Wednesday, July 30, 2025
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प्रदेश में गांधी जयंती पर नशा मुक्ति अभियान की शुरूआत करेंगे शिवराज

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भोपाल। गांधी जयंती 2 अक्टूबर से पूरे प्रदेश में 6 दिवसीय नशामुक्ति अभियान चलाया जायेगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भोपाल से राज्य स्तरीय अभियान का शुभारंभ करेंगे, जिसमें विभिन्न जिलों से छात्र-छात्राएँ और नागरिक ऑनलाइन जुड़ेंगे। जिला स्तर पर कलेक्टर द्वारा सभा का आयोजन किया जाएगा और नशामुक्ति के लिए शपथ दिलाई जाएगी। इसी तरह अनुभाग एवं जनपद स्तर, ग्राम पंचायत मुख्यालय, गाँवों और प्रत्येक नगरीय निकाय एवं वार्ड स्तर पर सभाएँ कर नशामुक्ति के लिये शपथ दिलाई जायेगी।
अभियान के दौरान विभिन्न प्रतियोगिताएं, गतिविधियां, कार्यक्रम आदि किये जायेंगे। इनमें वॉल पेंटिंग, रंगोली आदि प्रतियोगिताएँ, मेरेथॉन, दौड़, नुक्कड़ नाटक, नशामुक्ति के लिए रैलियाँ, मानव श्रंखला का निर्माण, कॉलेजों में विषय विशेषज्ञों के व्याख्यान होंगे। कार्यक्रमों में नशे और शराब की आदतों से मुक्ति पा चुके लोग अपने प्रेरणादायी अनुभव भी साझा करेंगे। अभियान के संचालन के लिये प्रमुख सचिव सामाजिक न्याय एवं नि: शक्तजन कल्याण की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय समिति का गठन किया गया है। जिला और अनुभाग स्तरीय समितियों का गठन किया जा रहा है। अभियान में सभी विभागों, सामाजिक संगठन, स्वयं सेवी एवं अशासकीय संस्थाएँ, धर्मगुरू, जन-प्रतिनिधि, स्व-सहायता समूह, ग्राम वन समितियाँ, पत्रकार, जन-अभियान परिषद, नगर सुरक्षा समितियाँ आदि की सहभागिता सुनिश्चित की जायेगी। स्कूलों (कक्षा 6 से 12) और कॉलेजों में निबंध प्रतियोगिता, जागरूकता रैलियाँ, चित्रकला, वाद-विवाद, वॉल पेंटिंग, रंगोली प्रतियोगिता, लघु फिल्म, प्रदर्शन और व्याख्यान होंगे। ये कार्यक्रम पूरे अक्टूबर माह में किये जा सकेंगे।

सुनील गावस्कर ने रवि शास्त्री से की हार्दिक पांड्या की तुलना

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भारतीय हरफनमौला हार्दिक पांड्या इस समय गजब की फॉर्म में चल रहे हैं। आईपीएल 2022 में गुजरात टाइटंस को डेब्यू सीजन में चैंपियन बनाने के बाद हार्दिक जिस चीज को छू रहे हैं वो सोना बन रही है। एशिया कप में भी गेंद और बल्ले दोनों से इस खिलाड़ी ने लाजवाब प्रदर्शन किया। अब ऑस्ट्रेलिया में होने वाले टी20 वर्ल्ड कप 2022 में भी हार्दिक शानदार परफॉर्म की उम्मीद की जा रही है। हार्दिक की तारीफ करते हुए भारतीय पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर ने तो यह तक कह दिया कि यह हरफनमौला इस साल भारत को टी20 वर्ल्ड कप जीताने में अहम रोल अदा कर सकते हैं। इस दौरान उन्होंने हार्दिक पांड्या की तुलना रवि शास्त्री से भी की।गावस्कर के इस बयान पर शास्त्री ने स्पोर्ट्स तक से कहा "मैं पहले ही ट्वीट कर चुका हूं और इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर चुका हूं कि वह खेल के इस प्रारूप में नंबर एक ऑलराउंडर है।

ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट टीम का अगला कप्तान कौन बनेगा

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एरोन फिंच के वनडे क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद इस चीज की चर्चा काफी तेज है कि अगला कप्तान कौन बनेगा | ग्लेन मैक्सवेल, पैट कमिंस कैमरून ग्रीन समेत टीम के कई ऐसे खिलाड़ी हैं जो कप्तान के दावेदार हैं, वहीं अनुभवी खिलाड़ी स्टीव स्मिथ और डेविड वॉर्नर ने भी टीम की अगुवाई करने की इच्छा जताई है। गेंद से छेड़छाड़ मामले में प्रतिबंध झेलने के बाद इन दोनों खिलाड़ियों ने अभी तक टीम की अगुवाई नहीं की है। मगर पूर्व तेज गेंदबाज मिशेल जॉनसन का मानना है कि स्टीव स्मिथ और डेविड वॉर्नर को फिर से टीम का कप्तान नहीं बनाना चाहिए।

