Common Tests During Pregnancy: गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के स्वास्थ्य में तेजी से बदलाव होते हैं, जिनकी मॉनिटरिंग करना बहुत जरूरी होता है। डिलीवरी से पहले सभी गर्भवती महिलाओं को जरूरी टेस्ट और स्क्रीनिंग करवा लेनी चाहिए, ताकि गंभीर बीमारियों से बचा जा सके। प्रसव से पहले सही जांच और अच्छी डाइट गर्भवती महिलाओं में पोस्ट-पार्टम हेमरेज जैसी गंभीर स्थिति को रोक सकते हैं।
प्रेग्नेंसी में अल्ट्रासाउंड किरणों के जरिए पेट के अंदर पल रहे बच्चे की तस्वीरें लेकर उसका विकास और सही पोजिशन पता की जाती है। इतना ही नहीं, अल्ट्रासाउंड प्रोसेस के जरिए डॉक्टर गर्भनाल के साथ साथ बच्चे की धड़कन और उसकी सही स्थिति पर भी नजर रखते हैं भारत में बड़ी संख्या में महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं। यह समस्या कई बार गर्भवती महिलाओं के लिए जान का खतरा बन जाती है। ऐसे में सही जांच और इलाज कराना बेहद जरूरी है। आज डॉक्टर्स से जानेंगे कि प्रेग्नेंसी में कितनी बार अल्ट्रासाउंड करवाना सही होता है।
प्रेग्नेंसी में कितनी बार अल्ट्रासाउंड करवाना है सही
डॉक्टर सलाह देते हैं कि पूरी प्रेग्नेंसी में तीन से चार बार अल्ट्रासाउंड प्रोसेस काफी होती है। अगर इससे ज्यादा बार अल्ट्रासाउंड करवाया जाए तो पेट के अंदर पल रहे बच्चे के दिमाग और हड्डियों पर इसकी खतरनाक किरणों का बुरा असर पड़ सकता है।
पहली तिमाही में
प्रेग्नेंसी के पहले ट्राईमेस्टर यानी पहली तिमाही में पहला अल्ट्रासाउंड किया जाता है। इस दौरान पेट में पल रहे बच्चे की धड़कन की जानकारी ली जाती है और इसके साथ ही ये भी देखा जाता है कि भ्रूण का विकास सही से हो रहा है या नहीं।
दूसरा अल्ट्रासाउंड
प्रेग्नेंसी के 18वें से 20वें हफ्ते के बीच में दूसरा अल्ट्रासाउंड किया जाता है।इस दौरान बच्चे का डेवलपमेंट तेजी से होता है और उसके शरीर के अंग बनने लगते हैं। इस अल्ट्रासाउंड में बच्चे की दिल की धड़कन के साथ साथ उसके दिमाह और किडनी आदि की भी पोजिशन देखी जाती है। इसी अल्ट्रासाउंड के जरिए बच्चे के अंदर संभावित जन्म विकार पता चल सकते हैं।
तीसरा अल्ट्रासाउंड
प्रेग्नेंसी के 28वें हफ्ते से 32वें हफ्ते के बीच तीसरा अल्ट्रासाउंड करवाया जाना सही होता है। इस अल्ट्रासाउंड में बच्चे की दिल की धड़कन के साथ साथ उसके बढ़ते वजन की जानकारी ली जाती है। इसके साथ साथ उसके डेवलपमेंट और उसकी एक्टिविटीज को भी देखा जाता है।
चौथा अल्ट्रासाउंड
प्रेग्नेंसी के 34वें से लेकर 36वें हफ्ते यानी प्रेग्नेंसी के फाइनल पीरियड में चौथा और आखिरी अल्ट्रासाउंड होता है। इस अल्ट्रासाउंड बच्चे की पोजिशन और उसका प्लेसेंटा देखा जाता है। ये अल्ट्रासाउंड काफी क्रूशियल होता है और इसी के जरिए पता चलता है कि डिलीवरी किस तरह की होगी और उसमें कितनी परेशानी आ सकती है।
प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए ब्लड टेस्ट और अल्ट्रासाउंड सबसे अहम टेस्ट माने जाते हैं। ब्लड टेस्ट में कंप्लीट ब्लड काउंट और वायरल मार्कर शामिल होते हैं, जिसमें हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी, एचआईवी और थायराइड की जांच की जाती है। इसके अलावा पूरी प्रेग्नेंसी के दौरान कम से कम दो बार महिलाओं को ग्लूकोस चैलेंज से गुजरना होता है। इसमें गर्भवती महिलाओं को 75 ग्राम ग्लूकोस पिलाकर 2 घंटे बाद ब्लड का सैंपल लिया जाता है।यह टेस्ट महिला में डायबिटीज है या नहीं, यह निर्धारित करने में सहायक होता है।ब्लड और शुगर टेस्ट के अलावा अल्ट्रासाउंड बहुत जरूरी होता है। इसमें मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य की जानकारी हासिल की जाती है।