142 दिन बाद निद्रा से जागेंगे श्रीहरि

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दो दिन होगी देव प्रबोधिनी एकादशी… रवि योग और रुचक महापुरुष राजयोग का संयोग

देवउठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi) इस बार 1 नवंबर, शनिवार को मनाई जाएगी। इस दिन भगवान विष्णु (Lord Vishnu) और मां लक्ष्मी (Goddess Lakshmi) की उपासना की जाती है। इस एकादशी को देवोत्थान एकादशी, देवुत्थान एकादशी और देव प्रबोधिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी से सभी मांगलिक कार्यों जैसे विवाह, मुंडन की शुरुआत हो जाती है और चार महीने के चातुर्मास का समापन होता है। इस बार देवउठनी एकादशी बेहद खास मानी जा रही है, क्योंकि इस दिन एक खास योग बनने जा रहे हैं। दरअसल, इस दिन रवि योग और रुचक महापुरुष राजयोग का संयोग बनने जा रहा है। देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु लगभग 142 दिन बाद योग निद्रा से जागेंगे।

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। यह तिथि हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र और शुभ मानी गई है। इसी दिन भगवान विष्णु चार महीनों की योग निद्रा से जागते हैं। भगवान विष्णु के जागने के साथ ही चातुर्मास का समापन होता है और सभी मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन आदि पुन: प्रारंभ हो जाते हैं। देवउठनी एकादशी को देव प्रबोधिनी एकादशी, देवोत्थान एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन साधक भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं और व्रत का पालन करते हैं। इसके साथ ही इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है। इस साल एकादशी तिथि दो दिन होने के कारण असमंजस की स्थिति बनी हुई है कि किस दिन देवउठनी एकादशी का व्रत रखना लाभकारी हो सकता है।

वैदिक पंचांग के अनुसार
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 1 नवंबर को सुबह 9 बजकर 12 मिनट पर आरंभ हो रही है, जो 2 नवंबर को शाम 7 बजकर 32 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में देवउठनी एकादशी का व्रत गृहस्थ लोग 1 नवंबर को और वैष्णव संप्रदाय के लोग 2 नवंबर को रखेंगे। दरअसल, वैष्णव परंपरा में व्रत का पारण हरियासर करते हैं यानी श्रीहरि विष्णु के जागने का सटीक मुहूर्त होता है, वहीं गृहस्थ लोग पंचांग के अनुसार रखते हैं।

संतों को अक्षय फल, गृहस्थों को लाभ
साल 2025 में हरि प्रबोधिनी एकादशी दो दिन तक मनाई जाएगी। गृहस्थ जीवनयापन वाले और वैष्णव यानी साधु-संतों को इस एकादशी का संपूर्ण फल प्राप्त होगा। कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 1 नवंबर से शुरू होगी, जो 2 नवंबर तक रहेगी। 1 नवंबर को स्मार्त यानी गृहस्थी में रहने वाले साधकों की ओर से एकादशी का व्रत करने पर इसका संपूर्ण फल प्राप्त होगा और जीवनभर कार्यों में बाधा, समस्याएं नहीं आएंगी। 2 नवंबर को वैष्णव संप्रदाय यानी साधु-संतों की ओर से यह व्रत करने पर उन्हें अक्षय फल की प्राप्ति होगी।

एकादशी व्रत पारण का समय
2 नवंबर को पारण का समय – दोपहर 01 बजकर 11 मिनट से 03 बजकर 23 मिनट
हरि वासर समाप्त होने का समय -12.55
3 नवंबर को गौण एकादशी के लिए पारण का समय-सुबह 06 बजकर 34 मिनट से 08 बजकर 46 मिनट तक

विधि-विधान से करें पूजन
देवउठनी ग्यारस के दिन ब्रह्मï मुहूर्त में जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए। इस दिन घर के दरवाजे को पानी से स्वच्छ करना चाहिए, फिर चूने व गेरू से देवा बनाने चाहिए। उसके ऊपर गन्ने का मंडप सजाने के बाद देवताओं की स्थापना करना चाहिए। भगवान विष्णु का पूजन करते समय गुड़, रूई, रोली, अक्षत, चावल, पुष्प रखना चाहिए। पूजन में दीप जलाकर देव उठने का उत्सव मनाते हुए ‘उठो देव बैठो देव’ का गीत गाना चाहिए। देव प्रबोधिनी एकादशी का महत्व शास्त्रों में उल्लेखित है। गोधूलि बेला में तुलसी विवाह करने का पुण्य लिया जाता है। एकादशी व्रत और कथा श्रवण से स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