लीजेंड्स लीग खेलने भारत पहुंचे जॉनसन ने एलएलसी के इतर 'पीटीआई-भाषा' से कहा, ''पैट कमिंस को सभी प्रारूपों की जिम्मेदारी देने से उनके काम का बोझ काफी बढ़ जायेगा। चयनकर्ताओं के मन में ग्लेन मैक्सवेल का नाम हो सकता है। अगर आप भविष्य को देखे तो कैमरून ग्रीन भी एक अच्छा विकल्प होगा। एक ऑलराउंडर के रूप में हालांकि उनके लिए पहले से काम का ज्यादा बोझ है। एक और विकल्प ट्रेविस हेड के प्रदर्शन में निरंतरता की कमी है।''

आ रहा Vivo का जबर्दस्त फोल्डेबल फोन

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शाओमी और सैमसंग के बाद अब वीवो भी अपना नया फोल्डेबल फोन लॉन्च करने की तैयारी कर रहा है। वीवो के इस साल की शुरुआत में चीने में अपने पहले फोल्डेबल फोन Vivo X Fold को लॉन्च किया था। कंपनी का यह फोवन स्नैपड्रैगन 8 जेन 1 चिपसेट और 8.03 इंच के डिस्प्ले से लैस था।फोन की लॉन्च डेट के बारे में कंपनी की तरफ से अभी कोई ऑफिशियल जानकारी नहीं दी गई है, लेकिन इसी बीच टिपस्टर डिजिटल चैट स्टेशन ने खुलासा कर दिया है कि यह फोन चीन में बहुत जल्द लॉन्च होगा। टिपस्टर ने लीक में इस अपकमिंग फोन के कुछ खास फीचर और स्पेसिफिकेशन्स की भी जानकारी दी है।फोटोग्राफी के लिए वीवो X Fold S में कंपनी 4700mAh की बैटरी ऑफर कर सकती है।फोन में दी जाने वाली यह बैटरी 80 वॉट की फास्ट चार्जिंग को सपोर्ट करेगी। फोटोग्राफी के लिए फोन में क्वॉड कैमरा सेटअप देखने को मिल सकता है। इसमें 50 मेगापिक्सल के प्राइमरी कैमरा के साथ एक 48 मेगापिक्सल का अल्ट्रा-वाइड ऐंगल कैमरा, एक 12 मेगापिक्सल का टेलिफोटो लेंस और एक 8 मेगापिक्सल का पेरिस्कोप लेंस शामिल हो सकता है। वहीं, सेल्फी के लिए फोन में 16 मेगापिक्सल का फ्रंट कैमरा मिलने की उम्मीद है।

कल है भाद्रपद अमावस्या, जानें शुभ मुहूर्त

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भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को भाद्रपद अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इसे भादों या भाद्रपद अमावस्या भी कहते हैं। हिंदू धर्म में इस दिन का विशेष महत्व है। चूंकि भाद्रपद मास भगवान कृष्ण को समर्पित है, इसलिए इससे भाद्रपद अमावस्या का महत्व भी बढ़ जाता है।

भाद्रपद अमावस्या शुभ मुहूर्त- अभिजीत मुहूर्त: प्रातः 11:57 से दोपहर 12:48 तक

भाद्रपद अमावस्या का महत्व- हिंदू धर्म में ऐसा माना जाता है कि भाद्रपद अमावस्या की पूर्व संध्या पर प्रार्थना करने से पिछले पापों से छुटकारा मिलता है, और मन से दुर्भावनापूर्ण भावनाएं दूर हो जाती हैं। भाद्रपद अमावस्या पर पितरों की पूजा करने से पितर प्रसन्न होते हैं। भाद्रपद अमावस्या को पिठोरी अमावस्या भी कहते हैं। कुश का अर्थ घास है। भाद्रपद अमावस्या के दिन धार्मिक कार्यों के लिये कुशा एकत्रित की जाती है, इसलिए इसे कुशग्रहणी अमावस्या कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन नदी स्नान के पश्चात तर्पण करने और पितरों के लिए दान करने का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इस अमावस्या के दिन तर्पण करने और पिंडदान करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और पितृ प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। जब पितृ यानी पूर्वज खुश होते हैं तो उनका आशीर्वाद पूरे परिवार पर बरसता है और घर में खुशहाली आती है।

भाद्रपद अमावस्या की पूजा विधि- भाद्रपद अमावस्या के दिन प्रातःकाल स्नान करने के बाद सूर्य देव को अर्घ्य दें। अर्घ्य देने के उपरांत बहते हुए जल में तिल प्रवाहित करें। पितरों की शांति के लिए गंगा तट पर पिंडदान करें। पिंडदान के बाद किसी गरीब या जरूरतमंद को दान दक्षिणा दें। यदि कालसर्प दोष से पीड़ित हैं तो भाद्रपद अमावस्या के दिन इसका छुटकारा पाने के लिए पूजा अर्चना करें। अमावस्या के दिन शाम को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक लगाएं और अपने पितरों को स्मरण करें।

डायबिटीज में लाभकारी हैं ये सब्जियां

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डायबिटीज, समय के साथ वैश्विक स्तर पर तेजी से बढ़ती गंभीर बीमारियों में से एक है। ब्लड शुगर का स्तर बढ़ जाना शरीर में कई प्रकार की जटिलताओं और कई अंगों के लिए समस्याकारक हो सकती है। यही कारण है कि ऐसे रोगियों को निरंतर बचाव के उपाय करते रहने की सलाह दी जाती है।अक्सर डायबिटीज वाले रोगियों के लिए आहार का सही चयन करना कठिन कार्य होता है, क्या खाएं-क्या नहीं यह हमेशा से बड़ा प्रश्न रहा है। इस चक्कर में कई तरह के फलों-सब्जियों का सेवन न करने के कारण शरीर में स्वाभाविक तौर पर पोषक तत्वों की कमी होने लगती है, जिससे आपकी समस्याओं के और भी बढ़ने का खतरा हो सकता है।

