शिवलिंग : भारत रहस्याें का देश है। खासतौर से यहां के प्राचीन मंदिराें में ऐसे रहस्य देखने को मिलते हैं, जो दुनिया में शायद ही कहीं आपको देखने को मिले। आज हम आपको भारत में भोलेनाथ के एक मंदिर के बारे में बता रहे हैं, जो बहुत अनोखा है। इस शिवलिंग का आकार हर साल बढ़ रहा है।
कहा जाता है कि यह दुनिया का एकमात्र शिवलिंग है। इस विचित्र मंदिर का नाम मातंगेश्वर है, जो मध्य प्रदेश के खजुराहो में स्थित है। बता दें कि खजुराहो पर्यटन स्थल के रूप में बहुत पॉपुलर है। इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है। यहां पर आप हिंदू और जैन मंदिराें को देख सकते हैं।
हर साल एक इंच बढ़ रहा है शिवलिंग का आकार :
इस मंदिर में शिवलिंग की ऊंचाई 9 मीटर है। यहां आने वाला हर भक्त इस शिवलिंग की महिमा देखकर हैरान रह जाता है। शिवलिंग का आकार हर साल एक इंच बढ़ रहा है। मंदिर के पुजारी और पर्यटन विभाग के लोग हर साल इस शिवलिंग को बकायदा इंची टेप से मापते हैं। उनका दावा है कि यह शिवलिंग जितना धरती के ऊपर है उतना ही धरती के नीचे भी है। कहने का मतलब है कि इसका आकार एक ऐसा रहता है चाहे वो धरती के ऊपर हो या धरती के नीचे।
इसलिए बढ़ रहा है शिवलिंग का आकार :
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शंकर के पास पन्ना रत्न (मृत्युमणि) था, जिसे शिव ने पांडवों के भाई युधिष्ठिर को दिया था। युधिष्ठिर से वह मणि मतंग ऋषि के पास पहुंचा और उसने राजा हर्षवर्मन को दे दिया। राजा हर्षवर्मन ने सुरक्षा के लिहाज से इस मणि को जमीन में गाड़ दिया। इस रत्न में अपार शक्ति थी लेकिन इसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था। जिससे यह शिवलिंग इस मणि के ऊपर प्रकट हुआ है। मतंग ऋषि के रत्न के कारण ही इसका नाम मातंगेश्वर महादेव पड़ा। इस रत्न के कारण ही इस शिवलिंग का आकार हर साल बढ़ता जाता है और इस रत्न की अपार शक्ति के कारण ही इस शिवलिंग को जीवित शिवलिंग कहा जाता है।
खजुराहो का सबसे ऊंचा मंदिर :
लक्ष्मण मंदिर के पास स्थित यह मंदिर 35 फीट के वर्गाकार का है। इसका गर्भगृह भी वर्गाकार है। प्रवेश द्वार पूरब की ओर है। मंदिर का शिखर बहुमंजिला है। माना जाता है कि यह मंदिर 900 से 925 ईसवीं के आसपास माना जाता है। इस शिवलिंग को मृत्युंजय महादेव के नाम से भी लोग जानते हैं। मतंगेश्वर महादेव मंदिर को खजुराहो में सबसे ऊंचा मंदिर माना जाता है।
स्वर्ग की ओर जाता है मंदिर का ऊपरी हिस्सा :
यहां के पुजारियों के अनुसार, 9वीं शताब्दी का यह मंदिर कलयुग से जुड़ा है। माना जाता है कि इस मंदिर का ऊपरी हिस्सा स्वर्ग की ओर और निचला हिस्सा पाताल लोक की ओर। माना जाता है कि जब यह हिस्सा पाताल लोक की तरफ पहुंचेगा तब कलयुग खत्म हो जाएगा।
हर साल बढ़ रही है मंदिर की मान्यता :
इस मंदिर की मान्यता हर साल बढ़ रही है और भक्तों की भीड़ भी बढ़ती जा रही है। वैसे तो यह मंदिर साल भर ही भक्तों का स्वागत करता है, लेकिन श्रावण मास के दौरान यहां भक्ती के अलग ही नजारा दिखाई देता है।