‘माचिस’ से जली संगीत की लौ, क्रिकेट हार से मिला ‘मकड़ी’ का आइडिया: विशाल भारद्वाज का अनसुना किस्सा

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मुंबई : विशाल भारद्वाज बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। संगीत और सिनेमा दोनों में उन्हें महारत हासिल है। मगर, उत्तर प्रदेश के बिजनौर में जन्मे विशाल ने सपना तो क्रिकेटर बनने का देखा था। मेरठ में रहते हुए उन्होंने स्टेट लेवल पर अंडर-19 क्रिकेट खेला भी है। मगर, किस्मत ने उनके लिए सिनेमा की दुनिया का रास्ता तय कर रखा था। आखिर कैसे रह गया क्रिकेटर बनने का सपना अधूरा? फिर संगीत और सिनेमा से कैसे जुड़ा नाता? विशाल भारद्वाज के जन्मदिन पर जानते हैं

एक हादसे से टूटा क्रिकेटर बनने का सपना, मगर…

विशाल भारद्वाज का जन्म 04 अगस्त 1965 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर में हुआ था। विशाल का बचपन मेरठ में गुजरा। यहां रहकर उन्होंने स्टेट लेवल पर क्रिकेट भी खेला। क्रिकेटर बनने के लिए ही वे प्रयास कर रहे थे, मगर एक हादसे ने सबकुछ बदल दिया। दरअसल, एक टूर्नामेंट से ठीक पहले प्रैक्टिस सेशन के दौरान उनके अंगूठे की हड्डी टूट गई, जिसकी वजह से वो आगे क्रिकेट नहीं खेल सके। इसके बाद विशाल ने पूरा फोकस पढ़ाई पर किया और फिर राह संगीत और निर्देशन की ओर खुली। 

पिता की सलाह पर संगीत सीखा और बन गई बात

पिता की सलाह पर विशाल भारद्वाज ने संगीत सीखा। बता दें कि उनके के पिता ने भी संगीत के क्षेत्र में काम किया है। सिर्फ 17 साल की उम्र में विशाल ने एक गाने का संगीत दिया, जिसे सुनने के बाद विशाल के पिता ने इस बारे में संगीतकार ऊषा खन्ना से बात की। ऊषा खन्ना ने उस संगीत को फिल्म 'यार कसम' (1985) में लिया। अपना काम खत्म करने के बाद विशाल वापस दिल्ली आ गए और ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। शुरुआती दौर मे विशाल भारद्वाज ने म्यूजिक रिकॉर्डिंग कंपनी मे भी काम किया और उसी दौरान दिल्ली में उनकी मुलाकात गुलजार साहब से हुई। गुलजार के साथ उन्होने 'चड्डी पहन के फूल खिला है' गीत की रिकॉर्डिंग की। 

गुलजार को मानते हैं प्रेरणास्रोत

विशाल भारद्वाज ने 1995 में फिल्म 'अभय' से संगीतकार के तौर पर डेब्यू किया। उन्हें गुलजार की फिल्म 'माचिस' (1996) से पहचान मिली, जिसमें विशाल ने संगीत दिया। विशाल भारद्वाज गुलजार को अपना प्रेरणास्त्रोत मानते हैं। फिल्म 'माचिस' से विशाल को अपार लोकप्रियता मिली। इस फिल्म के लिए उन्हे वर्ष 1996 के फिल्मफेयर आर. डी. बर्मन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। विशाल भारद्वाज ने साल 1998 में रिलीज हुई 'सत्या' और 1999 में गुलजार की फिल्म 'हू तू तू' का संगीत भी दिया। 1999 में फिल्म 'गॉडमदर' के लिए उन्हें बेस्ट संगीतकार का नेशनल अवॉर्ड दिया गया। उन्होंने चाची 420, दस कहांनियां, सात खून माफ, सोनचिरैया, डार्लिंग्स और खुफिया जैसी फिल्मों का संगीत भी दिया है।

ऐसे मिला 'मकड़ी' बनाने का आइडिया

विशाल भारद्वाज ने साल 2002 में बच्चों की फिल्म 'मकड़ी' से निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखा। इस फिल्म का संगीत भी उन्होंने खुद दिया था। विशाल को यह फिल्म बनाने का ख्याल कैसे आया, इसका किस्सा भी दिलचस्प है। अमर उजाला के साथ एक बातचीत में निर्माता हनी त्रेहान ने खुलासा किया कि 'विशाल भारद्वाज को क्रिकेट खेलना का बहुत शौक है। एक बार हम लोग क्रिकेट मैच हार कर लौट रहे थे। सबका मूड बहुत खराब था। किसी ने कोई लोककथा का जिक्र करते हुए इसी दौरान सबको हंसाने के लिए सुनाया कि एक लड़की ने पत्तियों से मुर्गी की आकृति बनाकर खाई और वह मुर्गी बन गई, जिसे कसाई काटकर खा गया। यहां से विशाल को फिल्म 'मकड़ी' बनाने का ख्याल आया।' 

शागिर्द अभिषेक चौबे से सीखा निर्देशन

इस फिल्म में विशाल के साथ निर्देशक अभिषेक चौबे बतौर सहायक निर्देशक और सह-लेखक जुड़े। दिलचस्प बात यह है कि विशाल को फिल्म निर्देशन की बारीकियां इन्हीं अभिषेक चौबे ने सिखाईं। हनी त्रेहान के मुताबिक उन्होंने और विशाल भारद्वाज ने जो कुछ भी निर्देशन के बारे में सीखा है, वह अभिषेक चौबे से सीखा है। अभिषेक चौबे अब खुद स्वतंत्र रूप से बतौर निर्देशक सक्रिय हैं। बतौर निर्देशक विशाल भारद्वाज ने कमाल की फिल्में सिनेमा को दी हैं इन्हीं में शेक्सपीयर के उपन्यासों पर बनी उनकी फिल्मत्रयी ‘मकबूल’, ‘ओंकारा’ और ‘हैदर’ हिंदी सिनेमा की धरोहर फिल्मों में शुमार हैं। इसके अलावा उन्होंने  ‘सात खून माफ’, ‘कमीने’, ‘मटरू की बिजली का मंडोला’, ‘रंगून’ और ‘पटाखा’ जैसी फिल्मों का निर्देशन भी किया है। 

कॉलेज में हुई रेखा भारद्वाज से मुलाकात और मिला जिंदगीभर का साथ

विशाल ने अपनी पढ़ाई दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज से की है। कॉलेज के एक फंक्शन के दौरान उनकी मुलाकात रेखा भारद्वाज से हुई। बाद में दोनों की दोस्ती हो गई और दोस्ती प्यार में तब्दील हो गई। साल 1991 में विशाल भारद्वाज और रेखा भारद्वाज शादी के बंधन में बंध गए।