों, तो जातक के दो विवाह होते हैं।
3️ यदि सप्तम और अष्टम में पापी ग्रह हों और मंगल द्वादश स्थान में हो, तो जातक के दो विवाह होते हैं।
4️ सप्तम स्थान का कारक यदि पापी ग्रह से युत अथवा नीच नवांश अथवा शत्रु नवांश अथवा अष्टमेश के नवांश में हो, तो भी जातक के दो विवाह होते हैं।
5️ यदि सप्तमेश और एकादशेश साथ हों अथवा एक दूसरे पर दृष्टि रखते हों, तो जातक के कई विवाह होते हैं। प्रेम संबंध के योग: प्रेम संबंध पंचम भाव से देखा जाता है।
6️ लग्नेश एवं पंचमेश का संबंध (चतुर्विध) प्रेम संबंध का द्योतक होता है।
7️ पंचमेश तथा सप्तमेश की एकादश भाव में युति भी प्रेम संबंध को बढ़ावा देती है।
8️ पंचमेश भाव में शुभकर्तरी तथा सप्तम भाव का पापी प्रभाव में होना एवं लग्नेश की पंचम भाव पर दृष्टि यह सारी ग्रह स्थिति प्रेम संबंध को बढ़ावा देती है.!!

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