आगामी गुजरात विधानसभा की लड़ाई भविष्य की राजनीति के लिये एक बहुत बड़ा संकेत बनने जा रही है। पिछले दो दशक के अधिक समय से गुजरात में सत्तासीन भाजपा के लिये राष्ट्रीय राजनीति में अपनी दावेदारी को मजबूत करने का यह महत्वपूर्ण अवसर है। गुजरात द्वारा राजनीति में स्थापित परम्पराओं के अनुसार अस्मिता और भाषाई एकता के संस्कार राज्य से केन्द्र की राजनीति को बल देते हैं। प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी गृह मंत्री के रूप में अमित शाह की राष्ट्रीय स्तर की उपलब्धि को गुजरात राष्ट्रीय राजनीति में क्रांतिय गौरव को स्थापित करने से जोड़ कर देखता है।
यह माना जाता है कि गुजराती समाज मूलतः व्यवसायिक होता है और सामाजिक, धार्मिक मान्यताओं एवं कार्यक्रमों को भी किसी न किसी रूप में व्यवसायी की उन्नति और विकास से जोड़कर भी देखता है। गुजरात में द्वारका की उपस्थिति समूचे प्रान्त में जय श्री कृष्णा के उद्घोश से परिलक्षित होती है। अपने छोटे से दायरे में अधिक से अधिक खुशियों को बटोर लेने वाले गुजराती समाज के लोग आम तौर सीधे और सरल माने जाते है। पर व्यवसाय की दृष्टि से संभावनाओं की तलाश और छोटे से छोटे कुटीर उद्योग को एक बड़े उद्योग में परिवर्तित कर देने में वे पारंगत भी है। गुजराती समाज के लोगों का समर्पण विभिन्न रंगों के प्रति और प्रकृति के प्रति स्पष्ट नजर आता है।
अपनी पोशाकों के माध्यम से किन्हीं भी स्थितियों में रंग बिखेर देने में सिर्फ गुजराती समाज की हर धारा के साथ बहुत आसानी के साथ जुड़ जाते हैं। यही कारण है कि समूचे भारत के उद्योगों में एक बहुत बड़ा हिस्सा गुजरात के निवासियों का भी है। उनकी सभ्यता और संस्कृति खान-पान को अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली हुई है। परंतु आश्चर्य यह होता है कि इतने सहज माने जाने वाले गुजरातियों के राज्य में इतना बड़ा सामाजिक दंगा कैसे हो जाता है। क्या सामान्य से दिखने वाले इस समाज में हिन्सक प्रवृतियां इतने बडे़ आकार में छिपकर रह सकती है। दंगो के काल में जिस तरह गुजरात में मारकाट मची और खून बहा, उसमें कई प्रश्न वर्तमान मानव सभ्यता के सामने खड़े कर दिये हैं। क्या गुजराती समाज जिस कोमल व्यवहार और स्पर्श से विश्व को आकर्षित करता है, वही समाज दंगों की विभीषिका के समय इतना क्रूर हो सकता है।
राजनैतिक रूप से यह मान्यता है कि गुजराती समाज समग्र की ओर सोचता है। पहनावा, खान-पान और व्यवहार के अतिरिक्त यह समाज भविष्य के सामाजिक और राजनैतिक सुधारों को भी न सिर्फ महसूस करता है बल्कि उसकी आधारशिला भी रखता है। इन स्थितियों में गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनाव क्या केवल गुजराती अस्तित्व की पहचान के प्रश्न पर सिमित रह जायेगी या आम आदमी पार्टी द्वारा दिये जा रहे आश्वासन उनकी विचारधारा में कोई परिवर्तन ला पायेगा, गुजराती एक स्वतंत्र सोच का समाज है। भाजपा में गुजरात चुनाव को लेकर फेली हुई बैचेनी यह स्पष्ट करती है कि राज्य का मतदाता कोई घुटन महसूस कर रहा है और परिवर्तन की और बढ़ना चाहता है। गुजराती एक प्रायोगिक समाज है जो नित्य नूतन प्रयोगों पर विश्वास करता है। राष्ट्रीय राजनीति में मिली पहचान को गुजराती स्वयं कितना राष्ट्र और समाज हित मे मानते हैं। कितना वे इस अधिपत्य से एकाकार हो पाते हैं, यह गुजरात का चुनाव स्पष्ट कर देगा। जिसके परिणाम राष्ट्रीय राजनीति को न सिर्फ प्रभावित करेंगे बल्कि उसकी दिशा का निर्धारण भी कर देंगे।
Sudhir Pandey Ke Facebook Wall Se