Friday, December 27, 2024
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बहुविवाह व ‘निकाह-हलाला’ के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई के लिए संविधान पीठ बनाने पर सहमत सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली| सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को मुस्लिमों में बहुविवाह और 'निकाह-हलाला' की प्रथा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए संविधान पीठ के पुनर्गठन पर सहमत हो गया।

30 अगस्त को जस्टिस इंदिरा बनर्जी, हेमंत गुप्ता, सूर्यकांत, एम.एम. सुंदरेश और सुधांशु धूलिया की पांच जजों की संविधान पीठ ने याचिकाओं पर नोटिस जारी किया था। हालांकि, दो जज जस्टिस बनर्जी और जस्टिस गुप्ता अब रिटायर हो चुके हैं।

गुरुवार को, याचिकाकर्ताओं में से एक अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ और न्यायमूर्ति हेमा कोहली और जेबी पारदीवाला की पीठ के समक्ष मामले का उल्लेख किया, जन्होंने कहा कि वह एक नई बेंच का गठन करेगी।

बहुविवाह और 'निकाह-हलाला' की प्रथा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए कुल नौ याचिकाएं दायर की गई हैं।

बहुविवाह एक मुस्लिम पुरुष को चार पत्नियां रखने की अनुमति देता है, और एक बार एक मुस्लिम महिला को तलाक दे दिए जाने के बाद, उसके पति को उसे वापस लेने की अनुमति नहीं है, भले ही उसने नशे के हालत में तलाक दिया हो। जब तक कि उसकी पत्नी निकाह-हलाला से न गुजरे, जो उसे अन्य व्यक्ति के साथ निकाह करके, फिर तलाक के बाद वापस पहले पति के साथ निकाह में शामिल होने की इजाजत देता है।

बहुविवाह और निकाह हलाला की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए मुस्लिम महिलाओं और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा याचिका दायर की गई है। इन मामलों को मार्च 2018 में तीन जजों की बेंच ने पांच जजों की बेंच को रेफर किया था।

अगस्त में, शीर्ष अदालत ने केंद्र, राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, विधि आयोग आदि को नोटिस जारी किया था और मामले की सुनवाई दशहरे की छुट्टियों के बाद निर्धारित की थी।

उपाध्याय की याचिका में कहा गया है कि तीन तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला की प्रथा संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन है।

याचिका में मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 की धारा 2 को असंवैधानिक और संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन घोषित करने का निर्देश देने की मांग की गई है, क्योंकि यह बहुविवाह और निकाह-हलाला को मान्यता देना चाहता है।

याचिका में आगे कहा गया, यह तय है कि पर्सनल लॉ पर कॉमन लॉ की प्रधानता है। इसलिए, यह अदालत घोषित कर सकती है कि तीन तलाक आईपीसी की धारा 498ए के तहत क्रूरता है, निकाह-हलाला आईपीसी की धारा 375 के तहत बलात्कार है, और बहुविवाह आईपीसी की धारा 494 के तहत एक अपराध है।

अगस्त 2017 में, शीर्ष अदालत ने माना था कि तीन तलाक की प्रथा असंवैधानिक है और इसे 3:2 बहुमत से रद्द कर दिया था।

शीर्ष अदालत ने 2017 के अपने फैसले में तीन तलाक की प्रथा को खत्म करते हुए बहुविवाह और निकाह-हलाला के मुद्दे को खुला रखा था।

याचिका में कहा गया, धार्मिक नेता और पुजारी जैसे इमाम, मौलवी आदि, जो तलाक-ए-बिदत, निकाह-हलाला और बहुविवाह जैसी प्रथाओं का प्रचार, समर्थन और अधिकृत करते हैं, मुस्लिम महिलाओं को ऐसी घोर प्रथाओं के अधीन करने के लिए अपने पद, प्रभाव और शक्ति का दुरुपयोग कर रहे हैं। यह संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के तहत निहित उनके मूल अधिकारों का उल्लंघन है।

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