नई दिल्ली। वर्तमान में महिलाएं किसी भी तरह से पुरुषों से कम नहीं हैं। महिलाएं अपने दम पर प्रॉपर्टी भी बना रही हैं। लेकिन, आपने कभी सोचा है कि आत्मनिर्भर महिलाएं अपनी संपत्ति की रक्षा किस तरह से करें? खासकर उन हालातों में जब किसी विवाहित महिला की मौत होती है और उनकी कोई संतान भी नहीं होती हैं। इसतरह के मामलो में उस महिला का पति उनकी संपत्ति का स्वाभाविक उत्तराधिकारी बन जाता है। फिर चाहे महिला को माता-पिता की ओर से प्रॉपर्टी मिली हो या उन्होंने अपनी मेहनत से अर्जित की गई हो। सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को अपना वसीयतनामा बनाने की सलाह दी है, ताकि वे अपनी संपत्ति के बारे में खुद फैसला ले सकें। फिर चाहे उनकी खुद की कमाई प्रॉपर्टी हो या माता-पिता से मिली संपत्ति हो।
सुप्रीम कोर्ट ने महत्त्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए सभी हिंदू महिलाओं से अपील की कि वे अपनी स्व-अर्जित और अन्य संपत्तियों के बंटवारे को लेकर किसी भी तरह का विवाद टालने के लिए समय रहते वसीयत तैयार कर लें। शीर्ष अदालत ने कहा कि बिना वसीयत के महिलाओं की संपत्ति का उनके माता-पिता को न मिल पाना अक्सर कड़वाहट और तकलीफ का कारण बनता है, इस वसीयत के द्वारा रोका जा सकता है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने यह सलाह उस वक्त दी जब वह हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 15(1)(बी) को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस प्रावधान में यदि कोई हिंदू महिला बिना वसीयत, बिना संतान और बिना पति की मृत्यु होती है, तब उसकी संपत्ति पर पति के वारिसों का अधिकार माता-पिता से ऊपर होगा।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने वकील द्वारा दायर जनहित याचिका को सुनने से इंकार करते हुए कहा कि इसतरह के संवैधानिक सवाल उन लोगों द्वारा उठाने चाहिए जो वास्तव में इससे प्रभावित हों। अदालत ने प्रावधान की वैधता पर कोई अंतिम राय देने के बजाय इस प्रश्न को खुला छोड़ दिया। केंद्र की ओर से उपस्थित अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने प्रावधान का बचाव करते हुए कहा कि 1956 में कानून बनाने वालों ने एक वैज्ञानिक ढांचा तैयार किया था। उन्होंने कहा कि तब यह कल्पना नहीं की गई थी कि महिलाएं इतनी बड़ी मात्रा में स्वयं द्वारा अर्जित संपत्ति की मालिक होंगी, लेकिन अधिनियम की धारा 30 के तहत महिलाओं को अपनी संपत्ति अपनी इच्छा अनुसार वसीयत करने का पूरा अधिकार दिया गया है।








