Friday, April 25, 2025
Homeधर्मजो हो रहा है उसके जिम्मेदार हम खुद हैं 

जो हो रहा है उसके जिम्मेदार हम खुद हैं 

हम मनुष्यों की एक सामान्य सी आदत है कि दु?ख की घड़ी में विचलित हो उठते हैं और परिस्थितियों का कसूरवार भगवान को मान लेते हैं। भगवान को कोसते रहते हैं कि हे भगवान हमने आपका क्या बिगाड़ा जो हमें यह दिन देखना पड़ रहा है। गीता में श्री कृष्ण ने कहा है कि जीव बार-बार अपने कर्मों के अनुसार अलग-अलग योनी और शरीर प्राप्त करता है।  यह सिलसिला तब तक चलता है जब तक जीवात्मा परमात्मा से साक्षात्कार नहीं कर लेता। इसलिए जो कुछ भी संसार में होता है या व्यक्ति के साथ घटित होता है उसका जिम्मेदार जीव खुद होता है। संसार में कुछ भी अपने आप नहीं होता है। हमें जो कुछ भी प्राप्त होता है वह कर्मों का फल है। इश्वर तो कमल के फूल के समान है जो संसार में होते हुए भी संसार में लिप्त नहीं होता है। ईश्वर न तो किसी को दु:ख देता है और न सुख।    
इस संदर्भ में एक कथा प्रस्तुत है? गौतमी नामक एक वृद्धा ब्राह्मणी थी। जिसका एक मात्र सहारा उसका पुत्र था। ब्राह्मणी अपने पुत्र से अत्यंत स्नेह करती थी। एक दिन एक सर्प ने ब्राह्मणी के पुत्र को डंस लिया। पुत्र की मृत्यु से ब्रह्मणी व्याकुल होकर विलाप करने लगी। पुत्र को डंसने वाले सांप के ऊपर उसे बहुत प्रोध आ रहा था। सर्प को सजा देने के लिए ब्राह्मणी ने एक सपेरे को बुलाया। सपेरे ने सांप को पकड़ कर ब्राह्मणी के सामने लाकर कहा कि इसी सांप ने तुम्हारे पुत्र को डंसा है इसे मार दो।   
ब्राह्मणी ने संपरे से कहा कि इसे मारने से मेरा पुत्र जीवित नहीं होगा। सांप को तुम्ही ले जाओ और जो उचित समझो सो करो। संपेरा सांप को जंगल में ले आया। सांप को मारने के लिए संपेरे ने जैसे ही पत्थर उठाया सांप ने कहा मुझे क्यों मारते हो मैंने तो वही किया जो काल ने कहा था। संपेरे ने काल को ढूंढा और बोला तुमने सर्प को ब्राह्मणी के बच्चे को डंसने के लिए क्यों कहा। काल ने कहा ब्राह्मणी के पुत्र का कर्म फल यही था। मेरा कोई कसूर नहीं है। सपेरा कर्म के पहुंचा और पूछा तुमने ऐसा बुरा कर्म क्यों किया। कर्म ने कहा मुझ से क्यों पूछते हो यह तो मरने वाले से पूछो मैं तो जड़ हूं। इसके बाद संपेरा ब्राह्मणी के पुत्र की आत्मा के पास पहुंचा। आत्मा ने कहा सभी ठीक कहते हैं। मैंने ही वह कर्म किया था जिसकी वजह से मुझे सर्प ने डंसा इसके लिए कोई अन्य दोषी नहीं है।   
महाभारत के युद्ध में अर्जुन ने भीष्म को बाणों से छलनी कर दिया और भीष्म पितामह को बाणों की शैय्या पर सोना पड़ा। इसके पीछे भी भीष्म पितामह के कर्म का फल ही था। बाणों की शैय्या पर लेटे हुए भीष्म ने जब श्री कृष्ण से पूछा किस अपराध के कारण मुझे इसे तरह बाणों की शैय्या पर सोना पड़ रहा है। इसके उत्तर में श्री कृष्ण ने कहा था कि आपने कई जन्म पहले एक सर्प को नागफनी के कांटों पर फेंक दिया था। इसी अपराध के कारण आपको बाणों की शैय्या मिली है।  इसलिए कभी भी जाने-अनजाने किसी भी जीव को नहीं सताना चाहिए। हम जैसा कर्म करते हैं उसका फल हमें कभी न कभी जरूर मिलता है। 

RELATED ARTICLES

Contact Us

Owner Name:

Deepak Birla

Mobile No: 9200444449
Email Id: pradeshlive@gmail.com
Address: Flat No.611, Gharonda Hights, Gopal Nagar, Khajuri Road Bhopal

Most Popular

Recent Comments

Join Whatsapp Group
Join Our Whatsapp Group