हरी पत्तेदार सब्जियों के लाभ : डायबिटीज रोगियों के लिए आहार में हरी पत्तेदार सब्जियों को शामिल लाभकारी होता है। हरी पत्तेदार सब्जियां आवश्यक विटामिन्स,खनिज और पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं।इनका रक्त शर्करा के स्तर पर भी बेहतर प्रभाव देखा गया है।पालक और केल जैसे पत्तेदार साग, पोटेशियम, विटामिन-ए और कैल्शियम का स्रोत हैं, इनसे प्रोटीन और फाइबर भी प्राप्त किया जा सकता है।कुछ शोधकर्ताओं ने पाया है कि इन पौधों की हाई एंटीऑक्सीडेंट सामग्री मधुमेह वाले लोगों के लिए सहायक हो सकती है।

भिंडी : मधुमेह रोगियों के लिए जिन सब्जियों को सबसे फायदेमंद माना जाता है, भिंडी उनमें से एक है।यह पौष्टिक सब्जी विभिन्न पोषक तत्वों से भरपूर होती है।मधुमेह रोगियों को ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन करने की आवश्यकता होती है जो स्वाभाविक रूप से रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद कर सकें।भिंडी का सेवन करना ब्लड शुगर के स्तर को बढ़ने से रोकने में सहायक हो सकता है।
मशरूम : मशरूम को सुपरफूड आहार के तौर पर जाना जाता है, ऐसे सबूत मिले हैं मशरूम, जो विटामिन-बी से भरपूर होता है, शरीर को कई प्रकार के लाभ दे सकता है। डायबिटिक रोगियों में इस विटामिन की कमी देखने को मिलती रही है। पर्याप्त मात्रा में विटामिन-बी वाली चीजों का सेवन कॉग्नेनिट डिक्लाइन की समस्या से राहत दिलाने में आपकी मदद कर सकती है। मशरूम से शरीर के लिए आवश्यक मात्रा में प्रोटीन की भी पूर्ति की जा सकती है।

पिज्जा उतना ही नुकसानदायक है जितना सिगरेट पीना

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फिलहाल एक व्यक्ति की औसत आयु 69 वर्ष है। लाइफस्टाइल की गड़बड़ी और खान-पान से संबंधित विकारों के कारण कई प्रकार की बीमारियों का जोखिम बढ़ता जा रहा है, जिसके कारण अब लोग पहले की तुलना में कम जीते हैं। शराब-धूम्रपान की आदत को इसके लिए जिम्मेदार माना जाता रहा है स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि यदि आप लंबी आयु चाहते हैं तो खान-पान को ठीक रखना बहुत आवश्यक हो जाता है। पौष्टिकता की कमी या अधिक मात्रा में फास्ट और जंक फूड्स का सेवन आपको बीमार करते हुए जीवन अवधि को भी कम कर सकता है। सभी लोगों को इस बारे में सावधानी बरतनी चाहिए

जंक फूड्स से होने वाले नुकसान : जंक फूड्स खाने वाले लोगों में संज्ञानात्मक गिरावट और स्वास्थ्य से संबंधित अन्य कई प्रकार की समस्याओं का खतरा हो सकता है। नॉर्थईस्ट रीजनल सेंटर फॉर रूरल डेवलपमेंट के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में पाया कि फास्ट फूड का अधिक सेवन करने वाले अमेरिकी लोगों की जीवन प्रत्याशा, अन्य लोगों की तुलना में कम देखी गई है।

धूम्रपान से होने वाले नुकसान : आहार की आदतें और कुछ विशिष्ट खाद्य पदार्थों के सेवन का शरीर पर किस प्रकार से प्रतिकूल प्रभाव हो सकता है, इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इनके संबंध को समझने की कोशिश की। शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में पाया कि अल्ट्राप्रोसेस्ड भोजन के अधिक सेवन से लेकर व्यायाम की कमी के कारण वैश्विक स्तर लोगों की औसत आयु समय के साथ कम होती जा रही है।

पिज्जा जैसा चीजें जिसे लोगों का पसंदीदा माना जाता रहा है, वह आपकी उम्र को आठ मिनट तक कम करता है। अगर तुलनात्मक रूप से देखें तो एक सिगरेट और एक पिज्जा से होने वाली औसत आयु में कमी लगभग बराबर ही है।