नारायण से पहले जागती हैं महालक्ष्मी
देवउठनी ग्यारस को भगवान चार माह की निद्रा से उठते हैं। आषाढ़ माह शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान नारायण शयन करते हैं और कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागते हैं। यह भी मान्यता है कि पति से पूर्व पत्नी जागती हैं और घर की सफाई सहित अन्य कार्य पूर्ण कर पति के जागने की प्रतीक्षा करती हैं। ठीक उसी प्रकार माता महालक्ष्मी दीपावली के दिन जागती हैं। इसी कारण सभी घरों में साफ-सफाई की जाकर घरों की साज-सज्जा की जाती है।

ऐसे जगाएं भगवान को
व्रती स्त्रियां इस दिन प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन में चौक बनाएं। इसके पश्चात भगवान विष्णु के चरणों को कलात्मक रूप से अंकित करें। फिर दिन की तेज धूप में विष्णु के चरणों को ढंक दें। देवउठनी एकादशी को रात्रि के समय सुभाषित स्तोत्र पाठ, भगवत कथा और पुराणादि का श्रवण और भजन आदि का गायन करें। घंटा, शंख, मृदंग, नगाड़े और वीणा बजाएं। मंत्रों का जाप करें।

घर में विराजेंगे श्री, संपदा और वैभव
श्रीकृष्ण अथवा विष्णुजी तुलसी पत्र से प्रोक्षण किए बिना नैवेद्य स्वीकार नहीं करते। कार्तिक मास में विष्णु भगवान का तुलसीदल से पूजन करने का महत्व अवर्णनीय है। तुलसी विवाह से कन्यादान के बराबर पुण्य मिलता है, साथ ही घर में श्री, संपदा, वैभव विराजते हैं।
तुलसी नामाष्टक का जप करें
अश्वमेध यज्ञ से प्राप्त पुण्य कई जन्मों तक फल देने वाला होता है। यही पुण्य तुलसी नामाष्टक के नियमित पाठ से मिलता है। तुलसी नामाष्टक का पाठ किया जाना चाहिए।
तुलसी नामाष्टकवृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नन्दनीच तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।
य: पठेत तां च सम्पूज् सौऽश्रमेघ फलंलमेता।।
सनातन धर्म के अनुसार
शास्त्रानुसार ग्यारस के दिन किए गए दान-पुण्य का हजार गुना फल मिलता है। अत: इन दोनों ही दिन जितना अधिक से अधिक हो सके दान-पुण्य करना चाहिए। इस दिन गायों को चारा खिलाने तथा गरीब भिखारियों को भोजन, दान करने से समस्त पापों का नाश होता है और मृत्यु के बाद स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
एकादशी को भगवान विष्णु तथा माता लक्ष्मी का भी दिन माना जाता है। अत: यथाशक्ति देवशयनी एकादशी को उपवास रखकर भगवान विष्णु एवं मां लक्ष्मी की विधि अनुसार पूजा-आराधना करना चाहिए। ऐसा करने से इस जीवन में तो सुख-समृद्धि और शांति का आशीर्वाद मिलता है, मृत्यु उपरांत मोक्ष भी प्राप्त होता है।

अबूझ मुहूर्त में शुभ कार्य
ú नम: नारायणाभ्याम, ú उमा माहेश्वराय नम:, ú रां ईं हीं हूं हूं, ú घृणी सूर्याय आदित्य ú व दिवाकराय विरमहे महातेनाम धीमहिं तन्नाभानू प्रचोदयात मंत्र के जप से नौकरी में तरक्की, उत्तम स्वास्थ्य सहित मनोकामनाएं पूरी होती हैं। व्रत के दौरान इन मंत्रों का जप करना चाहिए। खखोल्काय स्वाहा से सूर्यदेव को अघ्र्य दें। देवउठनी ग्यारस के अबूझ मुहूर्त में सोने और चांदी की खरीदी लाभदायक रहेगी। इस दिन खरीदी गई वस्तु को भगवान विष्णु को अर्पित करने के बाद उसका उपयोग करने से शुभ फल प्रदान करने के साथ ही लंबे समय तक आपके पास रहेगी। इस दिन गन्ना और अन्य ऋतु फलों को दान करने से समृद्धि बढ़ती है।