ना काहू से बैर/ राघवेंद्र सिंह
मध्य प्रदेश का सियासी सीन कुछ इस तरह का है कि संगठन में मजबूत भाजपा बदलाव के नाम पर खरगोश की तरह उछलते – कूदते काम कर रही हैं। निर्णयों में समझदारी और समन्वय की अपेक्षा विमर्श कम विवाद ज्यादा की तर्ज पर सब चल रहा है। सुबह कमेटियों का गठन और शाम को उन्हें भंग करने से अनाड़ीपन का जो नया चलन शुरू हुआ है उससे नुकसान प्रति घन्टे की रफ्तार से हो रहा है। पीढ़ी परिवर्तन के जिस काम का चहुंओर स्वागत होना चाहिए था वह इतना बेशऊर किया गया कि उसकी प्रशंसा के बजाए जी भरकर निंदा हो रही है। बदलाव की तेज रफ्तार ने पूरे घर के संगठक बदल तो दिए मगर उससे जो रायता फैल रहा है उसे समेटने के लिए संघ के सिफारिश करने वाले नेताओं को भी कुछ समझ सूझ नही पड़ रहा है। बदहवासी का आलम यह है कि रायता हाथ से तो कोई जुबान से समेटने का प्रयास कर रहा है। आम कार्यकर्ताओं से लेकर संघ के दिग्गजों की चिंता कमजोर और बद से बदतर होते संगठन की तरफ इशारा करती है। जिन विष्णुदत्त शर्मा की भाजपा आयु 10 वर्ष की थी उन्हें प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बना कर पार्टी में सकारात्मक क्रांति का सपना देखा गया था अब उसे बुरे सपने की तरह टूटता हुआ भी देखा जा रहा है। संघ के एक दिग्गज के साथ प्रदेश भाजपा की समीक्षा में माना गया कि अधेड़ और साठ की उम्र वाले स्वस्थ व सक्रिय पके नेताओं को अनुभवहीन युवाओं को लाने के नाम पर जिस जल्दबाजी के साथ साइड लाइन किया गया उससे पार्टी को प्रति घन्टे के हिसाब से नुकसान हो रहा है। भोपाल से लेकर पूरे सूबे में जिस तरह संगठन चल रहा है उससे लगता है आने वाले नगरीय चुनाव में भाजपा सबसे कमजोर प्रदर्शन करे तो किसी को आश्चर्य नही होगा। बस इसी बात का डर संघ परिवार और भाजपा के प्रमुख नेताओं की नींद उड़ाए हुए है।
भाजपा में पहली बार हुआ…
पिछले दिनों दिल्ली में भाजपा की समीक्षा बैठक में जिस रिपोर्ट कार्ड पर बात हुई उसमे पहली बार संघ नेताओं की भी उपस्थिति रही। यह कई अर्थों में बेहद अहम है। इसे भाजपा में संघ का सीधा दखल भी माना गया। अर्थात संघ अपने जिन प्रिय पात्रों को भाजपा में संगठन महामंत्री के अलावा जिन पदों पर बैठाएगा उनकी असफलताओं को ढकने के लिए खुद भी मौजूद रहेगा। पहले इस तरह के संरक्षण का भाव केवल संगठन मंत्रियों के लिए ही देखा जाता था लेकिन अब यह दायरा बढ़ कर पब्लिक पॉलिटिक्स से सीधे जुड़े रहने वाले पदों तक जा पंहुचा है। बस यहीं से संगठन की दुर्गति का बैंडबाजा बारात निकलने के हालात बन गए हैं । दिल्ली बैठक में संघ ने भी अनुभवी नेताओं को हाशिए पर लाने को अच्छा नही मानते हुए अप्रसन्नता व्यक्त की। बताते हैं इस बैठक में मुख्यमंत्री से लेकर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भी शरीक थे। सीएम- अध्यक्ष में समन्वय बढाने की बातें भी हुईं।
सुबह समिति बनी और शाम को भंग…