लोकनायक गोस्वामी तुलसीदास- राष्ट्र की स्वात्रंत्य चेतना के उद्घोषक

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देश में स्वतंत्रता प्राप्ति के पचहत्तर वर्ष पर आयोजन हो रहे हैं। हर घर तिरंगा, घर घर तिरंगा अभियान चल रहा है। सन् अठारह सौ संतावन की क्रांति के बाद से लेकर 1955 के गोवा मुक्ति आंदोलन तक कोई 2 करोड़ से ज्यादा लोग अँग्रजों के दमन से मारे गए। जिन्हें तोप और गोलियों से उड़ाया, जिन्हें फाँसी पर लटकाया, जिन्हें खेत खलिहानों में जाकर गोलियां मारीं, जिन्हें सरे राह खंभों पर या पेंड़ों में लटका दिया उनके अलावा भी असंख्य लोग ऐसे हैं जो गुलामी में भूख-बेबसी, अकाल व बीमारी में मारे गए वे सबके सब बलिदानी हैं। यह उन सभी के स्मरण व तर्पण का पुण्य अवसर है।
इतिहास में ऐसे बहुत से अमर बलिदानी दर्ज नहीं हैं क्योंकि यह भी सत्ता की सहूलियत के हिसाब से लिखा गया। डायर का जलियांवाला बाग जैसे कोई एक कांड नहीं, ऐसे शताधिक नरसंहार हुए जो इतिहास में दर्ज नहीं हैं, लोकश्रुतियों में उन बलिदानियों की कथाएं हैं। यह सब सहेजने का पुण्यकाम हो रहा है। जो भी इस दिशा में काम कर रहे हैं वे प्रणम्य हैं।

