रुस से भविष्य में एस-500 और सु-57 फाइटर जेट की खरीद भी संभव…….एशिया में शक्ति संतुलन बनाएगा भारत  

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नई दिल्ली । भारत की रक्षा जरुरतें केवल वर्तमान सुरक्षा चुनौतियों से निपटने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि आने वाले दशकों की सामरिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर तय होती हैं। इसी संदर्भ में रूस की ओर से भारत को मिल रहे आधुनिक हथियार, विशेषकर एस-400 वायु रक्षा प्रणाली और भविष्य में संभावित एस-500 तथा सु-57 लड़ाकू विमानों का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है।
बात दें कि 2018 में भारत और रूस के बीच हुए 5.5 अरब डॉलर के समझौते के तहत पाँच एस-400 ट्रायम्फ वायु रक्षा प्रणालियाँ खरीदी गईं। अब तक रुस से चार प्रणालियाँ मिल चुकी हैं और अंतिम आपूर्ति 2026 तक होगी। यह प्रणाली लंबी दूरी तक दुश्मन के लड़ाकू विमान, ड्रोन और बैलिस्टिक मिसाइलों को मार गिराने में सक्षम है। इसका महत्व मई 2025 में हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान स्पष्ट रूप से सामने आया था जब भारतीय वायु रक्षा बलों ने पाकिस्तान से दागी गई मिसाइलों को सफलतापूर्वक इंटरसेप्ट किया था। यदि आने वाले वर्षों में अतिरिक्त एस-400 या और भी उन्नत एस-500 भारत को मिलत हैं, तब चीन और पाकिस्तान दोनों के खिलाफ भारत को बड़ी रणनीतिक बढ़त मिलेगी। 
अब चर्चा रूस के पाँचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान सु-57 की है। रूस ने भारत को इसकी आपूर्ति और लोकल उत्पादन का प्रस्ताव दिया है। यदि भारत इस प्रस्ताव को स्वीकार करता हैं तब वायुसेना को न केवल स्टेल्थ और सुपरमैनेवरेबिलिटी जैसी अत्याधुनिक क्षमताएँ मिलेंगी, बल्कि स्वदेशी उत्पादन से तकनीकी आत्मनिर्भरता भी बढ़ेगी। बता दें कि भारत ने पहले अमेरिका से एफ-35 जैसे स्टेल्थ फाइटर हासिल करने की कोशिश की थी, लेकिन राजनीतिक व सामरिक कारणों से संभव नहीं हुआ है। इसके बाद सु-57 भारत की जरूरतों को पूरा करने का एक ठोस विकल्प बन सकता है।
बता दें कि रूस से भविष्य में भारत को जिन हथियारों की आपूर्ति होनी है, उसमें एस-500 मिसाइल प्रणाली और सु-57 फाइटर जेट्स सबसे अहम हैं। इसके अलावा, ब्रह्मोस मिसाइल का नया हाइपरसोनिक संस्करण और एडवांस सबमरीन तकनीक पर भी बातचीत जारी है। वहीं दूसरी ओर, भारत फ्रांस से 26 राफेल-एम नौसैनिक लड़ाकू विमान खरीदने जा रहा है, जो विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत पर तैनात होने है। अमेरिका से प्रीडेटर-बी ड्रोन का सौदा अंतिम चरण में है। इज़राइल से और अधिक हेरोन-टीपी ड्रोन तथा आयरन डोम जैसी तकनीकों पर सहयोग की संभावनाएँ बढ़ रही हैं। एस-400 प्रणाली पहले ही भारत की वायु रक्षा को नई ऊँचाई दे चुकी है। यदि सु-57 और एस-500 जैसी प्रणालियाँ भी भारत को मिलती हैं, तब आने वाले दशक में भारतीय सैन्य शक्ति एशिया में न केवल संतुलन बनाए रखेगी, बल्कि एक निर्णायक बढ़त पा लेगी।