भाजपा में निंदक नियरे राखिए …की बात तो अब दूर की कौड़ी है। जो अखबार, पत्रकार, नेता- कार्यकर्ता सच्ची और अच्छी बात कहे उसे पार्टी विरोधी या कुंठाग्रस्त बता घर बैठाने की राह पर लगता है पूरी टीम चल पड़ी है।
एक बैठक में प्रभारी मुरलीधर राव को कहना पड़ा- ये क्या तमाशा चल रहा है कि भाजपा, युवा मोर्चा, प्रकोष्ठों की कार्यकारणी का गठन नही हो पा रहा है। 2023 में चुनाव होना है। जिलों की कार्यकारणी सुबह गठित होती है और शाम को भंग हो जाती है।
दूसरी तरफ हकीकत यह है कि भाजपा की मीडिया/प्रवक्ताओं की टीम जो कभी बहुत स्ट्रांग होती थी वह बिखरी सी है। मीडिया फ्रेंडली मुद्दों के जानकार खांटी भाजपाई उपेक्षित और उदास हैं । पूर्व संवाद प्रमुखों से लेकर मीडिया प्रमुख रहने वाले नेताओं में विजेंद्र सिंह सिसोदिया, दीपक विजयवर्गीय, गोविं मालू, डॉ हितेष वाजपेई से लेकर राजो मालवीय, प्रखर नेता रजनीश अग्रवाल को उनकी विशेषज्ञता के अनुरूप काम नही मिला। जिन शैलेन्द्र शर्मा को 2004- 05 में रोजगार बोर्ड का अध्यक्ष बनाया था उन्हें संगठन में जब कोई जिम्मेदारी नही मिली तो फिर उन्हें रोजगार बोर्ड का जिम्मा सौंप दिया गया।
राजनीति में नाबालिगों के जिम्मे भाजपा…
संघ परिवार में अक्सर प्रचारकों की संग आयु पूछी जाती है। उसी के हिसाब से उनका महत्व होता है ऐसे ही भाजपा में भी पार्टी के लिए काम करने वालों की आयु पुष्टि आती है आमतौर से आज की तारीख में जो भाजपा में संगठन के कर्ताधर्ता है उनकी भाजपा आयु दो से लेकर 12 वर्ष तक की है और उनके अधीनस्थ काम करने वालों की पार्टी में प्रदेश जे लेकर मंडल तक काम करने वालों की राजनीतिक आयु 30 से 40 साल तक की है। ऐसे में उन्हें जो ऊपर से निर्देश मिलते हैं वह अपरिपक्व होने के साथ-साथ राजनीति में अनाड़ीपन के भी होते हैं। यही वजह है कि प्रदेश भाजपा की कार्यसमिति की बैठक जो आमतौर से तीन महीने में होती है वह ढाई साल तक नहीं हो पाती । वह इसके अलावा भाजपा में युवा मोर्चा और महिला मोर्चा सबसे महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इत्तेफाक से युवा मोर्चा के जो अध्यक्ष पिछले दो बार से रहे हैं उनका राजनीतिक अनुभव शून्य से शुरू होता है। वर्तमान में भाजयुमो प्रदेश अध्यक्ष वैभव पवार अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से प्रदेश भाजपा में आते हैं और फिर सीधे मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष बना दिए जाते हैं । अनुभव न आंदोलन कुछ नही। गणेश परिक्रमा का प्रताप बस। इसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ रहा है। पद तो जल्दी मिला लेकिन संगठन चलाने की गम्भीरता तो अनुभव से ही आएगी। अध्यक्ष प्रेस वार्ता रखते हैं और खुद ही गैरहाजिर हो जाते हैं। अनाड़ीपन की यह पूरी एक श्रंखला है जो प्रदेश भाजपा से लेकर युवा मोर्चा उनके प्रभारियों तक इस कदर है कि केंद्रीय नेतृत्व और बतौर उनके नुमाइंदे भेजे गए प्रदेश प्रभारी