चेन्नई: राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने अपने आदेश में कहा है कि, ब्रेन डेड की शिकार हुई एक महिला की मौत के पीछे डॉक्टरों की लापरवाही है. इस मामले में आयोग ने पीड़ित परिवार को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने का भी आदेश दिया है.
साल 2005 का मामला
चेन्नई के तिरुवनमियुर निवासी भेल कर्मचारी बोजैया की 38 साल की पत्नी देवेन्द्रम, नाक बंद होने और सिरदर्द से पीड़ित होने के बाद 2005 में वडापलानी विजया अस्पताल में सी. सत्यनारायण कान, नाक और गला अनुसंधान संस्थान के डॉक्टर. रंगारा के पास इलाज के लिए गई थी.
मेडिकल टीम की सलाह पर, देवेंद्रम को एंडोस्कोपी के लिए आईसीयू में ले जाया गया, जहां उन्हें ब्रेन डेड और हार्ट फेलियर से पीड़ित घोषित कर दिया गया. डॉक्टरों ने बताया कि 12 अक्टूबर, 2005 को वेंटिलेटर पर रहते हुए उनकी अचानक मौत हो गई.
बोजैया ने राज्य उपभोक्ता आयोग में एक मामला दायर कर विजया अस्पताल, सर्जनों और एनेस्थिसियोलॉजिस्ट को उनकी पत्नी की मृत्यु में लापरवाही, असावधानी और सेवा में कमी के लिए एक करोड़ रुपये का मुआवजा देने का आदेश देने की मांग की.
यह मामला आयोग के अध्यक्ष जस्टिस आर. सुब्बैया के समक्ष सुनवाई के लिए आया. याचिकाकर्ता बोजैया की ओर से पेश हुए वकील थेनमोझी शिवपेरुमल ने कहा, महिला को बुनियादी जांच किए बिना, कम हीमोग्लोबिन स्तर, हाई ब्लड शुगर लेवल और नाश्ते के बाद के अंतराल पर विचार किए बिना भर्ती कर लिया गया. उन्हें एनेस्थीसिया दिया गया, जिसके कारण वह ब्रेन डेथ हो गई.
उचित उपचार नहीं मिलने के कारण पति ने पत्नी को खोया, याचिकाकर्ता के वकील ने क्या कहा?
उन्होंने बताया कि, अस्पताल प्रशासन द्वारा उचित उपचार न दिए जाने के कारण याचिकाकर्ता ने अपनी पत्नी को खो दिया. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि इस बात पर गहरा संदेह है कि कान, नाक और गला विशेषज्ञों के इलाज के कारण ही उन्हें उनकी पत्नी की मृत्यु के बाद आईसीयू में स्थानांतरित किया गया.
अस्पताल ने कहा कि डॉक्टर अपने परिसर में चिकित्सा परामर्श कक्ष का उपयोग करते हैं. चूंकि वहां कोई नियोक्ता-कर्मचारी सिस्टम नहीं है, इसलिए उनके द्वारा प्रदान किए जाने वाले उपचार से संबंधित किसी भी समस्या के लिए संबंधित कंसल्टेंट को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.
महिला का इलाज करने वाले डॉक्टरों ने बताया कि वह कई डॉक्टरों से तेज सिरदर्द, साइनसाइटिस वगैरह का इलाज करवाने के बाद उनके पास इलाज के लिए आई थी. लेकिन स्टेरॉयड लेने से भी कोई फायदा नहीं हुआ. क्या यह लापरवाही थी या इलाज में कमी. बताया गया कि मरीज की मौत दिमाग की नस में सूजन या ब्रेन ट्यूमर से खून बहने के कारण हुई.
न्यायमूर्ति आर. सुब्बैया ने आदेश जारी किया
सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आर सुब्बैया ने आदेश जारी किया. जिसमें नाश्ते के 6 घंटे बाद एनेस्थीसिया देने की प्रक्रिया का पालन नहीं किए जाने की बात कही गई. यह भी कहा गया कि, डॉक्टरों ने मरीज की बीमारियों की प्रक्रिया पर विचार नहीं किया. डॉक्टर सर्जरी शुरू करने से पहले मरीज के शुगर लेवल, कम हीमोग्लोबिन माप और पूरे नाश्ते के बाद इलाज के लिए आने के नकारात्मक प्रभावों को भूल गए.
आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आर. सुब्बैया के आदेश में कहा गया कि, यह पुष्टि हो चुकी है कि मौत का कारण डॉक्टरों की लापरवाही थी और चूंकि अस्पताल के साथ नियोक्ता-कर्मचारी का कोई संबंध नहीं था, इसलिए महिला की मौत के लिए डॉक्टर ही जिम्मेदार थे. साथ ही, यह भी ध्यान दिया गया है कि याचिकाकर्ता ने बीमारी के लिए दिए गए उपचार का उल्लेख नहीं किया है, जो एक साल से भी ज़्यादा समय से चल रहा था.
आदेश में कहा गया कि, मृतक महिला का इलाज करने वाले डॉक्टरों में से एक, डॉ. रंगा राव की मृत्यु हो गई है. इसलिए एक अन्य सर्जन, एम जयरामी रेड्डी और एनेस्थेसियोलॉजिस्ट, ए कृष्णमूर्ति को मुआवजे के रूप में 10 लाख रुपये और 1 लाख रुपये का भुगतान करना होगा. याचिकाकर्ता बोजैया और उनकी तीन बेटियों को कानूनी खर्च के रूप में 8 सप्ताह के भीतर 50,000 रुपये देने का आदेश दिया गया है.