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लोकप्रिय ड्राई फ्रूट मिठाई काजू कतली का आविष्कार कैसे हुआ, जानें इस मिठाई के दिलचस्प इतिहास के बारे में

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Kaju Katli: भारत का हर त्यौहार मिठाइयों के बिना बिल्कुल अधूरा है। हम इनके बिना किसी भी त्यौहार की कल्पना ही नहीं कर सकते। काजू कतली हर किसी की फेवरेट होती हैं। इसलिए जब भी कुछ मीठा खाने की बात होती है, तो काजू कतली का ही ख्याल मन में आता है। हालांकि, पिछले कुछ सालों से एक मिठाई ने कुछ महंगी होने लोगों के दिलों में खास जगह बना ली है यह है काजूकतली। अधिक दाम की माने जाने वाली ड्रायफ्रूट वाली इस मिठाई को लोग आजकल गिफ्ट के तौर पर देना भी खूब पसंद करते हैं। लेकिन यह मिठाई सबसे पहले कब बनी और इसे किसने ईजाद किया, इस पर हमें एक रोचक कहानी मिलती है जिसका संबंध मराठाओं और मुगल दोनों से है।

ड्रायफ्रूट वाली लोकप्रिय मिठाई

जिसे काजू बर्फी के नाम से भी जाना जाता है, एक भारतीय मिठाई है, जो दक्कन में उत्पन्न होती है ,और पूरे उत्तर भारत में लोकप्रिय रूप से खाई जाती है। काजू का अर्थ है काजू ; बर्फी अक्सर दूध को चीनी और अन्य सामग्री (जैसे सूखे मेवे और हल्के मसाले) के साथ गाढ़ा करके बनाई जाती है। केसर काजू कतली में केसर शामिल है।

काजू कतली पारंपरिक रूप से दिवाली के दौरान खाई जाती है

काजू, शक्कर और घी से बनने वाली यह सादगी भरी मिठाई समान्य मिठाई की तुलना में महंगी होती है क्योंकि इसका प्रमुख तत्व खोया या मावा की जगह काजू जैसा महंगा ड्रायफ्रूट होता है। और यह हर तरह के त्यौहार के लिए एक पसंदीदा मिठाई बन गया है। यह व्यंजन काजू को काफी समय तक पानी में भिगोकर तैयार किया जाता है, जिसे बाद में पीसकर पेस्ट बना लिया जाता है। चीनी के घोल को तब तक उबाला जाता है जब तक कि एक तार न बन जाए, जब इसमें दो उंगलियां डुबाकर अलग कर दी जाती हैं, जिसके बाद इसे पिसे हुए काजू में मिलाया जाता है। घी , केसर और सूखे मेवे भी मिला सकते हैं । फिर पेस्ट को एक उथले, सपाट तले वाले बर्तन में फैलाया और चपटा किया जाता है और रोम्बस के आकार के टुकड़ों में काट दिया जाता है। टुकड़ों को आमतौर पर खाने योग्य चांदी की पन्नी से सजाया जाता है । तैयार मिठाई आमतौर पर सफेद या पीले रंग की होती है, जो पेस्ट के लिए उपयोग की गई सामग्री और प्रत्येक उपयोग के अनुपात पर निर्भर करती है। काजू कतली पारंपरिक रूप से दिवाली के हिंदू त्योहार के दौरान खाई जाती है । आमतौर पर दीपावली में मिठाई के तौर पर ड्रायफ्रूट गिफ्ट में ज्यादा दिए जाते हैं, लेकिन हाल ही में इसे गिफ्ट में देने का चलन अधिक बढ़ा है।

मुगलों से संबंधित कहानी

कम लोग जानते हैं कि इस लोकप्रिय मिठाई के दो संस्करण हैं। दोनों ही भारत में स्वतंत्र रूप से ईजाद हुए थे और कम प्रचलित संस्करण की ईजाद के पीछे मराठाओं का योगदान बताया जाता है। 16वीं सदी में मराठाओं के रसोईघर में एक बावर्ची काम किया करता था जिसका नाम भीमराव था। इसका काम राजसी परिवार के लिए खास तरह के पकवान बनाना था। वहीं काजू कतली को लेकर एक और लोकप्रिय कहानी है जिसका संबंध मुगलों से बताया जाता है। 1619 में जहांगीर के शासन में मुगल सिखों को अपने लिए बहुत बड़ा खतरा मानते थे। इस वजह से जहांगीर ने सिख गुरुओं सहित कई राजाओं को भी कैद कर लंबे समय तक ग्वालियर के किले में रखा था, जिनमें सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोविंद सिंह भी शामिल थे। जब जहांगीर ने देखा कि गुरु हरगोविंद सिंह कैदीयों को प्रवचन दे रहे हैं उन्हें लगा कि इससे बगावत हो सकती है। इस पर जहांगीर ने एक गुरु की आजादी के लिए एक शर्त रख दी कि जो कई गुरु के लबादे के साथ चिपक कर किले से बाहर निकलेगा उनके साथ उस शख्स को भी आजाद कर दिया जाएगा।इस पर गुरु गोविंद सिंह ने एक बहुत ही लंबा और बड़ा लबादा तैयार करवा लिया जिसे सभी कैदी पकड़ सकें। इस तरह से गुरु गोविंद सिंह ने चतुराई से सभी कैदी राजाओं को भी छुड़वा लिया यह सब दिवाली के दिन हुआ था और यह दिन बंदी चोर दिवस के नाम से भी जाना जाता है। उस दिन जहांगीर के शाही बार्वची ने काजू, शक्कर और घी से बनी एक मिठाई बनाई थी जो इस मौके पर बांटी गई थी। जिसके बाद यह जल्दी ही देश के अन्य क्षेत्रों में भी प्रचलित हो गई।

इसे दुनिया के कई देशों में बनाया और पसंद किया जाता

काजू कतली या काजू बर्फी अपने अधिक दामों की वजह से आज भी अमीरों की मिठाई मानी जती है, लेकिन इसकी लोकप्रियता हर वर्ग में है। इसे दुनिया के कई देशों में बनाया और पसंद किया जाता है। वैसे तो यह मुख्य तौर पर दीपावली के पर्व पर ज्यादा उपयोग में लाई जाती है, लेकिन इसक अन्य त्यौहारों में भी चलन बढ़ता जा रहा है।