Weather department: मौसम विभाग के पूर्वानुमान को लेकर कभी आपने सोचा है कि आखिर मौसम विभाग (Met Department) किस आधार पर यह भविष्यवाणी करता है कि आने वाले दिनों में क्या होने वाला है और अब मौसम कैसा रहेगा। तो आज हम आपको बताते हैं कि मौसम विभाग कैसे मौसम का पता करता है और किन तकनीकों का सहारा लिया जाता है।
मौसम का बदलाव एक स्थान या समय पर हवा की स्थिति के हिसाब से होता है। यह प्रक्रिया लगातार चलती रहती है और इन हवा की स्थिति के जरिए मौसम का पूर्वानुमान लगाना काफी चुनौतीपूर्ण कार्य है। मौसम के पूर्वानुमान की प्रक्रिया अलग अलग स्थितियों पर जुटाए गए डेटा के आधार पर की जाती है और उन डेटा का अध्ययन करके अनुमान लगाया जाता है। वर्तमान मौसम का हाल कैसा रहेगा। आइए एक नजर डालते हैं भारत में मौसम की भविष्यवाणी से जुड़े सिस्टम के इतिहास पर।
मौसम की भविष्यवाणी का इतिहास
ब्रितानी हुकूमत के दौरान 15 जनवरी 1875 को आईएमडी की स्थापना हुई। सर हेनरी ब्लैनफोर्ड को मेटरयलॉजिकल रिपोर्टर नियुक्त किया गया। 4 जून 1886 को उन्होंने भारत का पहला आधिकारिक सीजनल मॉनसून फोरकास्ट किया। उन्होंने 1882 से 1885 तक हिमालय पर बर्फबारी और मॉनसून की बारिश का संबंध जोड़ते हुए मौसम की भविष्यवाणी को लेकर मॉडल तैयार किया।
1906 में सर गिल्बर्ट वॉकर ने वेदर प्रेडिक्शन का उससे भी ज्यादा जटिल मॉडल तैयार किया। इसमें मॉनसून की बारिश और वैश्विक पैमानों के बीच संबंध को आधार बनाया गया। समय के साथ मौसम की भविष्यवाणी से जुड़े भारतीय मॉडल सटीक आंकलन के करीब पहुंचने लगे। बाद में वसंत गोवारिकर ने 16 ग्लोबल और रीजनल पैमानों पर आधारित एक मॉनसून प्रेडिक्शन मॉडल तैयार किया जिसका 1998 से लेकर इस सदी के आखिर तक इस्तेमाल होता रहा। लेकिन 2002 में गड़बड़ी हो गई। सामान्य मॉनसून की भविष्यवाणी हुई थी लेकिन उस साल सूखा पड़ गया। उसके बाद एक बेहतर मॉडल विकसित करने की जरूरत महसूस हुई।
बेहतर वेदर प्रेडिक्शन मॉडल तैयार करने के उद्देश्य से अर्थ साइंस मिनिस्ट्री के पूर्व सेक्रटरी एम. राजीवन की अगुआई में आईएमडी की एक टीम बनाई गई। टीम ने मौजूदा मॉडलों के विश्लेषण के बाद 2003 में एक टू-स्टेज फोरकास्टिंग सिस्टम विकसित किया। राजीवन कहते हैं, ‘इसका पहला प्रेडिक्शन मध्य अप्रैल के लिए किया गया जो 8 पैमानों पर आधारित था। मई का प्रेडिक्शन 10 पैमानों पर आधारित था। इसके बाद जुलाई में खेती-बाड़ी के लिहाज से बारिश की भविष्यवाणी की गई।‘
राजीवन और उनकी टीम ने 2007 में और ज्यादा अडवांस वेदर प्रेडिक्शन सिस्टम तैयार किया। लेकिन 2009 में सूखा पड़ गया जिससे उस फोरकास्ट सिस्टम की खामियां सामने आ गईं। इसके बाद 2021 में मल्टि-मॉडल फोरकास्टिंग सिस्टम तैयार हुआ। ये दुनियाभर के रिसर्च सेंटरों के 8 क्लाइमेट मॉडलों के सम्मिश्रण पर आधारित है। अब मल्टि-मॉडल सिस्टम के जरिए सभी 12 महीनों के लिए तापमान और बारिश से जुड़ीं अलग-अलग भविष्यवाणियां की जाती हैं।
कभी-कभी गलत हो जाती हैं मौसम की भविष्यवाणियां
पिछले दस सालों में मौसम विभाग के कंप्यूटरों की क्षमता बढ़ी है। पहले जहां उसकी प्रॉसेसिंग पावर 1 पेटाफ्लॉप (कंप्यूटिंग स्पीड का पैमान) थी, वह अब बढ़कर 10 पेटाफ्लॉप हो गई है। अब मौसम विभाग के पास 14 की जगह 37 रेडार हैं और ऑटोमेटेड वेदर स्टेशनों की संख्या दोगुनी हो चुकी है। पहले एक मौसम उपग्रह था अब 2 सैटलाइट हैं। ‘साइक्लोन मैन‘ के नाम से चर्चित आईएमडी के डायरेक्टर जनरल मृत्युंजय मोहपात्रा बताते हैं कि सैटलाइट से हर 15 मिनट पर ऑब्जर्वेशन डेटा आते हैं और उनका हर तीन घंटे पर विश्लेषण किया जाता है ताकि वातावरण, समुद्र और जमीन पर मौसम से जुड़ी स्थितियों को भांपा जा सके। तमाम तकनीकी विकास के बावजूद अब भी कभी-कभी मौसम से जुड़ी भविष्यवाणियां गलत साबित हो जाती हैं। आईएमडी पुणे में क्लाइमेट मॉनिटरिंग ऐंड प्रेडिक्शन सर्विसेज के हेड ओपी श्रीजीत बताते हैं कि मौसम का एकदम परफेक्ट भविष्यवाणी बहुत मुश्किल है। वजह ये है कि जिन पैमानों के आधार पर प्रेडिक्शन किए जाते हैं, वे पैमाने तेजी से बदलते हैं।