सुधीर पाण्डे
भोपाल : ये कैसी राजनीति है, जिसमें लड़ने के पहले कई सेनापतियों को एक साथ वातानुकूलित कमरें में एक साथ बैठाने के बाद भी एक आम राय न बनाई जा सके। केवल यह निर्णय हो सके कि यदि कांग्रेस जीती तो कमलनाथ ही मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। राज्य में इन दिनों 16 से अधिक कांग्रेस गुटों के प्रमुख मुख्यमंत्री बनने की चाहत दिल में लिये हुये अपने-अपने तरीके से प्रयास कर रहे है। इस दौड़ में एक दूसरे को लंगड़ी मारने और दूसरे नेताओं के विरुद्ध अवांछनीय गतिविधियों के पुख्ता प्रमाणों को एकत्र करने का काम भी सभी नेताओं के मध्य बराबर जारी है।
कमलनाथ ने अपने निवास पर कांग्रेसी राजनीति के सभी जमीदारों की एक बैठक आयोजित की, इस बैठक में प्रमुख मुद्दा आपसी मतभेदों को भुलाकर कांग्रेस को मजबूत करने का था। नियत बिलकुल साफ थी पर बैठकर में भाग लेने वाले सभी नेता अपनी-अपनी राजनैतिक संभावनाओं को और अपने गुट के समर्थकों को संरक्षित करने की नियत से एक योजना बनाने के लिए एकत्र हुए थे। इनमें से कुछ वे भी थे जो स्वयं की राजनीति के चुक जाने के बाद अपने बच्चों के भविष्य और सुरक्षित बनाने की कोशिशों में लगें हुए थें। बैठक में जो भी हुआ हो बाहर संदेश यही गया कि कांग्रेस एक हो गई है। सभी जमीदारों ने एक साथ विशिष्ठ भोजन का आनंद लिया और कांग्रेस की प्रति अथाह चिंता रखते हुए अपने-अपने निवास की और नई तरकीब और षड़यंत्र की व्यूह रचना करते हुए रवाना हो गये ।
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कांग्रेस एक हो गई है इसकी कल्पना करना बेकार है, कांग्रेस को नेतृत्व लिए जिस नये खून की जरूरत है वह कहीं नहीं नजर आ रहा। यह तय है कि कमलनाथ की अगवायी में चुनाव लड़ते समय कांग्रेस को पैसों की चिंता नहीं रहेगी। पर वह वास्तविक जनाधार कहां से आयेगा जो आम मतदाता को कांग्रेस के साथ जोड़ सके और कांग्रेस के प्रति उसके अंदर एक स्वयं और विश्वास पैदा कर सकें। इन प्रश्नों के उत्तर कार्याकर्ताओं की ईमानदार गतिविधियों पर निर्भर करता है। जब जमीदार अर्श पर बैठे हुए बड़े नेता कार्यकर्ताओं के साथ फर्श पर चलकर जनमत और जनभावनाओं के अनुसार कुछ करने की कोशिश करते है तो ही पार्टी का जनाधार बनता है। महंगाई के विरुद्ध अपने बंगले के सामने गैस सिलेंडरों को माला पहना देना और देढ़ मिनिट का भाषण देकर और फिर वातानुकूलित कक्ष में चले जाना राजनीति नहीं हो सकती। इसे जनभावनाओं का सम्मान भी नहीं माना जा सकता। जमीन पर चलने वाले पैर जो जनाक्रोश को गति दे सकते है कांग्रेस के पास नहीं है। पिछले 20 सालों तक लगातार सरकार के साथ मिलकर एक व्यवसायी सहयोगी की रूप में काम कर रहे। कांग्रेसी नेताओं को अपनी मंहगी और लगजरी गाड़ियों में डलने वाले महंगे ईंधन की चिंता नहीं है। आज भी उनके बाड़े में पलने वाली भैसों को नहलाने के लिए उसी गैस सिलेण्डर से पानी गर्म किया जाता है, जिसे 6 महीने तक एक आम आदमी अपनी रसोई की जरूरत को पूरा करने के लिए भरवा पाने में अक्षम है। कांग्रेस दर्द की राजनीति को नहीं समझ रही, जमीदारों को महंगा खाना खिला कर और सिलेण्डर को माला पहना कर आम व्यक्ति की भावना तक नहीं पहुंचा जा सकता।
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इस बार कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती भाजपा तो है ही, आम आदमी पार्टी भी कांग्रेस के सामने आम व्यक्ति की भावनाओं को समझने के लिए बराबरी से उतरेगी। यही संदेह पैदा होता है कि इस दिखावटी राजनीति में कहीं कांग्रेस को पंजाब के परिणामों की पुनारावृर्ती देखने को न मिल जाए। मध्यप्रदेश में चाटुकारों को छोड़कर कुछ ईमानदार और स्पष्ट बोलने वाले नेताओं की जरूरत है जो पीढ़ी समय के साथ कम से कम कांग्रस में तो पूरी तरह समाप्त हो चुकी है।