😊अगिया बेताल😊
क़मर सिद्दीक़ी
गाना तो बजाया जाना था,”हमें तो लूट लिया है,सियासत वालों ने”…और बजाया जा रहा है,”हमें तो लूट लिया है हुस्न वालों ने। ऐसे में हंगामा तो होना ही था। आज ये ज्ञान भी प्राप्त हुआ कि, एक नाचने-गाने वाली की बिकनी भी किसी की मूर्खता को ढांप सकती है। एक मुगल-ए-आज़म था,जिसके ऊपर कभी अनारकली ने अहसान किया था,आज आधुनिक आलमपनाह पर एक नायिका की कृपा हो गई। हमारी बुद्धिमता,व महानता की पराकाष्ठा देखो,इतने भारी भरकम मुद्दों के ऊपर एक लंगोटी भारी है।
आमजन पसोपेश में हैं,जब कोई अपने आप को ओढ़-ढांप ले तो गुलामी की निशानी,और अगर गुलामी से बाहर निकलने का प्रयास करे तो अश्लीलता। आख़िर करें तो क्या करे? समूचे गाने में कई रंग दिखे,पर काम का सिर्फ एक ही निकला,वो भी कॉपी राइट वाला। आशंका तो ये थी कि,सूफी विचारधारा के निज़ामी परंपरा वाले कहीं बवाल न काट दें,क्योंकि निज़ामुद्दीन के सजजादानशीं से लेकर वहां के अकीदतमंद सभी अपने सिर पर इसी रंग की पगड़ी बांधते हैं। तुम्हारी ये मजाल,जिसे हम सिर पर धारण करते हैं,तुमने उसे……! मगर कुछ न हुआ,होता भी क्यों,इससे उन्हें कौन सा लाभ होने वाला था। यहां कोई भी काम ऐसे ही थोड़ी होता है। रस्म-ए-सियासत भी,मौक़ा भी,दस्तूर भी तो होना चाहिए। जो मूर्ख बिना सोचे समझे इस आग में कूद पड़े,वो तो दुखी हैं,पर जिन्होंने इसमें चिंगारी पैदा की थी वो मंद मंद मुस्कुरा रहे हैं,लो उस्ताद अपना काम तो हो गया,हो सकता है,उस नायिका और सारे क्रू का मन ही मन शुक्रिया भी अदा कर रहे हों।
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण ‘प्रदेश लाइव’ के नहीं हैं और ‘प्रदेश लाइव’ इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेता है।)