Sunday, September 8, 2024
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मर्ज की शुरुआती चरण में ही होगी जानकारी, आईआईटी ने विकसित किया नया सेंसर

भोपाल। अब मरीजों की जांच तथा रोगों की पकड जल्‍द होगी। रोगी को जांच के लिए रिपोर्ट का अब कई दिनों तक इंतजार से छुटकारा मिलने जा रहा है, क्‍योंकि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान आईआईटी जोधपुर के शोधकर्ताओं ने एक नैनोसेंसर विकसित किया है जो विभिन्न कोशिकाओं को नियंत्रित करने वाले प्रोटीन के एक समूह साइटोकिन्स का शीघ्र पता लगाने में मदद करता है। इस विकास का उद्देश्य तुरंत निदान और रोग के प्रारंभिक चरण में पता न लग पाने के कारण होने वाली मृत्यु दर को कम करना है। इसकेअलावा, इस प्रौद्योगिकी में स्वास्थ्य निगरानी, रोग निदान और प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया ट्रैकिंग के लिए एक तीव्र और पॉइंट-ऑफ़-केयर तकनीक के रूप में उपयोग करने की अपार संभावनाएं हैं। इस विकसित तकनीक और इसके भविष्य के दायरे के बारे में बात करते हुए आईआईटी जोधपुर के विद्युत अभियांत्रिकी विभाग के प्रोफेसर डॉ. अजय अग्रवाल ने कहा, यह तकनीक जो वर्तमान में अपने विकास के चरण में है और उत्साहजनक परिणाम प्रदान किए हैं, जिसमें तीन बायोमार्कर यानी इंटरल्यूकिन-6, इंटरल्यूकिन और टीएनएफ-ए हैं, जो प्रमुख प्रो- इंफ्लेमेटरी साइटोकिन्स हैं। अभी तक, परीक्षण नियंत्रित नमूनों के लिए किया जाता है, लेकिन टीम का लक्ष्य जल्द ही प्रौद्योगिकी को नैदानिक परीक्षणों में ले जाना है। समूह इस तकनीक का उपयोग सेप्सिस और फंगल संक्रमण के प्रारंभिक चरण और त्वरित निदान के लिए पहचान प्रोटोकॉल विकसित करने के लिए भी कर रहा है।

एआई संचालित सेंसर की खूबियां


यह सेंसर सूजन और जलन संबंधित बायोमार्कर को पहचानता है, जिससे रोग की पहचान और प्रगति में मदद मिलती है। यह तकनीक मल्टीपल स्केलेरोसिस, मधुमेह और अल्जाइमर जैसी बीमारियों का इलाज विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण है। यह सेंसर एआई संचालित है। रिपोर्ट देने में केवल 30 मिनट का समय लेता है और लागत प्रभावी भी है। यह सेंसर, तेज़ और सटीक डेटा प्रोसेसिंग और विश्लेषण के लिए एआई के साथ संयोजन में किया जाता है। यह सेंसर रोगी के चिकित्सा उपचार को बदलने की क्षमता रखता है। इस तरह, किसी मरीज की बीमारी का निदान किया जा सकता है और भविष्य में उसके इलाज के लिए मार्गदर्शन करने के लिए तुरंत ट्रैक किया जा सकता है । यह सेमीकंडक्टर प्रक्रिया प्रौद्योगिकी पर आधारित है, और सरफेस एन्हांस्ड रमन स्कैटरिंग के सिद्धांत पर काम करता है। इसलिए, यह इस तकनीक को उच्च सटीक परिणाम दर्शाता है।

शोधकर्ताओं में शामिल शोधार्थी


बायोसाइंस और बायोइंजीनियरिंग विभाग की अकिलैंडेश्वरी बी, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के सरवर सिंह, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर और प्रमुख डॉ. अजय अग्रवाल और डॉ. सुष्मिता झा, प्रोफेसर, बायोसाइंस और बायोइंजीनियरिंग का सेंसर विकसित करने में विशेष योगदान है।

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