Jayram Shukla 1आमतौर पर जब हम पराधीनता की या स्वात्रंत्यसमर की बात करते हैं तो हमारे सामने सिर्फ अँग्रेज़ी हुक्मरानों की छवि सामने आती है। जबकि हमे गुलामी और उसके विरुद्ध संघर्ष की बात 12वीं सदी से शुरू करनी चाहिए। और उन महापुरुषों के योगदान का स्मरण करना चाहिए जिन्होंने भारतीय जनमानस में स्वतंत्रता की चाह को बनाए रखा।
बहुत से वीर पराक्रमी योद्धा हुए जिन्होंने तब भी गुलामी के खिलाफ आवाज उठाई और आत्मोसर्ग किया।महाराणा प्रताप और वीर शिवा जी इसी श्रृंखला के अमर नायक हैं।
मेरी दृष्टि में उन महापुरुषों का योगदान सर्वोपरि रखा जाना चाहिए जिन्होंने अपनी साहित्य साधना, अपने सांस्कृतिक-लोकजतन से समाज में स्वतंत्रता की चेतना की लौ को जलाए रखा।
इनमें कबीर और तुलसी प्रमुख हैं। क्रूर शासक इब्राहिम लोदी के सल्तनत काल में कबीर ने आत्मा की स्वतंत्रता को आवाज दी और वंचित वर्ग के लोगों को मुख्यधारा में खड़ा किया। कबीर ने सल्तनत की गुलामी के समानांतर अंधविश्वास और रूढ़ियों के गुलाम जनमानस को स्वतंत्र होने का मंत्र दिया।
गोस्वामी तुलसीदास तो मुक्ति संघर्ष के महान उद्घोषक की भूमिका में अवतरित हुए। उनकी दृष्टि चौतरफा थी। उन्होंने अकबर जैसे जघन्य और दुर्दांत शासक की सत्ता को चुनौती दी और आगे के स्वतंत्रता संघर्ष का पथ प्रशस्त किया।
तुलसीदास युगदृष्टा थे। रामकथा को ‘रामचरित मानस’ में पिरोकर एक ऐसा अमोघ अस्त्र दे दिया जो अकबर से लेकर औरंगजेब और अँग्रेजों तक की सत्ता को उखाड़ फेंकने के काम आया।
यही नहीं यदि आज हम अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर निर्माण व प्राणप्रतिष्ठा के गौरव क्षण तक पहुंचे हैं तो उसके पीछे भी तुलसी और उनका अमोघ ग्रंथ रामचरित मानस ही है, जिसने हमारे आत्मतत्व को एक हजार वर्ष की गुलामी के बाद भी बचाए रखा।
गोस्वामी जी उस अकबर के समयकाल में अवतरित हुए जिस अकबर ने विशाल हिन्दू समाज की सभी मानमर्यादाओं को अपने तलवार की नोकपर तहस-नहस कर रखा था। जिस तरह रावण के दरबार में पवन देव हवा करते, यम-कुबेर-दिग्पाल दरवाजों पर पहरे देते, देवी-देवता,ग्रह-नक्षत्र थे सभी रावण के यहाँ चाकरी करते। उसी तरह का हाल अकबर के दरबार में भारतवर्ष के राजा महाराजाओं का था। रावण के अंतःपुर की भाँति अकबर का भी हरम बल-छल से हरी गईं श्रेष्ठ व कुलीन युवतियों से भरा था। वह जो चाहता रावण की तरह उसे हरहाल पर पाकर रहता।
दडंकारण्य में जिसतरह त्रिसरा-खर-दूषण का आतंक था वैसे ही अकबर के सूबेदारों का उत्तर से लेकर दक्षिण तक। आसफ खाँ एक तरह से खरदूषण ही तो था जिसे गोड़वाना की रूपवती वीरांगना दुर्गावती को अपने स्वामी अकबर के हरम के लिए पकड़ने के अभियान पर भेजा गया था।
अकबर ने तत्कालीन मेधा और विद्वता को भी अपने दरबार में गुलाम बनाकर रखा था। तत्कालीन बौद्धिक समाज का बड़ा तबका इतना भयभीत था कि वह अकबर का चारण-भाँट बन बैठा।
पंडितों ने अल्लाहोपनिषद और अकबरपुराण जैसे ग्रंथ लिखे। कुछ ने तो अकबर को हमारे देवी-देवताओं के परम भक्त के रूप में प्रचारित करने का भी बड़ा उपक्रम किया। जबकि अकबर ने हर युद्ध और नरसंहार इस्लाम की बरक्कत के नाम पर की। अबुल फजल और बदायूंनी ने मेवाड़ सहित हर कत्लेआम को इस्लाम के लिए गौरवमयी क्षण लिखा।
अकबर ने 51 वर्ष तक निर्द्वन्द्व राज किया। उसे भी रावण की भाँति अभिमान था कि मेरे आगे ये कौन ईश्वर, रावण ही ईश्वर है, वही जग का नियंता और पालनहार है। वह भी इसी क्रम में जलालुद्दीन से अकबर बन बैठा। अकबर शब्द अल्लाह की महानता के लिए एक पवित्र विशेषण है..अल्लाह-हू-अकबर। यानी कि अल्लाह ही परमशक्ति है महान है उसके समतुल्य दूसरा कोई नहीं। तलवार की नोक पर जलालुद्दीन- हू- अकबर बन गया। ईश्वर-अल्लाह का अवतार नहीं अपितु पूरा पूरा ईश्वर, जगतनियंता। खुद को ईश्वर अल्लाह घोषित करवाने के बाद अपना नया धर्म भी चला दिया।
सनातन समाज के ऐसे भीषण और वीभत्स संक्रमण काल में तुलसीदास सामने आते हैं और जलालुद्दीन अकबर की स्वयंभू- ईश्वरीय महत्ता को चुनौती देने के लिए लोकभाषा के अमरग्रंथ रामचरित मानस की रचना होती है। संवाद और कथोपकथन शैली में रामचरित जन-जन के मानस तक पहुँचता है।
अकबर के कालखंड के इतिहास को सामने रखिए और फिर रामचरित मानस का पाठ करिए तो सीधे-सीधे बिना कुछ कहे गोस्वामी तुलसीदास संकेतों में असली मर्म समझा देते हैं। अकबर के उस आततायी काल में यदि रामचरित मानस न लिखा गया होता तो कोई बड़ी बात नहीं कि आज हम अल्लाहोपनिषद और अकबरपुराण, महान-यशस्वी, मुक्तिदाता अकबर ही पढ़ रहे होते।
तुलसी ने रामकथा को लोकभाषा में रचा भर ही नहीं उसे लोकव्यापी भी बनाया। गाँव-गाँव रामलीलाएं शुरू हुँई और रामचरित मानस की चौपाइयां कोटि-कोटि कंठों में बस गईं। हताश युवाओं के सामने महाबीर हुनमान, बजरंगबली का चरित्र रखकर उनमें आत्मविश्वास जगाया। जिसका कोई नहीं उसके बजरंगबली। हनुमान चालीसा के मंत्र ने निर्भय बनाया। गाँव गाँव हनुमान मंदिर और उससे जुड़ी व्यायामशालों ने दिशाहीन तरुणाई में पौरुष का संचार किया।
समर्थ रामदास स्वामी ने जब छत्रपति शिवाजी महाराज को सुराज स्थापित करने का मंत्र दिया तो उसे सफल करने तंत्र भी दिया। यह तंत्र हनुमान जी के मंदिर, उससे जुड़ी व्यायामशालाऐं और वहाँ से निकलने वाले वीर तरुणों के समूह के रूप में निकला। इन्हीं वीर तरुणों के पराक्रम की वजह से शिवाजी का साम्राज्य स्थापित हुआ। इन हनुमान व्यायामशालों का उपयोग प्रकारांतर में बाल गंगाधर तिलक ने किया। तिलक ने ही मानस की अर्धाली ‘पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं’ को स्वतंत्रता संग्राम का महामंत्र बना दिया।
तिलक के बाद गाँधीजी ने ‘रामचरित’ को पकड़ा। गाँधीजी के सपनों का रामराज कोई अलग नहीं अपितु गोस्वामी तुलसीदास वर्णित रामराज ही था। गाँधी के आश्रमों में राम रहे, स्वाधीनता के लिए बढ़े हर कदम पर राम की दुहाई थी, उनकी प्रार्थना में राम रहे और आखिरी स्वास में भी यही दो अक्षर बसा रहा। महात्मा गांधी ने आजादी की लड़ाई का आदर्श राम-रावण युद्ध से लिया। भारत के आजादी की लड़ाई भी स्वर्णमयी लंका की भाँति पूँजीवाद के प्रतीक स्वर्णमयी ब्रिटिश क्राउन के खिलाफ था। गाँधी को विश्वास था कि जिस तरह वानर-भालु-गीध-गिलहरी-वनवासियों ने मिलकर स्वर्णमयी लंका को फूँककर महीयसी सीता माता को मुक्त करा लिया उसी तरह भारत के यही गरीब-गुरबे-शोषित-वंचित जन गोरी हुकूमत से स्वतंत्रता को मुक्त करा लेंगे।
गोस्वामी जी ने रामचरित मानस में मुक्तिसंघर्ष भर की गाथा नहीं लिखी बल्कि उन्होंने हमारे स्वाभिमान की प्रतिष्ठा की भी बात की। राजकाज की मर्यादा, आदर्श और समाज की बात की, समता और समाजवाद की भी बात की।
गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित के माध्यम से भारतवर्ष के मानस को मथकर जिस तरह विचार नवनीत निकालकर सामने रखा है वही हमारे भविष्य का ऊर्जास्त्रोत रहेगा..। हम स्वतंत्रता के पचहतरवें वर्ष पर हर क्षण आठो याम उन महापुरुषों का स्मरण करें जिनकी वजह से आज हमारा देश है,हम हैं, हमारा अस्तित्व है।

