सुधीर पाण्डे
भोपाल: पूरे देश में लुप्त हो रही कांग्रेस अपनी दुर्दशा को सुधारने के लिए अब सीधे तौर पर हनुमान चालीसा का सहारा लेने को बाध्य हो गई है। राजनीति के लिए किसी प्रभावकारी जनहित, आधारहित योजना को बना न पाने के कारण कांग्रेस भी उस रास्ते पर चल पड़ी है जिस रास्ते को भाजपा ने तैयार किया था और उस पर चलकर ही आम आदमी पार्टी ने दो राज्य में सत्ता प्राप्त करने में सक्षम रही। कांग्रेस को भी वही मार्ग सरल और प्रभावकारी नज़र आया और कांग्रेस ने अपने सभी कार्यकार्ताओं के हाथों में युद्ध के बिगुल के स्थान पर धर्म का कमंडल थमा दिया।
इन सौ वर्षो के दौरान जिस हिन्दू निष्ठा को संघ ने भाजपा की राजनैतिक उपलब्धि बना दिया है, उसे काट पाना कांग्रेस के इस छोटे से प्रयास से संभव नहीं है। इसके बावजूद बयानों और कागजों में कांग्रेस को भविष्य में मिलने वाली संभवित पराजय के कारणों में अपने प्रयास की सत्यता का एक प्रमाण जरूर मिल जायेगा। वैसे भी राजनैतिक रूप से हिन्दू धर्म और उसका दर्शन आज राजनीति के लिए एक फुटबाल की तरह हो गया है। जिन श्रेष्ठ परम्पराओं से हिन्दू धर्म की बुनियाद मजबूत होती थी उन कहानियों प्रार्थनाओं को आज युद्ध के उदघोष के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। मस्जिदों में होने वाले अजान के विरुद्ध लाउडस्पिकर से हनुमान चालीसा का गायन करना उन्हीं में से एक है। दुर्गा क्षति के और विभिन्न वैदिक मंत्रों का सिनेमा हाल में चल रही पिच्चर में सास्वर गायन होना वास्तविक वैदिक परम्पराओं को और मापदण्डों का उल्लंघन है पर ऐसा लगता है कि हिन्दू धर्म की और संस्कृति की सभी पद्यतियों को आज कार्पोरेट कल्चर में शामिल कर लिया गया है।
मध्यप्रदेश कांग्रेस ने एक और प्रयास किया है, जहां भविष्य के संभवित मुख्यमंत्री या वरिष्ठ नेताओं को प्रदेश अध्यक्ष ने एक बैठक में बुलाकर उनसे बदलती राजनीति के संदर्भ में पहली बार चर्चा की है। सामुहिक रूप से एकत्र हुए इन बडे़ नेताओ ने कमलनाथ के आवास पर ही चर्चा की और एक साथ भोजन ग्रहण किया। यह अपने आप में किसी उपलब्धि से कम नहीं है कि अपने-अपने गुटों को लेकर उपद्रव मचा रहे तमाम राजनेता कुछ मिनिट के लिए ही सही एक बाल्टी मे तो एकत्र हुए और उन्होंने कांग्रेस के हित में किसी विषय पर कोई बातचीत तो की। इस मुलाकात का प्रभाव वास्तव में कुछ नहीं पड़ने वाला यह कुछ ऐसा ही है कि कुश्ती प्रारंभ होने के पहले सभी प्रतियोगी पहलवान आपस में पंजा लड़ाकर एक दूसरे की मास-पेशियों की ताकत का अंदाज लगा रह है। दूसरे अर्थो में समझा जाए तो एकत्र हुए सभी आधारहीन महत्वाकांशी बडे़ नेता बैठक के बाद अपनी व्यक्तिगत रणनीति को और तेज धार देने में जुट गये होंगे। बिचारी कांग्रेस मध्यप्रदेश में सहारों के भरोसे अंतिम सांस ले रही है और उसके भविष्य को सुरक्षित करने के लिए कोई स्थायी आधार नहीं नज़र आ रहा है।