भी परेशान हैं। हालात ये है कि पूरे आसमान में ही छेद है पैबन्द कहां तक लगाए जाएं। टीम कैप्टन के नाते अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा भी अवश्य चिंतित होंगे। संगठन की कमजोरी उनके लिए भी अच्छी खबर तो नही है। नगरीय निकाय के चुनाव हुए तो बहुत सम्भव है पार्टी अब तक का सबसे कमजोर प्रदर्शन करे। अनुशासन में रहने वाले सन 2000 के पहले वाले कार्यकर्ता मिस कॉल वाली नई टीम में अल्पसंख्यक की तरह हैं। नए हैं तो उनके सपने भी पार्षद और मेयर बनने वाले हैं। पार्टी के लिए निष्ठा और समर्पण से काम करना उनकी डिक्शनरी में थोड़ा मुश्किल से मिलेगा। इसलिए टिकट पाने के लिए जूतमपैजार वाला संघर्ष भी दिख सकता है। एक जिले की यात्रा के दौरान प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव ने बेनर पोस्टर, होर्डिंग की भरमार देखते हुए नसीहत दी कि होर्डिंग लगाने और हनुमान चालीसा जेब मे रखने से टिकट नही मिलेगा। पार्टी के लिए काम करना होगा।
दरअसल कार्यकर्ताओं को संस्कारित करने वाले संगठन महामन्त्रियों की गर्व करने वाली परम्परा में अब पितृ पुरुष कुशाभाऊ ठाकरे हैं न रसूख और रुआबदार प्रो कप्तान सिंह सोलंकी जैसे कद्दावर संगठनमंत्री हैं। इसलिए तो प्रभारी मुरलीधर राव को हर बार भोपाल से लेकर दिल्ली तक बैठकों में जो कहना सुनना पड़ रहा है प्रतिदिन पार्टी की चिंता को और भी स्याह करता प्रतीत हो रहा है।
संघ के सहकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले से लेकर प्रदेश प्रभारी के बयानों की बानगी सबको चिंता में डालने वाली है।
पीढ़ी परिवर्तन के नाम पर पूरे घर के बदल डालेंगे की तर्ज पर पुराने कार्यकर्ताओं की जगह नए रंगरूटों ने ली है उससे भाजपा के सभी वरिष्ठ परेशान है। बड़ी संख्या में अनुभवियों को हाशिए करने पर श्री होसबोले ने एतराज जताया है। संघ परिवार के जिन दिग्गजों की सिफारिश पर भाजपा में युवाओं के नाम पर जो पदाधिकारी बने हैं वे सब गुड़ गोबर करने में जुटे है।
कांग्रेस की कछुआ चाल…
मध्यप्रदेश में कांग्रेस बहुत खामोशी के साथ काम कर रही है। अध्यक्ष के तौर किसी नए नेता को लाने के बजाए कमलनाथ को बरकरार रखा। विवादों से बचते हए एक तरह से यह फिलहाल ठीक लगता है। जमीनी कमान फील्ड मार्शल दिग्विजयसिंह सम्हाले हैं। ग्वालियर – चंबल इलाके में कांग्रेस ज्योतिरादित्य सिंधिया को उलझाकर कमजोर करना चाहती है। कमलनाथ- दिग्विजयसिंह की जोड़ी का असर नगर निगम चुनावों में साफ देखने को मिलेगा। इन दोनों नेताओं को भाजपा में पीढ़ी परिवर्तन से उपजे असन्तोष
का अनुमान है। इसका वे चतुराई के साथ लाभ लेने की तैयारी में जुटे हैं। दिग्विजयसिंह के साथ युवक कांग्रेस अध्यक्ष और महिला कांग्रेस अध्यक्ष उनकी रणनीति के अनुरूप कदमताल कर रहे हैं। वैसे भी उन्हें कार्यकर्ताओं को एकजुट करना और उनसे काम कराना आता है।
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