संपर्क: 8225812813

Jairam Shukla Ke Facebook Wall Se

मप्र में बनी गांव व नगर सरकारें- सियासी पाप- पुण्य के बाद काम करके बताएं…

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प्रदेश में सम्भवतः पहली बार राजनीतिक गुत्थमगुत्था और भारी उठापटक के बाद नगर और गांव की सरकारें चुन ली गईं। उनके विकास की गंगा बहाने के तमाम वादे और दावों को जनता ध्यान में रख 2023 के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए अपना वोट देगी। इसलिए जीत कर सिंकदर बने नेताजी विकास भी करें और विनम्र भी रहें। ठीक वैसे ही मानो वे लड़की की शादी में दुल्हन के भाई हैं। राजनीति की बारात तो अभी घर आई है और बराती वोटर लोकसभा चुनाव तक जनवासे में ही रहने वाले हैं। “अहंकार छोड़ने और विनम्र रहने का टाइम शुरू होता है अब”…..वरना सोने की सत्ता खाक भी हो सकती है।
सम्भवतः पहली दफा जनपद और जिला पंचायतों के सदस्यों की विधायकों की तरह बाड़बंदी, किलेबन्दी,खरीदफरोख्त की खबरें आम हुई। इस पर बहस हो सकती है कि विचारधारा पर सियासत करने वाले कौन कितने में खरीदे और बिके..? विधायकों के बिकने और खरीदने की महामारी ने जनपद से लेकर जिला पंचायतों के सदस्य, नगरपालिका, नगर पंचायतों के पार्षद और पंचों के भी घर देख लिए हैं। जैसे कहावत है- “बुढ़िया के मरने का गम नही,चिंता यह है कि मौत ने घर देख लिया है”…पक्का जान लीजिए आज इनकी तो कल उनकी बारी आएगी ही। कमजोर होते दलों और दोयम दर्जे के नेताओं ने जो बीज बोए हैं उससे गांव- गांव, शहर – शहर सियासी और सामाजिक तौर पर लट्ठ चलने की हालत न ही दिखे तो अच्छा है। हरेक दल अपने हिसाब से आंकड़ों की बाजीगरी कर खुद की बढ़त की बातें कर रहे हैं।

Raghavendra Singh

भोपाल में भी तनाव के बीच जिला सरकार को लेकर गहमागहमी, लोभ लेने – देने के आरोप और फिर सदस्यों की घेराबंदी के जो दृश्य दिखे उनसे शर्मिदगी ज्यादा हुई। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी को भोपाल कलेक्टर ऑफिस के सामने मोर्चा सम्भालना पड़ा। लेकिन भाजपा की रणनीति और जोड़तोड़ के सामने में लाचार नजर आए। बहस , पुलिस प्रशासन से नोकझोक झूमाझटकी तक हुई। भोपाल नगर निगम और जिला पंचायत में भाजपा के नए रणनीतिकार के रूप में कैबिनेट मंत्री विश्वास सारंग उभर आए हैं। भाजपा कार्यकर्ता मालती राय को भोपाल की मेयर प्रत्याशी बनाने से लेकर उनके विजयी होने तक के सफर में सारंग और विधायक कृष्णा गौर व रामेश्वर शर्मा की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही। लेकिन प्रदेश कांग्रेस के नेतृत्व खासतौर पर दिग्विजय सिंह से सीधे टकराने में सारंग ने बड़ा जोखिम लिया है। एक जमाने मे विश्वास सारंग के दिवंगत पिता वरिष्ठ भाजपा नेता कैलाश सारंग से दस साल मुख्यमंत्री रहते हुए दिग्विजय सिंह के राजनीतिक और कूटनीतिक रिश्ते जग जाहिर थे। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि सारंग की सिंह से टकराहट किस मुकाम तक जाएगी। मंत्री सारंग ने कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी से श्री सिंह को गुंडा कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने तक की मांग कर राजनीतिक विवाद को नया रंग दे दिया है। सुना है राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले दिग्विजय सिंह ने भी पूरे मामले को गम्भीरता से लिया है।

मास्टर प्लान और अफसरों को जिम्मेदार तय करने की चुनौती…
भोपाल की नवनिर्वाचित महापौर मालती राय ने तो भ्रष्टाचार खत्म करने जैसे कठिन काम को अपना चुनावी मुद्दा बनाया था। इस पर भरोसा कर जनता ने उन्हें महापौर बना भी दिया है। गुड गवर्नेंस के जरिए यहां होने वाले भ्रष्टाचार पर अधिकारियों की जिम्मेवारी तय कर उन्हें सजा देने की शुरुआत जरूर करनी चाहिए। हालांकि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मालती राय को अपनी पार्टी के बेईमानों से ज्यादा लड़ना पड़ेगा। भाजपा के विधायक उन्हें अपने क्षेत्र में शायद उसने भी ना दें क्योंकि विधायक के साथ खुद को अपने क्षेत्र का मेयर भी मानते हैं। पिछला तजुर्बा तो यही कहता है। मामला चाहे बिल्डिंग परमिशन से लेकर अतिक्रमण, सड़कों का घटिया निर्माण का हो या सफाई का। जिम्मेदारी तय करने के साथ कठोर कदम उठाने की दरकार है। 29 दिन के लिए होने वाली फर्जी नियुक्तियों की कड़ाई से जांच की गई तो करोड़ों रुपए का घोटाला उजागर हो सकता है । भोपाल का मास्टर प्लान लागू करना और फिर उसके ही हिसाब से विकास का रोड मैप बनाना मेयर से लेकर मुख्यमंत्री तक के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा । भोपाल के मेयर चुनाव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के वादों और उनकी सक्रियता ने भी भाजपा को जिताया है। वरना एक समय तो लग रहा था बीजेपी चुनाव हार भी सकती है।
भोपाल नगर निगम में 29 दिवसीय कर्मचारियों की संख्या 13 हजार पार होने के आंकड़े हैं। ऑडिट में इसपर आपत्ति ली गई है।
असल मे बड़ी संख्या में दैनिक वेतन भोगी, बिना काम ले रहे वेतन। यह बहुत बड़ा घपला माना जा रहा है। आडिटर का कहना है कि नगर निगम शासन से अनुमति लेकर इन कर्मचारियों को नियमित करे या इन्हें बाहर का रास्ता दिखाए। अभी तक तो आडिटर की आपत्ति कूड़े दान में है।
नियम विरुद्ध हजारों कर्मचारी नगर निगम के अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के घर में सेवाएं दे रहे हैं। इनमें अधिकतर बिना काम के वेतन ले रहे हैं। इसके बावजूद निगम प्रशासन द्वारा सख्त कार्रवाई नहीं करने से निगम के पैसे का दुरुपयोग हो रहा है। यह कहानी हरेक नगर निगम और नगर पालिका की है।
आडिटर की आपत्ति में स्पष्ट कहा गया है कि इतनी बड़ी संख्या में 29 दिवसीय कर्मचारियों की निरंतर सेवाएं नही ली जा सकती है। सामान्य प्रशासन विभाग और नगरीय प्रशासन विभाग द्वारा पूर्व में ही इस प्रकार की नियुक्तियों को पूर्णत: प्रतिबंधित किया गया है।

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अब किस दुनिया में जिएं प्रेमचंद के झूरी काछी और हीरा-मोती

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आज प्रेमचन्द जयंती है। आज के दिन प्रेमचंद बड़ी शिद्दत से याद किए जाते हैं। हमारे यहां एक रिवाज है जिसे न मानना हो उसको पूजना शुरु कर दो।
नेताओं ने ऐसे ही गाँधी को पूजना शुरू कर दिया। फोटो को चौखटे में मढ दिया ताकि वहीं कैद रहें निकले नहीं। साहित्यकारों ने ऐसे ही प्रेमचंद को बना दिया।
प्रेमचन्द का समाज अलगू चौधरी और जुम्मन शेख के पंच परमेश्वर का समाज था, मुँहदेखी और पक्षपात से सर्वथा अलग। आज साहित्यकारिता में चारण-भाँटों या वैचारिक विरोधियों के साथ शाब्दिक व्यभिचारियों का दौर है। बीच का वर्ग सुविधाश्रयी है।
प्रेमचन्द तुलसी की तरह सहज, सरल और तरल थे। हिन्दी जगत में सबसे ज्यादा पढे जाने वाले साहित्य सर्जक। जनजीवन के सबसे ज्यादा करीब और संवेदनशील।
Jayram Shukla
तुलसी ने कागभुशुण्डि -गरुड़ (कौव्वा और बाज) से रामकथा गवा दी, तो प्रेमचंद ने अपनी कहानी दो बैलों की कथा में हीरा..मोती नाम के बैलों से जीवनमूल्यों की स्थापना और मुक्ति के संघर्ष का संदेश दिया।
इन दिनों प्रेमचंद की यह मर्मस्पर्शी कहानी रह रह कर टीसती सी है। यह कहानी पिछली सदी के तीस के दशक की थी। प्रेमचंद को पूंजीवाद के विस्तार और आक्टोपसी अर्थसंस्कृति के धमक की आहट तो थी लेकिन भारतमाता की ग्राम्यवासिनी अर्थव्यवस्था से हीरा मोती को झूरी काछी की थान से बूचडख़ाने तक का सफर करना पड़ेगा इसकी शायद कल्पना भी नहीं थी।
आज देश में गोरक्षा को लेकर उन्माद है। लेकिन ऐसी स्थित क्यों और कैसे बनी व विकल्प क्या है इसपर विचार करने कोई तैय्यार नहीं है। प्रेमचंद के अलगू चौधरी व जुम्मन शेख वाले समाज मे इस उन्माद ने मोब लीचिंग का रूप ले लिया है।
इस देश में भांग के नशे के तरंग की भाँति शब्दों का भी ज्वार भाटा आता है। आवारा लहरें गरीब, मासूम और मजलूम लोगों बहा ले जाती हैं। ऐसा दौर कुदरत के जलजले से भी खतरनाक होता है।
पुराणकथाओं में जब जनजीवन पर संकट आता था तब .भूमि विचारी गो तनुधारी.. ईश्वर से फरियाद करने जाती थी। आज गाय को हिन्सा का निमित्त बना दिया गया। गाय और गोवंश को इस दशा तक पहुंचाने वाले कसाई कौन हैं.?
गाय और गोवंश युगों से हमारी अर्थव्यवस्था और लोकजीवन की धुरी रहा है। भगवान् कृष्ण को इसीलिये गोपाल बनना पड़ा था। आज हमने घर में मंदिर बनाकर गोपालजी की प्राणप्रतिष्ठा तो कर ली और ज्यादा धार्मिक हो गए और गोमाता को सडक़ पर विष्ठा, पन्नी खाकर मरने के लिए और सरहंगों, गुन्डों को गाय के नामपर गुंडागर्दी करने के लिए छोड़ दिया।
गाय और गोवंश को हमारे नीति निर्धारकों ने योजनाबद्ध तरीके से बाहर किया और हमने इसका बढचढकर समर्थन किया। गांधी जी ने ग्रामस्वराज्य की अवधारणा दी। गांव के संसाधनों के वैग्यानिक कौशल के विकास के पक्षधर थे। उनको यह चिंता थी कि यूरोपीय अर्थव्यवस्था का माडल गावों को गुलाम बना देगा। यूरोपीय माडल मशीन की धुरी पर टिका था जिसमें संवेदनाओं के लिए कोई जगह नहीं थी।
हमने गांधी को सिर्फ पूजा उनकी सीख और नसीहतों को तिलांजलि दे दी। नेहरू के फोकस में शहरी और मशीनीकृत अर्थव्यवस्था का माडल था। ग्राम-सुराज की अवधारणा को धीमाजहर देकर मारा गया। हरितक्रांति और फिर सन् नब्बे के नरसिंह राव-मनमोहन माडल ने ग्रामस्वराज्य की अर्थी उठाने की दिशा में कदम बढा दिया।
हमारे पारंपरिक कौशल और खेती के पुश्तैनी ग्यान को डंकल जैसे ग्यानियों ने खा लिया। खेतों का दोहन नहीं शोषण शुरू हो गया। गाय बैल खेती से खारिज कर वहां ट्रैक्टर तैनात कर दिए गए।
यह सही है कि हमारे खेतोँ में इतना अन्न नहीं उपजता था पहले पर इतना तो उपजता ही था कि किसानों का गुजारा चल जाता था। देश ने सतसठ अरसठ का अकाल भी देखा पर किसानों ने ऐसी आत्महत्याएं नहीं कीं।
आज खेती गुलाम होगयी है और उसके घटक अप्रसांगिक। इसकी सबसे ज्यादा मार उन मूक पशुओं पर पड़ी है जो किसानों के हमदम थे। गाय को लेकर हल्ला मचाने वाले विकल्प की बात नहीं करते।
निश्चित ही गाय हमारी पवित्र आस्थाओं के साथ जुड़ी है पर वह ससम्मान कैसे बचे इसकी कार्ययोजना बननी चाहिए और ये धर्मप्राण सरकार बना भी रही होगी। मुश्किल यह है कि बछडों और बैलों का क्या होगा। इनकी तो अब कोई उपयोगिता नहीं।
शंकरजी का नंदी होने के नाते यद्यपि बैल भी एक धार्मिक प्रतीक है पर आस्थाओं में इसका वो दर्जा नहीं जो गाय को प्राप्त है। गाय और गोवंश को बचाना है तो सरकार को ठोस कदम बनाना ही होगा।
एक सुझाव यह भी है कि जिस तरह भारतीय खाद्य निगम बना है वैसे ही..भारतीय गोवंश निगम बनाया जा सकता है। सरकार घाटा सहकर भी खाद्य निगम को संचालित करता है ताकि देशवासियों की खाद्यसुरक्षा के साथ ही समर्थन मूल्य के जरिए किसानों का भी हित संरक्षण कर सके। उसी तरह गोवंश निगम में भी गाय बछड़ों को संरक्षित करने की व्यवस्था हो।
किसान यहां गोवंश बेच सके। गौवंश के उत्पादों, दूध, गोमूत्र, गोबर की उपयोगिता का प्रचार प्रसार हो। रोज पढने को मिलता है कि गौमूत्र में इतने गुण हैं। इसमें सोना चांदी पाया जाता है। गाय का दूध अमृत है तो इसका बाजारीकरण क्यों नहीं हो सकता।
जिस देश में बीस रुपये के बोतलबंद पानी और पाँच रुपये के आलू को अंकल चिप्स में बदलकर अरबों. खरबों रुपये का व्यापार किया जा सकता है तो फिर गोवंश के उत्पाद क्यों नहीं.? आखिर यह धर्मप्राण देश है।
गाय के लिए हम मरने मारने पर उतारू हैं तो उसे बचाने के लिए इतना तो कर ही सकते हैं। आज गांधी होते तो अपने ग्राम स्वराज की दुर्दशा देखकर जार जार रोते और प्रेमचंद झूरी काछी के हीरा मोती को बचाने के लिए समूची रचनाधर्मिता दाँव पर लगा देते।
संपर्क.8225812813
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